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Sunday, November 10, 2024
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पवार को अडानी का समर्थन, अधर में MVA

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NCP प्रमुख शरद पवार का हाल ही में NDTV पर इंटरव्यू हुआ। इस इंटरव्यू में पवार ने जिस मकसद से अपनी बात रखी, वह सफल भी हुआ। पवार ने जो कहा उससे देश की राजनीति में हलचल मच गई है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी की बत्ती गुल हो गई क्यूंकी इस इंटरव्यू ने साफ इशारा कर दिया है कि महाराष्ट्र की राजनीति में भूचाल आने वाला है। लगभग आधे घंटे के साक्षात्कार में पवार ने जो कहा, उसके मुख्य अंश विपक्ष को नाराज कर रहे हैं।

इंटरव्यू के दौरान शरद पवार ने कहा हिंडनबर्ग रिपोर्ट पर हल्ला करने की कोई जरूरत नहीं थी। इस रिपोर्ट का उद्देश्य एक उद्योग समूह को लक्षित करना था। अगर कुछ गलत हुआ है तो सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में एक कमेटी इसकी जांच कर रही है। इसलिए, संयुक्त संसदीय समिति यानी जेपीसी की कोई आवश्यकता नहीं है।

पवार देश में उद्योगपतियों को निशाना बनाने वाली वामपंथी विचारधारा पर भी बरसे। पवार ने आगे कहा “हम विपक्ष में एकता चाहते हैं, लेकिन हम जैसे कुछ लोगों को लगता है कि विकास के मुद्दे इसकी नींव होनी चाहिए। लेकिन वाम दल अपनी मानसिकता छोड़ने को तैयार नहीं है। पवार ने समझाया, “विपक्ष की एकता तब तक असंभव है जब तक कि एक आम एजेंडा और दिशा न हो।”

2024 में आएगा तो मोदी… इंटरव्यू में पवार ने एक वाक्य में जो कहा, उसका सार यही है। उन्होंने क्या कहा, क्यों कहा और इसके क्या परिणाम हो सकते हैं, इस पर चर्चा होनी चाहिए। पवार की नीति हमेशा से ही केंद्र के इर्द-गिर्द मंडराते रहने की है। उन्होंने विदेशी नागरिकता के मुद्दे पर कांग्रेस नेता सोनिया गांधी से बगावत कर दी। 1999 में अलग पार्टी बनाई, लेकिन उसी साल सत्ता के लिए कांग्रेस से हाथ मिला लिया, यह पवार का इतिहास है।

पवार ने स्पष्ट स्वीकार किया है कि विपक्षी एकता संभव नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का परोक्ष रूप से पक्ष लिया गया है। उन्होंने साल 2024 में होनेवाले लोकसभा चुनाव की दिशा को पहचान लिया है और मुहर लगा दी है कि 2024 में नरेंद्र मोदी ही प्रधानमंत्री होंगे।

पवार ने इस इंटरव्यू के माध्यम से कई लोगों को नाखुश कर दिया है। उन्होंने न सिर्फ राहुल गांधी को टारगेट किया है बल्कि शिवसेना बालासाहेब ठाकरे की पार्टी के प्रमुख उद्धव ठाकरे, उनके चिरंजीव आदित्य और महाविकास अघाड़ी के प्रवक्ता संजय राउत को भी टारगेट किया। पवार ने दिखा दिया है कि इन तीनों की कोई अहमियत नहीं है। इन तीनों ने पिछले कुछ दिनों में गौतम अडाणी के कंधे पर बंदूक रखकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को निशाना बनाया था।

इंटरव्यू के दौरान पवार के कहा, ‘उद्योगपतियों की देश को जरूरत है, राउत का कहना था कि इनके बिना अर्थव्यवस्था को गति नहीं मिल सकती, अर्थव्यवस्था को मजबूती नहीं मिल सकती। अडानी के नाम पर चिल्ला रहे राउत को शांत होना पडा। बेशक इस तरह का उलटफेर करते हुए उन्होंने पवार स्टाइल में यह कहकर संतुलन बनाने की भी कोशिश की है कि ‘मोदी ने एक उद्योगपति की मदद के लिए एलआईसी, एसबीआई के पैसे का इस्तेमाल किया।’

महाविकास अघाड़ी की रणनीति का इस्तेमाल कर पवार एक बार राज्य में सत्ता बनाने में सफल रहे। हालांकि इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि दोबारा उसी रणनीति का इस्तेमाल करके सत्ता हासिल की जाएगी। इसलिए इस इंटरव्यू के बाद यह तर्क दिया जा रहा है कि क्या पवार कुछ अलग सोच रहे हैं। सत्ता मिलने पर किसी को पवार की परवाह नहीं है। इस मामले को उनकी पार्टी ने 2014 में भाजपा को एकतरफा समर्थन देकर प्रूफ किया है।

उद्धव ठाकरे ने मोदी की आलोचना कर वापसी के रास्ते काट दिए हैं। लेकिन महाविकास अघाड़ी के सत्ता में आने के बाद भी पवार परिवार व्यक्तिगत तौर पर मोदी की आलोचना करने से हमेशा परहेज करता रहा है। पवार से बातचीत के बाद संजय राउत को सफाई देनी पड़ी कि महाविकास अघाड़ी पर कोई असर नहीं पड़ेगा। हालांकि कांग्रेस की ओर से अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी गई है।

लेकिन जाहिर है कि अडानी के साथ खड़े पवार की यह तस्वीर कांग्रेस को पसंद नहीं आएगी। पवार ने इस इंटरव्यू में कई ऐसे बयान दिए हैं जिससे राहुल गांधी का मुहँ खुला का खुला रह गया। कांग्रेस ही नहीं, बल्कि सोशल मीडिया पर बीजेपी और मोदी के खिलाफ लगातार नारेबाजी करने वाले तथाकथित बुद्धिजीवियों और माविआ के पालतू पत्रकार भी पवार के निशाने पर हैं।

7 मार्च को अजित पवार अपना बेड़ा छोड़कर अचानक गायब हो गए, उनके फोन भी बंद हो गए, जिससे कई लोगों की जान चली गई। दरअसल पिछले साल ही जब एकनाथ शिंदे के शिवसेना तोड़ने के बाद नेताओं के फोन बंद हुए तो कई लोगों के पसीने छूट गए। ऐसी अफवाहें उड़ने लगी कि अजीत पवार जल्द ही राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में छोड़कर भाजपा में शामिल होंगे। सुबह-सुबह शपथ ग्रहण समारोह के बाद अजित पवार को शक की निगाह से देखा जाता है। लेकिन एनडीटीवी को दिए इंटरव्यू के बाद शरद पवार के खुद बीजेपी में शामिल होने की आशंका कई लोगों को परेशान कर रही है।

शरद पवार अपनी राजनीतिक आत्मकथा लोक माझे सांगाती के पृष्ठ संख्या 123 पर लिखते हैं, “गौतम अडानी का नाम अवश्य लिया जाना चाहिए। हाल में इनका काफी हद तक दबदबा रहा है। मैं इस युवा उद्यमी को कई सालों से जानता हूं। अविश्वसनीय रूप से सहज और सरल! उसने अपना वर्तमान साम्राज्य शून्य से खड़ा किया है। इस शख्स का उद्यम स्थानीय स्तर पर कुछ छोटी-छोटी चीजें बेचने से शुरू हुआ। इसके बाद गौतम ने कुछ छोटे व्यवसाय शुरू करके कुछ पैसे जमा किए। फिर वह हीरे के कारोबार में उतर गया। पैसा भी बनना था, लेकिन गौतम को इसमें कोई दिलचस्पी नहीं थी। उनकी महत्वाकांक्षा बुनियादी ढांचा निर्माण उद्योग में उतरने की थी। पवार ने यह भी उल्लेख किया कि यह युवा उद्यमी जो दिन-रात काम करता है और बहुत सरल है, उसके पैर जमीन पर हैं। अदाणी नाम पर जो भी विवाद रास्ते से लेकर संसद तक में देखने मिली उसमें पवार परिवार ने चुप्पी ही साधा। और पवार की यह किताब जिसमें उन्होंने वास्तव में अदानी की योग्यता का गुणगान किया है यह अदाणी के विरोधियों के गाल पर तमाचा मारने जैसा है।

हालांकि शरद पवार के अडानी मुद्दे को लेकर दिए बयान के बाद कांग्रेस नेता अलका लांबा ने शरद पवार पर हमला बोला, उन्होंने ट्वीट किया, “डरे हुए, लालची लोग ही आज अपने निजी हितों के चलते तानाशाह सत्ता के गुण गा रहे हैं, देश के लोगों की लड़ाई एक अकेले राहुल गांधी लड़ रहे हैं। शरद पवार के बयान के बाद बाद कॉन्ग्रेस नेता जयराम रमेश ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा था कि शरद पवार और उनकी पार्टी इस मुद्दे पर अलग विचार रख सकती है लेकिन विपक्षी के अन्य 19 दल इस मुद्दे पर एक हैं।

अदाणी का नाम लेकर विपक्षी ने मोदी को घेरा लेकिन शरद पवार का बयान यह मोदी से भी नजदीकियाँ बढ़ाता हुआ प्रतीत हो रहा है। साल 2017 में मोदी सरकार ने पहले टर्म में शरद पवार को पद्म विभूषण से सम्मानित किया था। तब भी ऐसे सवाल उठे थे। तो पिछले साल पीएम मोदी से अचानक उनकी मुलाकात ने सियासी सस्पेंस बढ़ाया था। शरद पवार के बाद महाराष्ट्र में विपक्ष के नेता अजित पवार ने एक बार फिर पीएम नरेंद्र मोदी की तारीफ में कसीदे पढ़ें। उन्होंने कहा कि नरेंद्र मोदी के नाम का इस्तेमाल कर बीजेपी 2014 के चुनाव में बहुमत के साथ सत्ता में आई और हर राज्य में अपनी पकड़ मजबूत बनाई।

एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार ने अपनी सियासी गुगली से देश की सियासत में सस्पेंस बढ़ा दिया है। उन्होंने कांग्रेस सहित अधिकतर विपक्षी दलों के स्टैंड के विपरीत बयान देकर विपक्षी एकता पर संदेह के बादल फैला दिए। हालांकि उनके बयान के एक दिन बाद खुद पवार और तमाम दूसरे नेताओं ने शरद पवार के बयान को अंडरप्ले करने की कोशिश की और ‘ऑल इज वेल’ का संदेश देने की कोशिश की। हालांकि उन्हें भी पता है कि पवार कुछ भी बिना उद्देश्य के नहीं कहते हैं। शरद पवार के बयान ने विपक्षी एकता की कोशिशों को अचानक ब्रेक लगा दिया है। महाराष्ट्र की राजनीति में शरद पवार ऐसे नेता हैं जिन्होंने पिछले पचास साल से लगातार यहां की राजनीति में अपनी अहमियत बरकरार रखी है। नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी के नेता शरद पवार की शख्सियत इतनी बड़ी जिसे लेकर कहा जाता है कि महाराष्ट्र की पूरी राजनीति उनके इर्द गिर्द घूमती है। इससे फर्क नहीं पड़ता कि वो सत्ता में हैं या नहीं पवार की पावर पॉलिटिक्स हर पार्टी समझती है। इसलिए शरद पवार का दिया गया बयान यह विपक्षीयों को भयभीत कर रहा है।

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