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Sunday, January 19, 2025
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देश में आई है भयंकर महामारी, न करें राजनीति और आपस में लड़ाई

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कोविड-19 की दूसरी लहर के बाद महाराष्ट्र सहित देश के कई राज्यों की स्थितियां खराब हो गई हैं. कई राज्य सरकारों को लगता है कि स्थितियां उनके नियंत्रण में नहीं हैं. वैसे भी पिछले लॉकडाउन के चलते कई राज्य सरकारों की आर्थिक स्थिति खराब है. राजस्व की वसूली उस स्तर पर नहीं हो पा रही है. लेकिन कोरोना की दूसरी लहर की वजह से उनके यहां स्थितियां नियंत्रण से बाहर होती नजर आ रही हैं तो अब वे राज्य ही चाहते हैं कि पिछली बार की तरह प्रधानमंत्री और गृह मंत्रालय ही केंद्रीय स्तर पर लॉकडाउन लगाने का फैसला ले और उसकी घोषणा भी करे. इसकी एक वजह यह भी है कि अगर केंद्र एक बार फिर 1887 के महामारी अधिनियम या 2005 के आपदा प्रबंधन कानून या दोनों के आधार पर लॉकडाउन लगाने का फैसला लेता है तो राज्यों को होने वाले नुकसान और इलाज आदि पर होने वाले खर्च की कम से कम आधी रकम केंद्र की तरफ से राज्यों को दिया जाना अनिवार्य होगा.

पिछले लॉकडाउन के दौरान उम्मीद की गई थी कि उस दौरान कामकाज बंद रहने के दौरान नियोक्ता अपने कर्मचारियों को तनख्वाह देते रहेंगे. यह बात और है कि जब महाबंदी बढ़ती गई तो नियोक्ताओं की भी स्थिति खराब होने लगी. तब मजबूरीवश अपने कर्मचारियों और मजदूरों को वे वेतन देने में नाकाम रहने लगे. इसके बाद शहरों से बेतहाशा पलायन बढ़ा. मजदूर भूखे-प्यासे, बदहवासी में अपने घरों को लौटने के लिए मजबूर हुए. ऐसे वक्त में कायदे से राजनीति को अपनी रोटी नहीं सेंकनी चाहिए थी. प्राकृतिक आपदा की वजह से उपजे बुरे हालात से निपटने के लिए राजनीति को एक होना चाहिए था, लेकिन राजनीति ने इसमें भी मीन-मेख निकालना शुरू कर दिया. लोकपीड़ा का राजनीतिक फायदा उठाने में विपक्ष, विपक्ष शासित राज्य सरकारें, नागरिक समाज और स्वयंसेवी संगठन जुट गए. इस हालत के लिए सिर्फ केंद्र सरकार को ही निशाने पर लिया गया.

किसी भी तरफ से यह सवाल नहीं उठा कि इस दौरान विपक्ष शासित राज्यों की भी अपनी जिम्मेदारी थी और वे भी अपनी जिम्मेदारी को पूरा करने में नाकाम हुए। लोकतंत्र के बहाने हम अपनी राष्ट्रीय स्मृति और सोच को भी दरकिनार कर रहे हैं. जहां समष्टि का भाव होना चाहिए, वहां भी हम अपनी राजनीतिक और व्यक्ति निष्ठा के हिसाब से कदम उठा रहे हैं. मौजूदा व्यवस्था में चूंकि राजनीति समाज का महत्वपूर्ण और नेतृत्वकारी अंग है, उसकी भी निजी लिप्साएं चिंतित करती हैं. राजनीति के लिए कोरोना की महामारी का भी इस्तेमाल को कम से कम विपक्ष शासित राज्यों के कदम साबित तो कर ही रहे हैं. इससे अंतत: राष्ट्र और उसके नागरिक का ही नुकसान होना है. इसलिए जरूरी है कि राजनीति अपने दोहरे चरित्र से बचे। इस भयंकर महामारी से सभी को मिलकर लड़ने की जरूरत है न कि राजनीति करने की।

 

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