योगी सरकार का न्याय है, विपक्ष का मुस्लिम तुष्टीकरण?

योगी सरकार का न्याय है, विपक्ष का मुस्लिम तुष्टीकरण?

आज देश में हर जगह एक ही बात की चर्चा हो रही है और वह है कुख्यात आरोपी अतीक अहमद की बेटे असद अहमद के एनकाउंटर के बारे में। कहा ये जा रहा था कि या तो अतीक अहमद का एनकाउंटर हो जाएगा या फिर अदालत ले जाते समय उसकी गाड़ी कही पलट जाएगी, लेकिन यहाँ लोग अतीक अहमद पर अपना ध्यान बनाए रखे और यूपी की एसटीएफ पुलिस ने झांसी में जाकर असद और शूटर गुलाम का ही एनकाउंटर कर दिया। ये दोनों ही आरोपी उमेश पाल के मर्डर के बाद से फरार थे। दोनों पर पाँच-पाँच लाख रुपए का इनाम था। दोनों के पास से यूपी पुलिस ने विदेशी हथियार बरामद किया।

लेकिन आज सवाल यह है कि इस एनकाउंटर को सांप्रदायिक का नाम देना क्या सही है? सांप्रदायिकता रंग देने से क्या हमारे विपक्ष को मुस्लिमों का वोट मिल जाएगा। आखिर क्या वजह है जो इस एनकाउंटर का विपक्ष विरोध कर रही है। असद के एनकाउंटर की बात पता चलने पर अतीक कोर्ट में फूट फूट कर रोया। वहीं देश के कई नेता है जो अतीक के दुख में दुखी होकर उसे सहानुभूति दे रहे है। सोचनेवाली बात यह है देश में कई नेता है जो सांप्रदायिकता का नाम देकर इस एनकाउंटर पर भी राजनीति कर रहे है।

देश के विपक्षी दल इस एनकाउंटर के खिलाफ एकजुट हो गए है। इस क्रम में यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इस एनकाउंटर को फर्जी बताते हुए कहा, “उत्तर प्रदेश की जो सरकार है यानी योगी आदित्यनाथ की सरकार भाईचारे के खिलाफ है।

इसी तरह बसपा की अध्यक्ष मायावती ने इस एनकाउंटर पर विरोध जताते हुए इसकी जांच कराने की मांग की है। वहीं उत्तर प्रदेश काँग्रेस ने तो यूपी की एसटीएफ को एक नया नाम दे दिया है। सुपारी टास्क फोर्स का।

AIMIM के अध्यक्ष असदुद्दीन औवेसी ने भी इस एनकाउंटर को पूरी तरह से फर्जी बताया। इतना ही नहीं बंगाल में ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल काँग्रेस पार्टी ने तो बकायदा इस एनकाउंटर को लेकर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस किया। और कहा कि उत्तर प्रदेश में फर्जी एनकाउंटर हो रहे है।

अब आप सोचिए ये सारे लोग अतीक अहमद के परिवार को बचाने के लिए सामने आ गए हैं। सारी विपक्ष की पार्टियां इस एनकाउंटर को सांप्रदायिकता का नाम देकर राजनीति कर रही है। वहीं इन सारे विपक्षी दल को असद अहमद के एनकाउंटर पर दुख हो रहा हैं।

लेकिन आज इन विपक्षियों से सवाल है कि जब इसी असद अहमद और अतीक अहमद के साथ बाकी लोगों ने उमेश पाल को उसके घर के सामने दिन दहाड़े जान से मार डाला था। तब उस दिन ये सब कहा थे। उमेश पाल का भी अपना परिवार था। खुद सोचिए आज हमारे देश की विपक्षी नेता असद अहमद के एनकाउंटर की आलोचना कर रहे है। क्या इन लोगों ने उमेश पाल की हत्या को लेकर उस दिन कोई प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी। ये तमाम विपक्षी दल और इनके नेता इसलिए इस एनकाउंटर को मुद्दा बना रहे है क्यूंकी इन्हें इस मामले में मुसलमानों के वोट दिख रहे है। और इन्हें अच्छे से पता है कि इससे समाज में ध्रुवीकरण हो सकता है। जिससे इन सभी को चुनावों में मदद मिल सकती है।

हालांकि देश में ये जो नेता है, यह सोचते है कि अगर इन्होंने अतीक अहमद का साथ दे दिया तो इनका उद्धार हो जाएगा। क्यूंकी अतीक अहमद मुसलमान है तो देश के सारे मुसलमान इनके साथ आ जाएंगे। इन्हें लगता है कि कोई भी मुसलमान जो आतंकवादी हो, या एनकाउंटर में मारा गया है तो उनके परिवार के साथ अगर ये खड़े हो जाएंगे तो देश के सभी मुस्लिम संगठनों की सहानुभूति इन्हें आसानी से मिल जाएगी। और देश के सारे मुसलमान इनके साथ खड़े हो जाएंगे।
पर आज सवाल यह है कि असद अहमद के एनकाउंटर की आलोचना करनेवाले इन विपक्षी दलों को क्या मुसलमान अपना वोट देंगे। हालांकि आज हमारा सवाल उन सच्चे मुसलमानों से है उन सच्चे नागरिकों से है कि क्या वे अतीक अहमद का साथ देंगे। अतीक अहमद, उसके बेटे और परिवार ने जो कुछ किया क्या वो उसे सिर्फ इसलिए सही मानते है क्यूंकी अतीक अहमद एक मुसलमान है। लेकिन हमारा मानना है कि देश में शायद ही कोई सच्चा देशभक्त होगा जो कहेगा की अतीक अहमद बेकसूर है और अतीक अहमद के साथ ऐसा नहीं होना था।

आज देश में असद के एनकाउंटर को हिन्दू- मुस्लिम में बाँट दिया गया है। तो आज हम आपको उस कुख्यात आरोपी विकास दुबे के बारे में बताना चाहेंगे। विकास दुबे भी एक बहुत बड़ा अपराधी था। 10 जुलाई 2020 को विकास दुबे की गाड़ी पलट गई थी, उसका भी एनकाउंटर हुआ था। उस समय भी लोगों ने ऐसे ही राहत की सांस ली थी। उस समय सभी ने कहा था कि जो हुआ अच्छा हुआ। ये एनकाउंटर सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही नहीं बल्कि पूरे हिंदुस्तान में काफी चर्चित रहा। इसके बाद राज्य की योगी सरकार और पुलिस को लेकर लोगों के बीच धारणा बनने लगी कि अब राज्य में अपराधियों के साथ इसी तरह का व्यवहार किया जाएगा।

असद अहमद की तरह ही विकास दुबे ने भी पुलिसवालों की हत्या की थी। और जब कोई अपराधी पुलिस पर हमला करता है तो उस अपराधी का यही अंजाम होता है। हालांकि इसमें किसी को कोई आपत्ति नहीं होना चाहिए। लेकिन आज विपक्ष के कई नेता है जो कह रहे है कि पुलिस ने असद का एनकाउंटर नहीं किया बल्कि लोकतंत्र का एनकाउंटर किया। ये तो देश के संविधान का एनकाउंटर है।

लेकिन लोकतंत्र की हत्या आज नहीं बल्कि उस दिन हुई थी जब अतीक अहमद ने बसपा के नेता राजू पाल की हत्या की थी। दिनदहाड़े उमेश पाल की हत्या की थी। लेकिन आज जो लोग असद के एनकाउंटर को धर्म से जोड़ कर देख रहे है। उन्हें देखना चाहिए की विकास दुबे का भी कुछ और धर्म था और आज असद का धर्म कुछ और है। विवाद करनेवालों को देखना चाहिए की यही यूपी पुलिस यदि असद को मारती है तो यही यूपी पुलिस विकास दुबे को भी मारती है।

इन तमाम विरोधों के बीच एक सवाल यह है कि न्याय अगर वर्षों नहीं दशकों तक समय लेगा अगर हमारी न्यायिक व्यवस्था न्याय देने में दशक लगा देगी तो एक आदमी की ज़िंदगी निकल जाएगी उसके बाद न्याय मिलेगा तो फिर देश की जनता को इसी तरह के एनकाउंटर की जरूरत महसूस होने लगती है। कई फिल्मों में इस तरह के एनकाउंटर को दिखाया जाता है उस समय वहाँ मौजूद हर व्यक्ति खुशी के मारे तालियाँ बजाता है। उस सीन को देख कर आप सोचते है कि वाकई में न्याय की असल जीत तो यही हुई है। और अगर यही लोग न्यायालय में चले जाते तो शायद न्याय मिलने में काफी वक्त लग जाता।

हालांकि वर्तमान में उत्तर प्रदेश की राजनीति अब काफी बदल चुकी है। पहले यूपी में सारी सरकारे एक ही नीति पर काम करती। ये नीति इस तरह की थी कि उस समय बड़े-बड़े अपराधियों को राजनीतिक संरक्षण दिया जाता था। जो लोगों को डरा कर चुनाव जीत सकते थे। यही वजह है कि उस जमाने में अतीक अहमद जैसे खूंखार अपराधी विधायक भी बने और सांसद भी बन गए क्यूंकी ये लोगों को डराकर उनसे वोट लेते थे। वहीं सरकार और नेता इन गुंडों का इस्तेमाल करते थे। लेकिन अब ये नीति बदल चुकी है। यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अब इन अपराधियों का डर लोगों के मन से खत्म करने की कोशिश कर रहे है। वहीं अब वोटों के लिए गुंडों को नहीं बल्कि आम जनता को संरक्षण मिलता है। और यही उत्तर प्रदेश में इंसाफ की असली रणनीति है। यही वजह है कि आज यूपी में दंगाई और बड़े-बड़े अपराधी पुलिस से डरते है।

सोचनेवाली बात है कि कुख्यात अपराधी अतीक अहमद आज इतना डरा हुआ है कि वो कह रहा है उसे यूपी की जेल में नहीं रहना है। अतीक अहमद को उत्तर प्रदेश की जेल में डर लगता है और ये डर लगना भी चाहिए। हालांकि इस एनकाउंटर के बाद देश दो भागों में बंट चुका है एक तरह वो विपक्षी दल है जो इस एनकाउंटर को सांप्रदायिक रंग दे रहे है तो दूसरी और दूसरी तरफ वो लोग है जो इस एनकाउंटर को सही बता रहे है, और कह रहे है कि सही इंसाफ मिला है। हालांकि इस एनकाउंटर पर जो राजनीति हो रही है इसी के आधार पर भविष्य में चुनाव लड़ा जाएगा, इस पर ध्रुवीकरण होगा। चूंकि अतीक अहमद मुस्लिम है इसलिए मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति शुरू हो जाएगी।

लेकिन आज देश में एनकाउंटर के बाद जो हिन्दू मुस्लिम वाला मुद्दा जो उठ रहा है, उसके पीछे सबसे बड़ी वजह हमारे देश के नेता ही है। ये नेता इस एनकाउंटर में हिन्दू-मुस्लिम देख रहे है। अत्याचारी इन्हें अत्याचारी नहीं दिखता। अपराधी इन्हें बेगुनाह लगता है। हालांकि इन तमाम विवादों के बीच यूपी से सीएम योगी आदित्यनाथ ने इस एनकाउंटर के लिए एसटीएफ की पीठ थपथपाई है और साफ किया है कि माफिया सरगना और अपराधियों के खिलाफ जीरो-टॉलरेंस की नीति जारी रहेगी। वहीं आज देश की जनता इस निर्णय से खुश है और वो जानते है कि वो किसके साथ है।

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