Politics:राजनीति का मतलब ही है सामने वाले को मात देना…

Politics:राजनीति का मतलब ही है सामने वाले को मात देना…

राजनीति का मतलब ही है सामने वाले को किसी भी तरह से मात देना। उसके लिए चाहे कुछ भी करना पड़े। चाहे अपना ही क्यों न हो, सामने किसी की मैयत ही क्यों न पड़ी हो, राजनीति यह नहीं देखती, वह केवल सत्ता को देखती है,अति महत्वकांक्षा से परिपूर्ण,उत्तेजक, संघर्षमय, कटुता लिए, भले ही दूरदृष्टि हो, लेकिन सत्ता का मद यही कहता है। राज के लिए अनन्य आग्रह को भी नकार देना ही राजनीति है।

राज्यों द्वारा बार -बार ये कहना कि कोरोना वैक्सीन नहीं मिल रही है। इस पर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने वह बात कही जो सत्ता के मद में चूर कुछ राज्य उस चीज को नहीं देख रहे हैं जिसे आसानी से देखा जा सकता है।आंखों पर सत्ता का चश्मा चढ़ा हुआ है।
क्या इन राज्यों के सत्ताधारियों की स्मृति इतनी कमजोर है की अपनी कही हुई बात ही भूल जाते हैं या उसे अनदेखी कर देते हैं।या सत्ता का मद है। दिल्ली के मुख्यमंत्री बार-बार कहा कि सब कुछ सेना के हवाले कर दो। हम वैक्सीन खरीदेंगे , घर-घर जाकर लगाएंगे तमाम बातें जो एक प्रशासक को शोभा नहीं देती है, यही तो समय देशकाल संभालने का सीखने , कुछ कर गुजरने का ,लेकिन ‘रणछोड़’ केजरीवाल हर समय राजनीति कर लेते हैं. लगभग -लगभग सभी कांग्रेस शासित राज्यों यही कहा जो 50 साल के ‘युवा’ राहुल गांधी कहते हैं, राजनीति, धूर्त राजनीति, अवसरवादी राजनीति, राजनीति की परिभाषा यही कहती भी है।
डॉ. हर्षवर्धन ने कहा ” राज्यों द्वारा बार-बार ये कहना कि उन्हें पर्याप्त मात्रा में टीके नहीं मिल रहे हैं, इस तरह के शिकायत से जनता के बीच एक संकीर्ण राजनीतिक धारणा बन जाती है। मेरा अनुरोध है कि ऐसी धारणा न बनने दें। संकीर्ण राजनीतिक धारणा, कोरोना महामारी से निपटने के लिए सरकार के दृष्टिकोण को नुकसान पहुंचाती है।” 
लाख बार इन राज्यों ने कहा कि वैक्सीन हम खुद खरीदना चाहते हैं। हम खुद सब कुछ संभालना चाहते हैं, लेकिन अब वे लोभी और जनता से विश्वासघात कर रहे हैं। जनता को गुमराह कर क्या हासिल करना चाहते हैं, वोट या विश्वास। राजनीति है सत्ता की.
अब बात उस प्रोजेक्ट की जो समय विपक्षी पार्टियों जुबान पर माखन की तरह फिसल रहा है। कोरोना महामारी में सरकार को 12 विपक्षियों ने अपने सुझाव दिए हैं। इन पार्टियों ने अपने सुझावों में कहा है कि सेंट्रल विस्टा का काम रोक दिया जाय और इसका पैसा कोरोना महामारी में लगाया जाये। सवाल ये है की सरकार ने कब कि  कोरोना के लिए पैसा नहीं है. अगर ऐसा कहा गया होता तो  सेन्ट्रल विस्टा का काम बंद किया जा सकता था,बिना किसी वजह के  काम को रोकना बेकूफ़ी भरा कदम होगा। अब इन पार्टियों के नियत पर सवाल उठने लगा है कि सरकार ने 35 हजार करोड़ रूपये महामारी लिए आवंटित किया है तो विस्टा का काम क्यों रोका जाय। इसके आलावा भी कई मुद्दे हैं जो उठाये जा सकते हैं।
 सेंट्रल विस्टा परियोजना की घोषणा सितंबर 2019 में की गई थी. इसके तहत त्रिकोण के आकार वाले नए संसद भवन का निर्माण किया जाएगा जिसमें 900 से 1,200 सांसदों के बैठने की व्यवस्था होगी. इसका निर्माण अगस्त 2022 तक पूरा होना है. उसी वर्ष भारत 75वां स्वतंत्रता दिवस मनाएगा.
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