अजित बनाम शरद का संघर्ष है इस्तीफा!

कहा जा रहा है कि शरद पवार ने अजित पवार के हाव भाव को देखकर ही इस्तीफा देने का ऐलान किया है।  कुछ समय से अजित के तेवर बगावती हो चले थे। जिसे रोकने के लिए शरद पवार ने गया कदम उठाया  है।

अजित बनाम शरद का संघर्ष है इस्तीफा!

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शरद पवार को अपने फैसले वापस लेने के लिए एनसीपी नेता और कार्यकर्ता दबाव बना रहे हैं।  आधा दर्जन जिलाध्यक्षों ने पद से इस्तीफा दे दिया है। हालांकि, शरद पवार ने मंगलवार को अपने फैसले पर विचार करने के लिए दो से तीन दिन का समय मांगा है। लेकिन क्या शरद पवार इस बीच कोई ठोस फैसला लेंगे? क्या अपने फैसले को पलटेंगे ? या अपने निर्णय पर कायम रहेंगे यह बड़ा सवाल है। अगर शरद पवार अपने फैसले को पलटते है तो इसका कारण शीशे की तरफ साफ़ होगा। अगर अपने फैसले पर टिके रहते हैं तो कहा जा सकता है कि शरद पवार ने एक तीर से कई निशाने किये। बहरहाल, शरद पवार को एक ही दिन हुए हैं इस्तीफा दिए तो आगे आगे देखिये होता क्या है।

यहां आगे बढ़ने से पहले ही बता देना चाहता हूं कि इस्तीफा की पटकथा शरद पवार ने ही लिखी है। तो साफ़ है कि शरद पवार को इसका “द एंड” भी पता होगा। क्योंकि अजित पवार ने कल यानी मंगलवार को कहा था कि शरद पवार 1 मई को ही इसकी घोषणा करने वाले थे। लेकिन महाविकास अघाड़ी की रैली की वजह से अपने इस्तीफे की घोषणा नहीं किये। इससे पहले 18 अप्रैल को सुप्रिया सुले ने भी कहा था कि 15 दिन के अंदर दो बड़े धमाके होंगे। एक राज्य में और दूसरा दिल्ली में होगा। इसके अलावा उनका रोटी बदलने वाला बयान आने के बाद ही कहा जाने लगा था कि शरद पवार एनसीपी में बदलाव करने के मूड में हैं। हालांकि, किसी को यह अनुमान नहीं था कि शरद पवार खुद ही अचानक अध्यक्ष पद छोड़ने की घोषणा कर देंगे।

अब सवाल यह है कि शरद पवार ने जब पहले ही रोटी बदलने यानी नेतृत्व बदलने की बात कर दिए थे तो फिर दो से तीन दिन का समय क्यों मांगा ? क्या शरद पवार भी बाला साहेब ठाकरे की तरह पावर गेम खेल रहे हैं। बताया जाता है कि 1992 में जब बालासाहेब ठाकरे के खिलाफ आवाज उठने लगी थी तो उन्होंने अपने मुखपत्र “सामना” में लेख लिखकर पार्टी से इस्तीफा देने की घोषणा की थी।

इसके बाद बालासाहेब ठाकरे से कार्यकर्ताओं की भावना का सम्मान करते हुए अपने कदम पीछे ले लिए थे। तो क्या शरद पवार भी बालासाहेब ठाकरे जैसा कदम उठाया है ? दो से तीन दिन का समय लेने के पीछे की वजह क्या हो सकती है। शरद पवार भी देखना चाहते हैं कि इस समय मेरे साथ कौन कौन खड़ा है। इतने दिनों में साफ हो जाएगा कि पार्टी पर उनकी कितनी पकड़ है और उनके साथ कौन कौन हैं ? उसी हिसाब से आगे  चलकर निर्णय लेंगे।

दूसरा सवाल यह कि शरद पवार क्या अपने फैसले को पलटेंगे यानी एनसीपी द्वारा यह कहा जाएगा कि कार्यकर्ताओं और नेताओं के दबाव में उन्होंने अपना फैसला बदल दिया है। तो साफ़ हो जाएगा कि शरद पवार ने अजित पवार के बढ़ते कद को कतरने के लिए यह सब खेल रचा था। जिस तरह से अजित पवार ने इधर कुछ दिनों से बगावती तेवर दिखाए थे। उससे शरद पवार आहात थे, उन्हें पता है कि वे कोई कदम नहीं उठाते हैं तो एनसीपी का भी शिवसेना जैसा ही हश्र होगा।

शरद पवार को अच्छी तरह पता है कि अजित पवार देर सबेर सत्ता के लालच में पाला  बदल सकते हैं। जैसा उन्होंने 2019 में किया था। बीजेपी के साथ चले गए थे। हालांकि, अजित पवार कह रहे हैं कि उन्हें अध्यक्ष नहीं बनना है और न ही उन्हें इस पद की इच्छा है।  लेकिन ऐसे में क्या यह कहा जा सकता है कि सच में शरद पवार ने अजित पवार का पर कतर दिया।हालांकि , यह शरद पवार के निर्णय पर ही निर्भर करेगा ? अगर ऐसा है तो हमें दो दिन और इंतजार करना होगा, देखते हैं महाराष्ट्र की राजनीति किस करवट बदलती है ?

अगर, शरद पवार अपने फैसले पर कायम रहते हैं तो साफ़ है कि वे नेतृत्व बदलकर पार्टी में कुछ नया करना चाहते हैं। लेकिन सवाल खड़ा होगा कि आखिर पार्टी का नेतृत्व कौन करेगा ? अभी तक तो नेतृत्व के तौर पर अजित पवार का ही नाम सामने आया है,लेकिन उनके इंकार के बाद सुप्रिया सुले का नाम आगे हो सकता है। बुधवार को एनसीपी नेता छगन भुजबल ने अपने आवास पर कहा कि अगर शरद पवार  अपना फैसला नहीं बदलते हैं तो अजित पवार को यह जिम्मेदारी उठानी चाहिए। वहीं, चर्चा ये भी है कि शरद पवार को अपने भतीजे अजित पवार पर भरोसा नहीं है। इसलिए सुले को ही पार्टी की कमान सौंप सकते हैं।

हालांकि, इसका भविष्य में अपना फ़ायदा नुकसान हो सकता है। लेकिन वे चाहेंगे कि पार्टी की कमान सुले को ही मिले। क्योंकि भविष्य में अगर पार्टी में तोड़फोड़ होगी तो असली पार्टी सुप्रिया सुले के ही पास रहेगी।  बता दें कि शरद पवार के इस्तीफे के विरोध में इस्तीफा देने वाले एनसीपी नेता जितेंद्र आव्हाड की चाह है कि अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी सुप्रिया सुले को मिले। बहरहाल, शरद पवार ने इस्तीफा दे कर राज्य और कार्यकर्ताओं में अपना कद बढ़ा लिया है।

उनका यह इमोशनल कार्ड पार्टी की टूट से बचाने में कारगर साबित हो सकता है। साथ ही शरद पवार का पार्टी में पावर रहेगा, किसी भी स्तर पर उनका पार्टी में कम नहीं हो सकता है। हालांकि,कहा जा रहा है कि शरद पवार के सामने सुझाव रखे गए हैं.जिसमें कहा गया है कि वे अध्यक्ष पद पर बने रहे, कार्यकारी अध्यक्ष का पद सृजित कर पार्टी का मार्गदर्शन करते रहे हैं। हालांकि ये खबरें हवा हवाई है। इस बीच सभी की नजरें  शरद पवार पर लगी हुई है कि वे अगला कदम क्या उठाते है।

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