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Saturday, September 21, 2024
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अतीक अशरफ का कातिल मीडिया?  

गुजरात से प्रयागराज लाते समय  माफिया अतीक कहा था कि मीडिया की वजह से वह ज़िंदा है।  लेकिन वही मीडिया  उसके लिए काल बन गई जानिये कैसे ?

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यूपी के प्रयागराज में माफिया अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ को गोली मारकर हत्या कर दी गई। इसके बाद से विपक्ष उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था पर सवाल उठा रहा है। लेकिन यह सवाल विपक्ष नहीं पूछ रहा है कि गुजरात से कई हजार किलोमीटर की दूरी तय कर जब अतीक अहमद को प्रयागराज लाया तब सुरक्षा की व्यवस्था कैसी थी। इस पर विपक्ष कुछ नहीं पूछ रहा है। विपक्ष यह कहता है कि यूपी की सरकार अपराधियों की गाड़ी पलटवा देती है।

मीडिया भी इस बात को तूल देती रही और जिस तरह से मीडिया ने अपराधियों का कवरेज किया है। वह किसी पत्रकारिता की किताब में नहीं पढ़ाया गया है। टीवी चैनलों और मीडिया घरानों को बताना चाहिए कि ऐसी कौन सी वजह थी की दो बार गुजरात से लाये गए अतीक अहमद के पीछे पीछे मीडिया चल थी। यह कौन सी पत्रकारिता थी, किस पत्रकारिता की पुस्तक में यह लिखा है कि सरकारी काम में हस्तक्षेप करो ?

जिस स्थान पर अतीक और अशरफ को गोली मारी गई उस स्थान पर मीडिया का हुजूम था। जहां तीनों हमलावर पत्रकार के रूप में आये थे और अतीक अहमद और अशरफ को अपना निशाना बनाये। अब सवाल यह है कि आखिर साढ़े दस बजे कौन सी पत्रकारिता की जा रही थी। जब पूरी दुनिया को मालूम है कि अतीक और अशरफ को जान का खतरा है, इसके बावजूद मीडियाकर्मी मेडिकल जांच के लिए लाये गए अपराधियों से सवाल जवाब करती नजर आ रही है। जहां तीनों हमलावरों ने माफिया भाइयों को अपना शिकार बनाया।

एक तरह से कहा जा सकता है कि दोनों माफिया को मारवाने में अगर किसी का हाथ है तो वह है मीडिया। इस हत्या के लिए अगर किसी को जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए तो मीडिया को। अन्यथा इस मामले में पुलिसकर्मी को दोष देना मुद्दे की अनदेखी करना होगा। मीडिया ने मुख्य मुद्दे को ही बदल दिया। जिस तरह से मीडिया ने माफिया भाइयों के पीछे पड़ी थी। उसमें कहीं न कहीं इस हत्या के लिए मीडिया को आत्ममंथन करने की जरुरत है। उसे आत्मनिरीक्षण करने की जरुरत है। सवाल पूछा जाना चाहिए कि मीडिया को माफिया के पीछे पीछे क्यों भागना पड़ रहा था। क्या वे सेलिब्रेटी थे। जिसकी पहली झलक दिखाकर टीवी चैनल टीआरपी बढ़ाना चाहते थे।

गुजरात के साबरमती जेल से प्रयागराज लाते समय जिस तरह से अतीक अहमद के पीछे पीछे मीडिया हाउसेस की गाड़ियां चल रही थी। वह मुख्यधारा की मीडिया हो नहीं सकती। ऐसे मीडिया घराने केवल टीआरपी पाने के लिए  देश की सुरक्षा से खिलवाड़ करते हैं। कोई भीं सनसनीखेज न्यूज़ चलाते रहते हैं। अतीक अशरफ के मामले में भी वही हुआ। भले सरकार इन बातों को दरकिनार कर दे. लेकिन यह सच्चाई है। मीडिया को ऐसे कवरेज से बचना चाहिए या सरकार को ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए जहां मीडिया न पहुंचे, या ऐसी अवस्था में मीडिया को प्रतिबंधित कर देना चाहिए। जिस तरह से दो बार गुजरात से प्रयागराज लाते हुए अतीक की सरकारी गाड़ी का मीडियाकर्मियों ने पीछा किये यह सुरक्षा में चूक है। और ऐसा ही ये तीनों हमलावरों ने किया, तो उन पर किसे संदेह होगा ?

गुजरात से एक अपराधी को लाते हुए जिस तरह से टीवी चैनल कवरेज किये इस पर मीडिया को सोचना चाहिए। मीडिया को आत्ममंथन करना चाहिए कि इस तरह के कवरेज से जनता में क्या संदेश जा रहा है। इस दौरान जब मीडिया से अतीक अहमद यह कहता है कि अगर हम आज ज़िंदा है तो आप लोगों की वजह से, मीडिया की वजह से। तो क्या जनता में यह अच्छा संदेश जा रहा है। अरे उस इंसान को हीरो बनाया जा रहा है जो कई लोगों के मौत का जिम्मेदार है और लोगों में दहशत पैदा किया हुआ है।

लेकिन टीआरपी के नशे में चूर मीडिया ने जिस तरह से माफिया का महिमामंडन किया वह अक्षम्य है। जिस तरह से मीडिया हाउसों ने दोनों माफिया भाइयों के मुंह में बूम घुसेड़ने की कोशिश की यह सारी दुनिया ने देखा है। अब जब अतीक अहमद और उसका भाई अशरफ मारा गया है तो मीडिया को सोचने की जरुरत है कि कब, कहां, कैसे और क्यों जैसे मामलों के लिए माफिया का पिछलगू नहीं होना चाहिए।

बल्कि, उनके कारनामों का खुलासा करना चाहिए लेकिन मीडिया उमेश पाल हत्याकांड के बाद केवल  टीआरपी वाली खबर चलाई है। मीडिया ने यह नहीं बताया कि एक रिक्शा चालक के बेटे के पास अरबों की सम्पत्ति कहां से आई। मीडिया ने अखिलेश यादव से यह नहीं पूछा कि एक बदमाश को बार बार क्यों विधायक बनाया गया। मीडिया ने यह नहीं पूछा कि अतीक अहमद तुम क्यों अपने मासूम बच्चे को इस अपराध की दुनिया में ढकेल दिए जो अब मारा मारा फिरता रहा और एक दिन पुलिस की गोली का शिकार हो गया। मीडिया यह पूछती रही कि इस बार भी क्या गाड़ी पलटेगी। अगर नहीं पलटी तो क्यों,? क्या यह मीडिया का सवाल हो सकता है।

प्रयागराज में तीनों हमलावर मीडियाकर्मी के रूप में मौके पर पहुंचे थे। भले अब मीडिया यह सवाल कर रहा है कि इस घटना के दौरान पुलिस सुरक्षा कहां थी तो मीडिया वालों को सोचना चाहिए कि हमलावर भी पत्रकार के ही भेष में आये थे। क्या पत्रकार यह बताएंगे कि वे अपने माथे पर पत्रकार लिखकर जाते हैं या यहां गए थे। साफ़ है कि कोई पत्रकार गले में पहचानपत्र ही लेकर जाएगा वैसे ही ये हमलावर भी किये थे। कोई भी पुलिस उन्हें क्यों रोकती। अगर उन्हें रोकने का प्रयास किया जाता तो मीडिया अभिव्यक्ति की आजादी की दुहाई देकर टीवी स्किन को काला करने पर आमादा हो जाती। भले टीवी चैनलों के पत्रकार गला फाड़ फाड़कर चिल्ला रहे हो कि पुलिस सुरक्षा क्या कर रही थी। उसका इंतजाम क्या था, खुफिया एजेंसिया क्या कर रही थी।

ये बातें कह कहकर मीडिया अपनी नाकामी ही छुपायेगा। अगर मेडिकल के लिए लाये गए माफिया भाइयों को इन पत्रकारों से बात नहीं करने दिया गया होता तो यह हादसा नहीं होता। मीडिया से भी सवाल पूछा जाना चाहिए कि इतने बड़े माफिया और उन्हें जान का खतरा होने के बावजूद देर रात  मीडियाकर्मी दोनों माफिया भाइयों से बाइट क्यों ले रहे थे।

बहरहाल, केंद्रीय गृह मंत्रालय ने पत्रकारों के लिए एसओपी बनाई जाई जाएगी। इसके तहत पत्रकारों की सेफ्टी और सुरक्षा का ध्यान रखा जाएगा। इसके साथ सरकार को यह गाइड लाइन बनानी चाहिए की बड़े अपराधियों सेमीडिया को मिलना चाहिए की नहीं। वहीं, अब अगर शासन प्रशासन अभी भी नहीं चेता तो ऐसी घटनाएं भविष्य में होती रहेंगी। ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए जरुरी है कि ऐसे खतरनाक लोगों को मीडिया से दूर रखा जाए। सबसे बड़ी बात यह है कि ऐसे मामले में मीडिया का साथ होना सबसे बड़ा रिस्क है। जिस सुरक्षा घेरे में माफिया भाइयों को रखा गया था। लेकिन इन माफिया भाइयों तक अगर कोई पहुंच रहा था तो केवल मीडिया। आज मीडिया ही दोनों भाइयों की काल बन गई। बहरहाल, इस घटना के बारे में बहुत बातें कही जा रही हैं, लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह कि मीडिया ने जिस तरह अतीक के आवागमन की जानकारी टीवी पर देता रहा। क्या यह सुरक्षा के लिहाज से सही है। यह निर्णय जनता करे।

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