हरियाणा के नूंह में हुई हिंसा के बारे में दावा किया जा रहा है,यह घटना एक साजिश थी। अभी तक इस मामले में 41 एफआईआर दर्ज की गई है और 116 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। इन तमाम बातों के बीच सवाल यही है कि आखिर यह हिंसा क्यों भड़की और किसने हिंसा को भड़काया? क्या पुलिस प्रशासन इसके पीछे की साजिश को भांपने में नाकाम रहा। इसके साथ ही सवाल यह भी उठता है कि मेवात में बड़े पैमाने पर मुस्लिम संख्या कहां से आई ? इनका क्या है इतिहास?
दरअसल, हरियाणा के नूंह में हिंसा का तांडव सोमवार को यानी 31 जुलाई को शुरू हुआ। जो मंगलवार तक चलता रहा। उपद्रवियों ने सौ से ज्यादा गाड़ियों में आग लगा दी, दुकानों और आसपास के सामानों को भी आग के हवाले कर दिया। इस हिंसा में अब छह लोगों की जान जा चुकी है। बताया जाता है कि हिन्दू विश्व परिषद द्वारा हर साल बृजमंडल शोभायात्रा निकाली जाती है। इसी दौरान यह हिंसा हुई। यह शोभायात्रा पहाड़ियों से घिरे नल्लहड़ शिव मंदिर में समाप्त होनी थी।
इससे पहले ही हिंसा हो गई, जहां तीन हजार के आसपास लोग मंदिर में फंस गए थे। उधर, मंदिर से कुछ दूरी पर दंगाई उपद्रव मचा रहे थे, और इधर मंदिर में औरत और बच्चे दुबके हुए थे। जिन्हे बाद में सुरक्षा के साथ निकला गया। अब सवाल यह उठता है कि जब हर साल विहिप शोभायात्रा निकालता है, तो इस बार मुस्लिम समुदाय ने इस शोभायात्रा पर हमला क्यों किया, क्या यह सोची समझी साजिश है। तो कहा जा सकता है कि, हां, हरियाणा के नूंह में हुई हिंसा साजिश का हिस्सा है।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, बताया जा रहा है कि विहिप द्वारा निकाली गई शोभायात्रा में गौरक्षक मोनू मानेसर नामक युवक के शामिल होने की खबर सोशल मीडिया पर फैलाई गई। जिसके बाद मुस्लिम समुदाय ने इस शोभायात्रा पर गोलियां बरसाई और हमले किये। मुस्लिम समुदाय ने इतना बवाल कटा की जिसकी सीमा नहीं, राज्य सरकार को केंद्र से फ़ोर्स मांगनी पड़ी। तब जाकर दंगे पर काबू पाया गया। अब सवाल यह उठता है कि मोनू मानसेर से मुस्लिम समुदाय क्यों चिढ़ रहा है ? तो इसके बारे में कहा जाता है कि मोनू मानेसर पर फरवरी माह में दो गौ तस्करों नासिर और जुनैद को ज़िंदा जलाने का आरोप है। जो फरार बताया जाता है।
वहीं, मोनू मानेसर ने इस शोभायात्रा में खुद शामिल होने और लोगों के शामिल होने की अपील की थी। मगर कहा जा रहा है कि विहिप ने मोनू मानेसर को इस शोभायात्रा में शामिल नहीं होने के लिए कहा था। अभी तक पुलिस को उसके शोभायात्रा में शामिल होने के प्रमाण नहीं मिले है। बता दें कि मोनू मानेसर बजरंग दल का सदस्य है और गौरक्षक के तौर पर सक्रिय रहता है। बताया जाता है कि मोनू मानेसर के आने की खबर से मुस्लिम समुदाय उत्तेजित था और हंगामा और हिंसा के लिए यह समाज पहले से ही तैयार था।
अब सवाल यह कि जब हर साल शोभायात्रा निकाली जा रही थी। तो इस बार प्रशासन फेल कैसे हो गया। सीधे तौर पर देखा जाए तो प्रशासन की इस मामले में चूक हुई है। और यह चूक कहां हुई इसे अनदेखा नहीं किया जा सकता है। दूसरी बात यह भी सामने आ रही है कि शोभायात्रा में ज्यादा लोग शामिल हुए थे। जिसके हिसाब से पुलिस व्यवस्था कमतर थी। यह भी कहा जा सकता है कि पुलिस प्रशासन इस साजिश को भांपने में नाकाम रहा। एक तरह से कहा जा सकता है कि पुलिस प्रशासन की नाकामी साफ झलकती है।
इन तमाम बातों के साथ सवाल यह उठता है कि जिस तरह से नूंह सहित अन्य जिलों में उपद्रवियों ने बवाल काटा और संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया क्या यह सही है ? क्या यह उपद्रव बर्दाश्त करने लायक है ? क्या मानेसर का गुस्सा आम हिन्दुओं की जान लेकर मुस्लिम समुदाय ठंडा करना चाहता था। सबसे बड़ी बात यह कि इस मामले में कांग्रेस विधायक मम्मन खान का भी नाम सामने आ रहा है। उनका एक पुराना वीडियो सामने आया है। जिसमें यह कहते सुना जा सकता है कि “… अबकी याद रखना मेवात आया तो उसे प्याज की तरह न फोड़ी तो हम मेवाती नहीं। ” हालांकि, यह वीडियो जांच का विषय है। देखा जाना चाहिए सही है या गलत है।
अब बात उस मेवात की जिसकी खूब चर्चा है। मेवात पूर्वी राजस्थान, उत्तर प्रदेश और हरियाणा के निकटवर्ती क्षेत्रों में फैला हुआ है। जहां मेव मुस्लिम समुदाय निवास करता है। मेव मुस्लिम समुदाय के बारे में कहा जाता है कि इनका संबंध ईरान से है। जबकि अन्य का मत है यह समुदाय मीना जनजातियों से है। जिन्होंने इस्लाम कबूल कर लिया है। बताया जाता है कि मीणा जातियों ने 15 वीं और 17 वीं शताब्दी में इस्लाम धर्म अपना लिया था। आज भी इनके नाम हिन्दुओं के होते हैं और महिलाएं बुर्का नहीं पहनती है। इनके बारे में कहा जाता है कि यह समुदाय लूटपाट कर अपनी जीविका चलाता है। जिसकी वजह युवकों के शादी विवाह में दिक्क्तें भी आती। नूंह हरियाणा का सबसे पिछड़ा जिला बताया जाता है। 2011 की जनगणना के अनुसार मुस्लिमों की आबादी 80 प्रतिशत जबकि हिन्दू समुदाय की 20 प्रतिशत है।
बहरहाल, अब सवाल यही है कि इस मुद्दे पर जिस तरह से राजनीति शुरू हो रही है। उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि इस घटना को भी मुस्लिम हिन्दू दंगा से जोड़ दिया जाएगा और मुख्य मुद्दा भटक जाएगा। क्योंकि आने वाले समय में चुनाव होना है ? तो क्या राजनीति दल राजनीति छोड़ एक मुद्दे पर सहमत होंगे कि यह उपद्रव क्यों हुआ, जान माल को क्यों नुकसान पहुंचाया गया ?
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