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Saturday, September 21, 2024
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नीतीश कुमार का विपक्षी एकता प्लान: नई बोतल में शराब पुरानी  

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार 2024 में बीजेपी को हराने के लिए उन्नीस सौ सतहत्तर और उन्नीस सौ नवासी का फार्मूला पर काम कर रहे हैं। लेकिन क्या  यह प्लान बीजेपी को मात दे पाएगा यह बड़ा सवाल है।  

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पीएम मोदी को 2024 के लोकसभा चुनाव में हारने के लिए विपक्ष लामबंद हो रहा है। कुछ दिन पहले विपक्ष राहुल गांधी के लोकसभा सदस्यता रद्द होने पर एकजुटता  का रटा मार रहा था। लेकिन कहा जा रहा था कि यह एकता केवल राहुल गांधी कांड को लेकर ही थी। दरअसल, राहुल गांधी ने मोदी सरनेम को लेकर एक विवादित टिप्पणी की थी। जिसमें उन्होंने कहा था सभी मोदी सरनेम वाले ही चोर क्यों होते हैं ? इसके बाद सूरत कोर्ट ने राहुल गांधी को इस मामले में दो साल की सजा सुनाई थी,इसके बाद उनकी लोकसभा सभा की सदस्यता रद्द कर दी गई थी। जिसकी वजह से राहुल गांधी सांसद से पूर्व सांसद हो गए हैं। इसके बाद कांग्रेस ने कोर्ट के फैसले के खिलाफ धरना प्रदर्शन और न जाने क्या क्या किये।

अब एक बार फिर विपक्ष एकजुटता की राग अलाप रहा है। और इसकी जिम्मेदारी  बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार संभाल रहे हैं। दो दिन पहले ही नीतीश कुमार ने तेजस्वी यादव और मनोज झा के साथ दिल्ली में राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे से मुलाक़ात की थी।  इस मुलाकात की जो सबसे अलग तस्वीर सामने आई वह यह थी कि राहुल गांधी ने खुद  नीतीश कुमार की अगवानी की थी। शायद ऐसा पहली बार था कि राहुल गांधी से कोई मिलने गया हो और खुद अपने ऑफिस या घर से निकलकर उस शख्स की अगवानी की हो। इस मुलाक़ात की मीडिया में खूब चर्चा रही और अब जारी है।

उद्धव गुट के नेता संजय राउत ने शरद पवार और राहुल गांधी की मुलाक़ात के बाद शुक्रवार को कहा उद्धव ठाकरे से राहुल गांधी जल्द मुलाक़ात करेंगे। शरद पवार ने राहुल गांधी से दिल्ली में गुरुवार को मुलाक़ात की थी। बात दें कि  नीतीश कुमार जब दिल्ली में राहुल गांधी से मिले थे तब वे दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से भी मिले थे। तब केजरीवाल ने कहा था कि वे  विपक्ष के साथ हैं। इसके अलावा नीतीश ने कई और नेताओं से  मिले थे।

बहरहाल, इस मुलाक़ात से मुर्दा पड़ा विपक्ष एक बार फिर ज़िंदा हो गया है और मेल मुलाकात का दौर शुरू हो गया है। इसके साथ ही 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए शतरंज की बिसात बिछने लगी है। हालांकि, बीजेपी के खिलाफ विपक्षी एकता का असर कितना होगा यह तो चुनाव के बाद ही पता चलेगा। फिलहाल विपक्षी एकता और उसकी रणनीति पर बात करते हैं। तो ऐसे में यह सवाल उठ रहे हैं कि आखिर नीतीश कुमार ऐसा कौन सा फार्मूला लेकर आये की सभी विपक्षी नेता एकजुट होने का दम भर रहे हैं।

दरअसल, बिहार में अपनी जमीन खो चुके नीतीश कुमार को अब लोकसभा चुनाव ही सहारा है जो उनकी मिट्टी में मिलती छवि को नई पहचान दे सके,क्योंकि 2025 में बिहार विधानसभा चुनाव होना है। तो बताया जा रहा है कि नीतीश कुमार 2024 में बीजेपी को मात देने के लिए  “एक के बदले एक” फार्मूला पर आगामी लोकसभा का चुनाव लड़ने को लेकर विपक्ष को एकजुट कर रहे हैं।

ऐसे में इस फार्मूले पर विस्तार से चर्चा करने से पहले यह जान लेते हैं कि आखिर  विपक्ष के उम्मीदवार को जनता क्यों वोट देगी ? विपक्ष किस मुद्दे को लेकर आगामी लोकसभा चुनाव बीजेपी को घेरेगा यह बड़ा सवाल है। क्योंकि लोकसभा चुनाव में लगभग सात से आठ माह ही बचे हैं और विपक्ष यह तय नहीं कर पाया है कि किस मुद्दे पर पीएम मोदी को घेरा जाए।

यह तो रहा 2024 के लोकसभा चुनाव में मुद्दे की बात। अब दूसरा सवाल यह है कि इस प्लान के तहत विपक्ष का चेहरा कौन होगा ? इस पर निर्णय नहीं किया गया है। इतना ही नहीं इस फार्मूले के तहत लोकसभा चुनाव तक विपक्ष का चेहरा घोषित नहीं किया जाएगा। यानी बीजेपी का पहला सवाल यही रहेगा की विपक्ष का चेहरा कौन ? और विपक्ष इसका जवाब देते देते उलझता रहेगा। तो दोस्तों नीतीश कुमार का “एक के बदले एक” फार्मूला वह प्लान है जिसमें यह कहा जा रहा है कि बीजेपी के सामने एक सीट पर विपक्ष का एक ही साझा उम्मीदवार खड़ा किया जाएगा। जिससे वोट का बंटवारा न हो। लेकिन क्या विपक्ष यह फार्मूला कारगर साबित होगा ? क्योंकि अतीत में में देखने पर पता चलता है कि इस फार्मूला को विपक्ष के बजाय सत्ता दल को हिन् फ़ायदा हुआ है।

बताया जा रहा है इस फार्मूले को उन्नीस सौ सतहत्तर और उन्नीस सौ नवासी में विपक्ष आजमा चुका है। लेकिन दोनों बार कांग्रेस दो से तीन साल बाद सत्ता काबिज हो गई थी। लेकिन आज वही कांग्रेस विपक्ष में है। इस फार्मूले से विपक्ष को जीत मिली थी। लेकिन याद रहे विपक्ष  उन्नीस सौ सतहत्तर  के लोकसभा चुनाव में  जीत दर्ज की थी ,लेकिन उसमें कलह था।

जैसा कि आज है। हर विपक्ष का बड़ा नेता पीएम बनने का ख्बाब दे देख रहा है। उन्नीस सौ सतहत्तर के लोकसभा चुनाव में 542  में से कांग्रेस को मात्र 145 सीटें मिली थी, जबकि जनता पार्टी को 295 सीटें मिली थी। उन्नीस सौ सतहत्तर में चुनी गई सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई थी। और उन्नीस सौ अस्सी में चुनाव कराया गया।

अब बात उन्नीस सौ नवासी के लोकसभा चुनाव की। तो 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस को इसकी सिम्पैथी मिली और अगले चुनाव में कांग्रेस जोरदार वापसी की.लेकिन राजीव गांधी के कार्यकाल में बोफोर्स घोटाला, पंजाब में बढ़ता आतंकवाद, लिट्टे का बढ़ता प्रभाव इस सरकार की छवि को नुकसान पहुंचाया।

जिसके बाद उन्नीस सौ नवासी में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को मात्र 197 सीटों  पर जीत नसीब हुई थी जबकि विपक्ष को 143 सीटें मिली थी लेकिन अन्य दलों के साथ मिलने सरकार बनाई लेकिन लाल कृष्ण आडवाणी के के रथ यात्रा के बाद उपजे विवाद से इस सरकार की बलि चढ़ गई। तो कहा जा सकता है कि जोड़ तोड़ की सरकार जनता के हक़ में नहीं है।

फिर एक बार अतीत से वर्तमान में आते है। तो कहा जा रहा है कि कांग्रेस के विचारों वाले दलों को राहुल गांधी को एकजुट करने का जिम्मा दिया गया है। जिसमें उद्धव ठाकरे आदि शामिल हैं। ममता बनर्जी और केजरीवाल जैसे नेताओं को एकजुट करने के लिए नीतीश कुमार को जिम्मेदारी दी गई है। तो देखना होगा कि नीतीश का फार्मूला  विपक्ष के लिए कितना कारगर होगा। यह भी देखना होगा कि विपक्ष का चेहरा कौन बनेगा ? क्या ममता और केजरीवाल अपनी महत्वकाक्षा की बलि चढ़ाएंगे। राहुल गांधी की विपक्ष में क्या  भूमिका होगी यह भीं देखना दिलचस्प होगा ?

 
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