महाराष्ट्र के एनसीपी के नेता शरद पवार ने अडानी का समर्थन कर सभी राजनीतिक दलों को हैरान कर दिया है। इस बयान के बाद महाराष्ट्र से लेकर दिल्ली तक भूचाल आया हुआ है। लेकिन, सबसे बड़ा सवाल यह कि जब राहुल गांधी ने वीर सावरकर पर अपना बयान दिया था तो उस डैमेज कंट्रोल के लिए शरद पवार दिल्ली में राहुल गांधी और कांग्रेसी नेताओं को उन पर न बोलने की सलाह दे रहे थे। लेकिन, अब क्या कांग्रेस शरद पवार को इस संबंध में कोई सलाह देगी। अब इस टूटन को कांग्रेस कैसे संभालेगी यह देखना होगा।
आज यह जानने की कोशिश करते हैं कि आखिर राहुल गांधी या कांग्रेस शरद पवार के इस बयान से क्या सीख लेती है। दरअसल, शरद पवार ने ये भी कहा है कि जब हम शुरू में राजनीति करने उतरे थे तो हमें भी टाटा बिड़ला से खार था, यानी हम उसके खिलाफ थे ,लेकिन अब यह समझ में आता है कि उस समय हम गलत थे। हर बिजनेसमैन देश के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, उनकी देश को जरुरत है। उन्होंने यह भी कहा कि वाम विचारधारा के नेता पूंजीपतियों के विरोध में रहते हैं और पूंजियों के बंटवारे की बात करते हैं।
अब ऐसे में सवाल है कि क्या राहुल गांधी पूंजीपतियों के खिलाफ हैं। सवाल यह भी नहीं है कि कौन गलत है और कौन सही है। इस संबंध में गृह मंत्री अमित शाह भी कह चुके हैं कि अगर अडानी ने कुछ गलत किया है तो उसकी जांच होनी चाहिए। इतना ही नहीं उन्होंने यह भी कहा था कि अगर किसी व्यक्ति के पास अडानी के खिलाफ कोई सबूत है तो उसे लेकर कोर्ट जाएं। केवल झूठा आरोप लगाने से अडानी गलत साबित नहीं हो जाएंगे। तो सवाल यह है कि 20 हजार करोड़ के बारे में कांग्रेस जो आरोप लगा रही है। उसे लेकर कोर्ट क्यों नहीं जा रही है?
दूसरी बात यह कि क्या राहुल गांधी अभी तक राजनीति को समझ नहीं पाए हैं या ज्यादा अनुभव नहीं होने की वजह से कुछ भी बयान देते रहते हैं। जैसा की शरद पवार ने कहा है कि जब शुरुआत में राजनीति में उतरे थे तब टाटा बिड़ला के वे खिलाफ थे लेकिन अब ऐसा नहीं है। क्योंकि राजनीति समझ ने यह बताया कि क्या गलत है क्या सही है। वैसे ही क्या राहुल गांधी के पास भी अनुभव नहीं होने की वजह से वह अडानी के खिलाफ बोल रहे हैं ? लेकिन कांग्रेस के नेताओं को अनुभव है तो उन्हें बताना चाहिए कि क्या सही है, क्या गलत है।
ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जैसे जयराम रमेश, पी चिदंबरम या स्वयं सोनिया गांधी यह राहुल गांधी को नहीं बताती की उन्हें किस मुद्दे पर बोलना चाहिए ,किस मुद्दे पर नहीं बोलना चाहिए?
अगर ये कांग्रेसी नेता उन्हें बताते या समझाते है तो फिर राहुल गांधी उस मुद्दे को क्यों उठाते हैं जो उनके लिए और उनकी पार्टी के लिए नुकसानदायक है? या यह भी हो सकता है कि राहुल गांधी इन नेताओं की सुनते नहीं होंगे। या उनकी बातों को अमल में लाने के बजाय उसे अनसुना कर देते होंगे। यह मै नहीं कह रही हूं ,बल्कि ऐसा कांग्रेस के नेता कह चुके हैं। जिसमें कांग्रेस के पूर्व नेता गुलाम नबी आजाद, हिमंत बिस्वा सरमा आदि नेता कह चुके हैं कि राहुल गांधी कांग्रेसी नेताओं की बातों को ध्यान से नहीं सुनते हैं।
अब इसी तरह का बयान आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री किरण रेड्डी ने भी दिया है। शुक्रवार को बीजेपी में शामिल होने के बाद उन्होंने कहा कि मेरा राजा बहुत बुद्धिमान है। वह खुद नहीं सोचता, न ही किसी की सुनता है। यह इस बात का सबूत है कि राहुल गांधी ने कभी भी गंभीरता से राजनीति नहीं की। राहुल गांधी खुद को इस देश का राजा समझते हैं। जैसा की वे कह चुके है कि मै सावरकर नहीं हूं, मै गांधी हूं और गांधी कभी क्षमा नहीं मांगते है।
यह इस बात की ओर इशारा करता है कि राहुल में गांधी सरनेम को लेकर वहम भरा है। वे और कांग्रेस के नेता बार बार गांधी परिवार की दुहाई देते हैं ,लेकिन क्या देश एक परिवार से चलेगा? यह बड़ा सवाल है, जिसे जनता को ही नहीं, बल्कि कांग्रेस के नेताओं को भी समझना होगा। देश को वहम से नहीं चलाया जा सकता है।
बहरहाल, यह साबित हो गया कि राहुल गांधी राजनीति में नौसिखिया हैं और किसी कांग्रेसी नेताओं की बात नहीं सुनते हैं। न ही उनकी बातों पर अमल करते हैं। अब बात शरद पवार के उस बात की जिसमें उन्होंने कहा है कि पूंजीपतियों का विरोध वाम दल के नेता करते हैं। जैसा वर्तमान में राहुल गांधी कर रहे हैं, तो क्या यह सच है कि राहुल गांधी का सलाहकार कोई वामपंथी विचारधारा वाला नेता है।
क्योंकि, नफ़ा नुकसान की जानकारी होने के बावजूद राहुल गांधी अडानी-अंबानी को लेकर पीएम मोदी को घेरते रहते हैं। दरअसल, ममता बनर्जी और कांग्रेस के बीच की दूरी का कारण भी वाम नेता की पार्टी से नजदीकियां है। इस संबंध में हमारे यूट्यूब वीडियो “ममता की कांग्रेस से इसलिए दूरी,विपक्ष का ये है प्लान,” में इस संबंध में विस्तार से बात किया गया है। जिसमें यह बताया गया है कि ममता बनर्जी कांग्रेस से इसलिए नाराज है कि राहुल गांधी सीताराम येचुरी से सलाह मशविरा लेते है। जिसे ममता बनर्जी कभी पसंद नहीं करती हैं।
गौरतलब है कि ममता बनर्जी ने वाम दल की सरकार को बेदखल कर ही बंगाल में लगातार तीन बार से सत्ता पर काबिज है। कहा जा रहा है कि सीताराम येचुरी कांग्रेस के नजदीक हुए हैं और राहुल गांधी उनसे सलाह लेते रहते हैं जो ममता बनर्जी को कतई पसंद नहीं है। तो यह कहा जा सकता है कि राहुल गांधी वर्तमान में वाम विचारधारा के लपेटे में हैं जो किसी का भी भला नहीं कर सका। 35 साल तक वामदलों की बंगाल में सत्ता रही,लेकिन जिस तरह से वहां से कारोबारी अपना बोरिया बिस्तर समेट कर भागे और आज बंगाल उद्योग-धन्धो के लिए तरसने लगा था।
बंगाल का नंदीग्राम और सिंगुर का विवाद आज भी लोगों के जेहन है। नैनो कार के लिए टाटा द्वारा किया गया भूमि अधिग्रहण विवादों की भेंट चढ़ गया था। बाद में टाटा ने दुनिया की सबसे सस्ती कार बनाने के लिए गुजरात में भूमि अधिग्रहण कर संयंत्र का निर्माण किया था। और टाटा नैनो दुनिया के सामने आई थी। तो क्या राहुल गांधी भी पूंजीपतियों को वाम विचारधारा से प्रेरित होकर टारगेट कर रहे हैं, क्या ममता की नाराजगी सही है? यह तो आने वाला वक्त ही बतायेगा?
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