गुरुवार को रत्नागिरी के राजापुर गाँव में रिफाइनरी समर्थकों और विरोधियों की संयुक्त बैठक हुई। इस बैठक में ये तो साफ हो गया है कि रिफाइनरी बारसू में ही स्थापित होगी। राज्य के विकास में बाधक बने शिवसेना उद्धव बालासाहेब ठाकरे पार्टी के प्रमुख उद्धव ठाकरे को यहाँ करार जवाब मिल गया होगा हालांकि इसके बाद भी अगर उन्होंने इस मुद्दे को आगे बढ़ाने की कोशिश की तो शिवसेना उद्धव बालासाहेब ठाकरे का बचा हुआ अस्तित्व भी खतरे में पड़ जाएगा।
मुख्यमंत्री के रूप में ढाई साल तक घर बैठे रहने वाले उद्धव ठाकरे के पास कोंकण के बेरोजगार युवाओं के दर्द को समझने का कोई कारण नहीं है। लेकिन यह दर्द कोंकण के युवाओं के दिल में बैठ गया है। कोंकण का युवा शिक्षित है, लेकिन जहां घर है, वहां अवसर नहीं है। लिहाजा अपने परिवार से दूर होना इन युवकों की मजबूरी बन गई है। हालांकि ऐसा भी नहीं है कि बाहर जाने पर भी इन युवकों को अच्छी नौकरी और ढेर सारा वेतन मिले। ये युवक काम करके चार पैसे कमा रहे हैं। हालांकि रिफाइनरी परियोजना इस तस्वीर को बदलने की क्षमता रखती है।
गुरुवार को राजापुर शहर में रिफाइनरी समर्थकों और विरोधियों की बैठक हुई। बैठक कलेक्टर देवेंद्र सिंह व पुलिस अधीक्षक धनंजय कुलकर्णी की पहल पर हुई। बैठक में एक हजार से अधिक लोग शामिल हुए। इस बैठक में रिफाइनरी समर्थकों की भारी भीड़ थी। बारसू राजापुर, लांजा, साखरपा निर्वाचन क्षेत्रों में आता है। इस निर्वाचन क्षेत्र के विधायक राजन साल्वी हैं। उन्होंने इस मामले में अपनी स्थिति भी स्पष्ट की है।
साल्वी ने ट्वीट किया था कि ‘बेरोजगारी के मुद्दे पर हम बारसू में रिफाइनरी का समर्थन करते हैं.’ हालाँकि कुछ लोग रिफाइनरी का विरोध करते हैं, लेकिन अधिकांश लोग रिफाइनरी चाहते हैं। कोई भी राजनेता अपने ही लोगों के खिलाफ जाकर किसी चीज का समर्थन नहीं कर सकता। रिफाइनरी के लिए साल्वी का समर्थन एक बहुत बड़ा जोखिम है। लेकिन उन्होंने वहाँ की जनता की समस्याओं का अनुमान लगाया है। उसके बाद भी इस तरह का बयान दिया है।
शिवसेना उद्धव बालासाहेब ठाकरे के दो नेता, विधायक अनिल परब और सांसद विनायक राउत, जो कोंकण में रिफाइनरी का विरोध कर रहे हैं, उनकी जड़ें मुंबई से जुड़ी हैं। वह कोंकण के लिए एनआरआई की तरह हैं। हालांकि साल्वी ऐसे नहीं हैं। साल्वी की जड़ें कोंकण में हैं।
बारसू में हुई बैठक में रिफाइनरी का विरोध करने वाले कुछ ग्रामीण और तथाकथित पर्यावरणवादी संगठन जरूर थे, लेकिन उनका प्रतिशत बहुत ही कम था। उद्धव ठाकरे के इस विरोध के मायने साफ हैं कि अगर जरूरत पड़ी तो रिफाइनरी का विरोध करने के लिए वह बारसू निवासियों के साथ पूरी पार्टी को भी सड़कों पर उतार देंगे। हालांकि बाहरी लोगों को जोड़ कर इस विरोध को बढ़ावा दिया जा सकता है। क्योंकि गिने-चुने लोग ही रिफ़ाइनरी का विरोध करते हैं, इसलिए रिफायनरी को लेकर विरोध प्रदर्शन करनेवाले लोग समझ से परे है।
यह तय है कि उद्धव ठाकरे विपक्ष को कुचलने की कोशिश करेंगे। शिंदे-फडणवीस सरकार को हराने के लिए उद्धव ठाकरे किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं। लेकिन इन सबके बावजूद रिफाइनरी का काम ठप्प होने की संभावना नहीं है।
वहीं इस बात की भी प्रबल संभावना है कि बारसू में रिफाइनरी यह महाविकास अघाड़ी के लिए एक सोच समझा मुद्दा है। उद्धव ठाकरे बारसू जाने की तैयारी कर रहे हैं। इससे यह तो स्पष्ट है कि वे वहां जाएंगे और लोगों को भड़काने की कोशिश भी करेंगे। जबकि उन्होंने खुद ही सुझाव दिया था कि बारसू में रिफाइनरी स्थापित की जा सकती है। लेकिन फिर भी वे इस परियोजना का विरोध करके मूर्खों वाला काम कर रहे है।
इस बात की बिल्कुल संभावना नहीं है कि शरद पवार इस मसले पर आक्रामक होंगे। उन्होंने उद्योग मंत्री उदय सामंत और मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे दोनों के साथ इस मुद्दे पर चर्चा की है। वहीं अजीत पवार ने सुझाव दिया है कि एनसीपी विकास के खिलाफ नहीं है, लेकिन सरकार को स्थानीय लोगों को समझना चाहिए और रास्ता निकालना चाहिए। अजीतदादा इतना कहने से ही नहीं रुके, समृद्धि हाईवे का शुरू में विरोध भी हुआ। लेकिन सरकार ने लोगों को मुआवजा दिया। यहाँ उदाहरण दिया गया है कि यह परियोजना एक वास्तविकता बन गई है। एनसीपी नेताओं का लहजा उद्धव ठाकरे जैसा नहीं है। कांग्रेस नेताओं ने अभी तक इस मुद्दे पर अपना मुंह नहीं खोला है। वो आज भी किनारे पर बैठे तमाशा देख रहे हैं। क्योंकि कोंकण में कांग्रेस का ज्यादा अस्तित्व नहीं है।
शिवसेना उद्धव बालासाहेब ठाकरे ने बारसू मामले में वही रुख अपनाया जो उन्होंने आरे मेट्रो कार शेड मामले में किया था। माविया की सरकार जाने के बाद भी ठाकरे पिता-पुत्र कहते रहे कि आरे बचाव के लोगों को आगे बढ़ाकर आरे में कारशेड नहीं होने देंगे। लेकिन एक बार सरकार ने यदि तय कर लिया तो कोई भी विरोध टिक नहीं सकता।
आदित्य ठाकरे और उद्धव ठाकरे मुंह में सोने का चम्मच लेकर पैदा हुए थे। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने इन दोनों के लिए कहा कि, “ये आयताकार आटे पर एक पंक्ति भी नहीं बना सकते हैं”। शिवसेना (यूबीटी) नेता उद्धव ठाकरे का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, ‘एक पूर्व मुख्यमंत्री ने खुद ही केंद्र सरकार को बारसू का सुझाव दिया था। मुख्यमंत्री का पद गंवाने के बाद, वह परियोजना का विरोध कर रहे हैं। कोई व्यक्ति इस तरह के दोहरे मानदंड कैसे रख सकता है।’’ इन दोनों की पहुंच मुखपत्रों के माध्यम से बमबारी करने, बैठकों में चिल्लाने और चैनलर्स के बूम के सामने चिल्लाने तक ही सीमित है।
वहीं रिफायनरी के समर्थन में सामने हैं देवेंद्र फडणवीस, मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे. इसके अलावा, ठाकरे के विधायक राजन साल्वी भी सरकार के रुख के अनुरूप रुख अपनाते नजर आ रहे हैं। इसलिए बारसू की धरती पर उद्धव ठाकरे का पहिया जरूर जड़ पकड़ेगा। राकांपा द्वारा उन्हें माविया के रथ से धकेले जाने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। बारसू ठाकरे के लिए भूल भुलैया बनते जा रहा है। अभी भी ऐसी कोई तस्वीर नहीं है कि वे इस रिफायनरी के विरोध से बाहर आ पाएंगे।
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