नीतीश का लोकतंत्र जुबानी खर्च, राहुल चुप क्यों?

नीतीश का लोकतंत्र जुबानी खर्च, राहुल चुप क्यों?

यूपी का कुख्यात माफिया अतीक अहमद की कहानियाँ आप पिछले कई हफ्तों से सुन रहे होंगे और देख भी रहे है। लेकिन आज आपको बिहार के एक बाहुबली की कहानी बताएंगे। और इस बाहुबली का नाम है आनंद मोहन सिंह। अतीक अहमद और आनंद मोहन की कहानी एक जैसे ही है फर्क इतना है कि आनंद मोहन के अपराधों की पृष्ठ भूमि बिहार है और अतीक अहमद का यूपी था।

अतीक अहमद की तरह ही आनंद मोहन सिंह को भी बिहार में पूरी राजनीतिक शरण मिली है। विभिन्न पार्टियों के नेताओं से उनकी पक्की दोस्ती है। जिस वजह से आनंद मोहन सिंह खुद दो बार सांसद रहा। और अब उसका बेटा चेतन आनंद सत्तारूढ़ पार्टी आरजेडी का विधायक है। आनंद मोहन सिंह एक आईएएस ऑफिसर जी कृष्णैया के हत्या के जुल्म में उम्र कैद की सजा काट रहा है। लेकिन बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कानून में एक बदलाव करके आनंद मोहन सिंह की सजा काम करवा दी। और अब उसे 4 साल पहले ही रिहा किया जा रहा है।

सोचनेवाली बात है कि नीतीश कुमार जो अपनी साफ सुथरी छवि सबके सामने पेश करते है। जो कहते है कि मैं भ्रष्टाचार के सख्त खिलाफ हूँ। जो गर्व से कहते है कि उन पर भ्रष्टाचार का एक भी दाग नहीं है। जो अपराध से अपने आप को दूर रखते है अपराधियों से दूर रहते है। ऐसी क्या मजबूरी थी या दबाव था कि नीतीश कुमार को पूरा का पूरा कानून बदलना पड गया। ताकि वो आनंद मोहन सिंह को जेल से बाहर निकाल सके।

हालांकि सबसे पहले आपको आनंद मोहन सिंह के बारे में बताते है- जिसकी शुरुवात सन 1985 में बिहार के सहरसा जिले से होती है। यह वह दौर था जब बिहार के कोसी क्षेत्र में आनंद मोहन का जबरदस्त खौफ था और वो ना जाने कितने लोगों पर खुले आम अत्याचार कर रहा था और इस दौरान उसका एक गैंग बन चुका था जिसमें कई बड़े-बड़े और कुख्यात अपराधियों को शामिल किया गया था। और इन्हीं में से एक अपराधी का नाम था छोटन शुक्ला। आनंद मोहन जिस तरह से अपराध कर रहा था और लोगों में जिस तरह से उसका खौफ था। उससे उसे राजनीति संरक्षण मिलना बहुत आसान हो गया। क्यूंकी उस दौर में राजनैतिक संरक्षण के लिए एक ही योग्यता मायने रखती थी। और ये योग्यता थी बड़े से बड़ा अपराधी होना और इस मामले में आंदन मोहन कई अपराधियों से कई ज्यादा काबिल और कई ज्यादा प्रतिभाशाली था।

हैरानी की बात है कि आंदन मोहन बिहार की राजनीति में पहला मौका उसे जनता पार्टी ने दिया। जिसका गठन भारत के संविधान की रक्षा करने के लिए हुआ था। लेकिन वर्ष 1990 के बिहार विधानसभा चुनाव में जनता पार्टी ने आनंद मोहन सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया। और आनंद मोहन इन चुनावों में कॉंग्रेस पार्टी के प्रत्याशी को हराकर एक अपराधी से बाहुबली नेता बन गया। और फिर विधानसभा में पहुँच गया।

साल 1990 की बात है जब आनंद बिहार की महिशी विधानसभा सीट से चुनाव जीता। और विधायक बनाने के बाद लोगों में उसका खौफ बहुत बढ़ गया। आज भी बिहार का बच्चा बच्चा आनंद मोहन के बारे में भलीभांति जानता है। आनंद मोहन से स्थानीय पुलिस भी डरने लगी थी। ठीक वैसे ही जैसे अतीक अहमद से उत्तर प्रदेश की पुलिस डरने लगी थी। और सबसे बड़ी बात यह है कि इस दौरान पुलिस में इतनी हिम्मत ही नहीं थी कि वो आनंद मोहन के खिलाफ कोई भी मामला कोई भी एफआईआर दर्ज भी कर पाए। वर्ष 1994 में एक बड़ी घटना हो गई। जिसने आनंद मोहन सिंह की जिंदगी को बदल कर रख दिया। उस समय आनंद मोहन ने अपनी एक खुद की पार्टी बनाई जिसका नाम था बिहार पीपुल्स पार्टी और कुख्यात अपराधी छोटन शुक्ला भी इस पार्टी का सदस्य था।

वहीं 1994 में जब कुछ लोगों ने छोटन शुक्ला की हत्या कर दी। तो पूरे इलाके में ये घटना फैल गई। कि इस हत्या में पुलिस की मिलीभगत शामिल है। और आनंद मोहन के गैंग और पार्टी के लोग इस हत्या के लिए गोपालगंज के उस समय के डीएम यानी जिलाधिकारी जी कृष्णनैया को जिम्मेदार मानने लगे। छोटन शुक्ला की हत्या के बाद वहाँ दंगे भड़क गए। सैकड़ों की संख्या में लोग सड़कों पर उतर आएं थे। और वहाँ दंगे भड़क उठे थे। इन्ही दंगों के समय वहाँ के डीएम जी कृष्णनैया जो एक आईएएस ऑफिसर एक मीटिंग से गोपालगंज लौट रहे थे। और तभी आनंद मोहन सिंह और उसके गैंग के बाकी लोगों ने इस आईएएस ऑफिसर की हत्या करने की साजिश रची। और इन लोगों ने गोपालगंज के जिला अधिकारी के गाड़ी पर हमला किया। और इसके बाद भीड़ ने उनकी पीट पीटकर हत्या कर दी। और तब जी कृष्णनैया को ऑन ड्यूटी गोली मार दी गई। तब बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव खुद इस ऑफिसर के अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए आए थे। तब उन्होंने सबके सामने कहा था कि बिहार इस घटना को भूलेगा नहीं। हालांकि आज लालू यादव खुद इस घटना को भूल चुके है। क्यूंकी आज आनंद मोहन का बेटा चेतन आनंद लालू यादव की पार्टी आरजेडी से ही विधायक है।

वर्ष 1994 में जब आनंद मोहन एक जिले के सबसे बड़े अधिकारी की ऑन ड्यूटी हत्या की तब वह राज्य का एक विधायक था। इस हत्याकांड में आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद भी शामिल थी। जिसे अदालत ने दोषी माना और नैतिक रूप से इस घटना के बाद बिहार की सभी पार्टियों को खुद को आनंद मोहन से अलग कर लेना चाहिए था। जब पूरा बिहार जनता है अदालत यह कह चुका है कि आनंद मोहन और लवली मोहन इन दोनों ने मिलकर एक आईएएस ऑफिसर की हत्या की तो उसके बाद बिहार के जीतने भी नेता और पार्टियां थी। उनकी ऐसी क्या मजबूरी थी कि वो आनंद मोहन सिंह उसके परिवार से लगातार दोस्ती बनाए रहे।

हालांकि जी कृष्णनैया की हत्या के बाद जब आनंद मोहन जेल गया तब उसकी पत्नी लवली आनंद ने राजनीति में आने का फैसला किया और इससे भी ज्यादा दुर्भाग्यपूर्ण बात ये है कि वो 1994वें के लोकसभा के उपचुनाव में जीत भी गई। लोकसभा जिसे हम लोकतंत्र की मंदिर कहते है वहाँ लवली आनंद एक सांसद की रूप में आकर बैठती थी। लोगों के प्रतिनिधि के रूप में आज जो लोग बात करते है लोकतंत्र खतरे में है, संविधान खतरे में है, भारत देश खतरे में है। लोकतंत्र तो उसी दिन खतरे में आ गया था हमारा संविधान तो उसी दिन खतरे में आ गया था जब इस तरह के अपराधी संसद का चुनाव जीत कर संसद में आ जाते थे। पहली बात तो इन्हें टिकट मिल जाते है और दूसरी बात इन्हें देश की जनता वोट देकर जीता देती है। और फिर ये लोग लोकसभा में जाकर बैठते है।

वहीं बाद में लवली आनंद कॉंग्रेस पार्टी में शामिल हो गई। आनंद मोहन जब जेल में था तब उसने भी इस हत्याकांड के दो साल बाद वर्ष 1996 में पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ा और उस समय उसे ये लोकसभा का टिकट समता पार्टी ने दिया था। वर्तमान में जो जेडीयू पार्टी है ये उस समय की समता पार्टी हुआ करती थी। समता पार्टी को बिहार के मौजूदा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और पूर्व दिवंगत नेता जार्ज फर्नांडीस ने मिलकर बनाई थी। समता पार्टी ने आनंद मोहन सिंह को टिकट दिया लोकसभा का। नीतीश कुमार के इस एहसान ने आनंद मोहन को एक हत्यारे से एक सांसद बना दिया। आनंद मोहन पर ये मेहरबानी सिर्फ नीतीश कुमार ने ही नहीं कि, बल्कि वर्ष 1998 में आनंद मोहन सिंह ने फिर से लोकसभा का चुनाव लड़ा। और इस बार भी वह चुनाव जीत कर देश की संसद में पहुँच गया।

सोचनेवाली बात यह है कि आनंद मोहन पर किसी ने हमारे देश में बिहार में कोई आपत्ति नहीं की। संसद के जो बाकी के सदस्य थे उन्होंने भी कोई आपत्ति नहीं की। आनंद मोहन अच्छी तरह से समझ चुका था कि कानून चाहे उसे अपने अदालत में कितना भी दोषी करार देदे लेकिन बिहार की राजनीति पार्टियां और बिहार के नेता उसके सारे अपराध माफ कर देंगे।

हमारे देश के बड़े नेता जो लोकतंत्र की बात करते है उन्होंने ही सर्वप्रथम आनंद मोहन को अपने पार्टी में जगह दी जिसमें नीतीश कुमार की पार्टी समता पार्टी, काँग्रेस पार्टी जिसने लवली आनंद को शामिल कर लिया। आनंद मोहन का बेटा चेतन आनंद आरजेडी से ही विधायक है। लेकिन इसके बाद वर्ष 2007 में बिहार की एक निचली अदालत ने आनंद मोहन और लवली आनंद को ऑन ड्यूटी एक ऑफिसर की हत्या करने के लिया दोषी करार दिया। यूं तो आनंद मोहन पर हत्या, लूट और अपहरण जैसे कई संगीन मामले दर्ज थे, लेकिन आनंद मोहन का सूर्य तब अस्त होना शुरू हुआ, जब पटना कोर्ट ने आनंद मोहन को दोषी ठहराया और उन्हें फांसी की सजा सुनाई। हालांकि उस समय राजनीति पार्टियों ने अदालत के फैसले का स्वागत नहीं किया बल्कि इन पार्टियों ने आनंद मोहन को एक माफिया से एक मसीहा बना दिया। जैसे वर्तमान में अतीक और अशरफ के मौत पर विपक्ष की पार्टियों ने किया है। हालांकि, बाद में ऊपरी अदालत ने आनंद मोहन की फांसी की सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया। तब से लेकर अब तक आनंद मोहन जेल की सलाखों के पीछे हैं।

बिहार के पूर्व सांसद व बाहुबली नेता आनंद मोहन जेल से रिहा होकर जल्द ही बाहर आ जाएगा। इसके साथ ही बिहार अन्य 27 कैदियों को भी रिहा कर रही है। दरअसल बिहार सरकार ने 10 अप्रैल 2023 को बिहार कारा हस्तक, 2012 के नियम-481(i) विभाग के (क) क्रम में संशोधन करके उस वाक्यांश को हटा दिया, जिसमें सरकारी सेवक की हत्या को शामिल किया गया था। इस संशोधन के बाद अब ड्यूटी पर तैनात सरकारी सेवक की हत्या अपवाद की श्रेणी में नहीं गिनी जाएगी, बल्कि यह एक साधारण हत्या मानी जाएगी। इस संशोधन के बाद आनंद मोहन के परिहार की प्रक्रिया आसान हो गई, क्योंकि सरकारी अफसर की हत्या के मामले में ही आनंद मोहन को सजा हुई थी।

आज जरा-जरा सी बात पर लोकतंत्र को खतरा बताया जाना आम हो गया है। अपने-अपने तरीके से लोग इसकी व्याख्या करने में लगे हैं। कॉंग्रेस नेता राहुल गांधी लंदन के कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में जाकर देश के लोकतंत्र खतरे में होने की बात करते है। देश की बुराई करते है संविधान को गलत बताते है। वहीं राहुल की संसद सदस्यता जाने के बाद कॉंग्रेस पार्टी के नेताओं ने कहा कि लोकतंत्र खतरे में है। कई विपक्षी दल के नेता इस तरह के बयान आए दिन देते रहते है पर आज जब नीतीश ने एक अपराधी को जेल से बाहर निकलने के लिए पूरा का पूरा संविधान बदल दिया तब किसी विपक्ष ने नेता ने उंगली क्यूँ नहीं उठाई। क्या आज लोकतंत्र पर खतरा उन्हें नजर नहीं आ रहा है। अपराधियों का साथ देकर उन्हे सांसद विधायक बनानवाले इन नेताओं को लोकतंत्र तब खतरे में नहीं दिखता जब ये गलतियाँ करते है।

हमारे देश के विपक्ष ने तो लोकतंत्र के खात्मे का सोच रखा है। सारे विपक्षी दल बार बार जनता को आगाह कर रहे हैं। राहुल गांधी, कांग्रेस पार्टी, कई सामाजिक संगठन और तमाम बुद्धिजीवी जन मिलकर यात्रा के बहाने लोकतंत्र को बचाने निकले हैं। लेकिन सवाल है कि क्या यह लोकतंत्र सिर्फ राहुल गांधी, नरेंद्र मोदी, कांग्रेस, भाजपा या कुछ लोगों का ही है? क्या यह लोकतंत्र भारत की जनता का नहीं है। जनता ने भी लोकतंत्र को बचाने के लिए अपना पूरा योगदान दिया है। लेकिन देश के कई नेताओं ने लोकतंत्र का स्तंभ ढहाकर इसे झूठ और नफरत के हथियार में बदल दिया है। नीतीश कुमार ने जिस तरह से कानून में परिवर्तन करके आनंद मोहन जैसे कुख्यात आरोपी को रिहा करने की चाल चली है वह देश की लोकतंत्र का सबसे बड़ा खतरा है जिसका खमियाजा भविष्य में बिहार और नीतीश कुमार को झेलना होगा।

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