पूरा देश छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक की 350वीं वर्षगांठ मना रहा है। तिथि के अनुसार यह पर्व 2 जून को मनाया जाता है। इस अवसर पर देश भर के लोग छत्रपति शिवाजी महाराज के ऋण को याद करते हैं। लेकिन पिछले पांच दशक से छत्रपति शिवाजी के नाम पर पार्टी की दुकान चलाने वाले पार्टी प्रमुख इस जश्न में कहीं भी शामिल नहीं रहे। इस राष्ट्रीय उत्सव को किनारे रखते हुए वे ठंडी हवा में विदेश में छुट्टियां मना रहे हैं। जो बेहद ही निंदनीय है।
छत्रपति शिवराय पर महाराष्ट्र का कर्ज है। यह ऋण कविराज भूषण, महाराजा के राजकवि कवि परमानंद तथा अनेक बखरकारों ने अपने शब्दों में व्यक्त किया है। यह ऋण वास्तव में क्या है? प्रसिद्ध लेखक और विचारक नरहर कुरुंदकर ने नांदेड़ में छत्रपति शिवाजी महाराज पर तीन भाग की व्याख्यान श्रृंखला दी। व्याख्यान की अध्यक्षता ‘श्रीमानयोगी’ रंजीत देसाई ने की। कुरुंदकर ने ‘श्रीमानयोगी’ का एक लम्बा परिचय लिखा है। परिचय पुस्तक के रूप में ही लोकप्रिय था। हालांकि आज वे दोनों ही जीवित नहीं हैं।
कुरुंदकर जिस बात का उल्लेख करते हैं, उस दौरान गंगा के दोनों किनारे मुगल सत्ता के अधीन थे। ये मुगल महिलाओं पर अत्याचार करते थे, किसानों को मरते पीटते थे। मुगलों की सत्ता के अधीन यह गंगा का पानी स्नान नहीं बल्कि आत्महत्या के लिए ही इस्तेमाल किया जा सकता है। औरंगजेब ने काशी विश्वेश्वर के मंदिर को तोड़ा था। हिंदुओं को जीवित रहने के लिए, अपनी धार्मिक प्रथाओं को बनाए रखने के लिए जजिया कर देना पड़ता था। बावजूद इसके हिंदुओं का जीवन, हिंदू महिलाओं का सम्मान सुरक्षित नहीं था। गंगा के तट से मुक्ति की प्रक्रिया छत्रपति शिवराय के राज्याभिषेक के साथ शुरू हुई। इसलिए प्रत्येक हिन्दू छत्रपति शिवाजी का ऋणी है। हर शिव भक्त 350वें शिव राजाभिषेक दिवस पर छत्रपति शिवाजी की स्मृति को नमन कर आभार व्यक्त कर रहा है।
2 जून को जब तिथिनुसार छत्रपती शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक था, तब पीएम मोदी ने एक संदेश जारी किया। शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक एक अद्भुत घटना थी जिसने इतिहास बदल दिया, इस घटना पर काफी जोर दिया गया। वहीं राज्य में शिंदे-फडणवीस सरकार ने रायगढ़ में शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक का जश्न मनाया।
शिवसेना ने शिवाजी महाराज के नाम का जितना इस्तेमाल किया, उतना उनके वंशजों ने नहीं किया होगा।
शिवसेना ने छत्रपति शिवाजी महाराज के भगवा झंडे को भी अपनी राजनीति का हिस्सा बनाया। वहीं एक जमाने में शिवसैनिक छत्रपति शिवाजी महाराज के नाम का इस्तेमाल इस कदर कर रहे थे कि अपने शाखाओं के अग्रभाग को किले जैसा बना दिया जाता था। शिवसेना भगवा राजनीति खेलकर सत्ता में आई। लेकिन जब इस कर्ज से बाहर निकलने का समय आया तो शिव राय की स्मृति जगाने के लिए शिवसेना ने क्या किया? कहते है जाकी रही भावना जैसी, प्रभू मुरत देखी तिन तैसी इस चौपाई का अर्थ है जिसकी जैसी भावना होती है, उसे उसी रूप में भगवान दिखते है। शिवसेना का भाव शायद शिववड़े और शिवथाली से आगे नहीं बढ़ा।
महाराष्ट्र में छत्रपति शिवाजी के नाम पर कुछ भव्य दिव्य समारोह कराने की मानसिकता शिवसेना प्रमुख बालासाहेब ठाकरे की थी। प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के शासनकाल के दौरान मुंबई के सहारा हवाई अड्डे का नाम बदलकर छत्रपति शिवाजी महाराज अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा कर दिया गया था। तब बालासाहेब ने वाजपेयी से कहा, ‘आपने इस हवाई अड्डे का नाम शिवाजी महाराज के नाम पर रखा, अब मुझे आपसे कुछ नहीं चाहिए।’
मैं उद्धव बालासाहेब ठाकरे हूं। बालासाहेब की वजह से, मेरे नाम की कीमत है’, उठते बैठते हुए उद्धव ठाकरे हमेशा यही कहते हैं। वही उद्धव ठाकरे जिन्होंने बालासाहेब ठाकरे की विरासत के बारे में बात की थी, वे शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक दिवस जैसे राष्ट्रीय समारोहों को छोड़कर विदेश चले गए। उद्धव ठाकरे ने तो शिवराज्याभिषेक दिवस के मौके पर ट्विटर पर मुफ्त में ट्वीट कर छत्रपति शिवाजी के प्रति अपना आभार भी नहीं व्यक्त किया।
क्या उद्धव ठाकरे के शिव राज्याभिषेक दिवस के 350वें वर्ष को भूल गए। या फिर इस समारोह में भाग ना लेने की उनकी प्रबल इच्छा रही होगी। क्योंकि शायद उन्हें लग रहा है कि यदि एक बार उन्होंने छत्रपति शिवाजी को प्रणाम कर लिया तो महाराष्ट्र में औरंगजेब की छवि पर नाचने वाले देशद्रोहियों का गिरोह उनके साथ नहीं रहेगा।
महाविकास अघाड़ी सरकार के दौरान महाराष्ट्र के किलों पर मकबरों का तांता लगा रहा। ऐतिहासिक स्मारकों पर बड़े पैमाने पर अतिक्रमण किया गया था। कोलाबा, शिवड़ी, रायगढ़, पन्हाला, लोहगढ़ जैसे किलों पर मजारे बनाई गईं। इन कब्रों को लेकर काफी हंगामा हुआ लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। हालांकि शिंदे-फडणवीस सरकार के सत्ता में आने के बाद जब प्रतापगढ़ में अफजल खान की कब्र पर अनधिकृत निर्माण पर सरकार ने कार्रवाई करने का साहस दिखाया तो उद्धव ठाकरे ने उनकी सराहना तक नहीं की।
एनसीपी के नेता छत्रपती शिवाजी महाराज की सेना में मुसलमानों का प्रतिशत बताते रहते हैं। लेकिन कितने मुस्लिम समुदाय शिव जयंती मनाते हैं, इसका आंकड़ा उनके पास नहीं है। औरंगजेब और टीपू की प्रतिमा के रूप में मुस्लिम उर्स में नृत्य किया जाता है। लेकिन क्या कभी किसी ने किसी उर्स में छत्रपति शिवाजी की नृत्य करते हुए छवि देखी है?
कॉंग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी राज्याभिषेक दिवस के मौके पर शिवराज को बधाई नहीं दी। ना तरीखनुसार और ना ही तिथिनुसार। क्योंकि नेहरू-गांधी परिवार के मायने से छत्रपती शिवाजी महाराज का नाम उनके लिए परेशानी है। शिवसेना उद्धव बालासाहेब ठाकरे के प्रमुख राहुल गांधी के साथ पार्टी का तालमेल बनाए रखने को लेकर काफी उत्सुक हैं। और अगर वे शिवाजी शिवाजी महाराज करते तो राहुल गांधी नाराज हो सकते थे, इसलिए ठाकरे ने शायद विदेश में जाकर छुट्टियां मनाने की योजना बनाकर खुद को सुरक्षित रखने का प्रयत्न किया।
क्योंकि अगर आप मुंबई में रहकर आजादी के नायक वीर सावरकर को उनकी जयंती पर नमन नहीं करेंगे तो एक समय चल सकता है। लेकिन शिवराजाभिषेक के दिन उनका अभिवादन नहीं करने पर शिवाजी महाराज के प्रेमी उद्धव को क्षमा नहीं करेंगे, शायद इसलिए वे बाहर चले गए। हालांकि इससे यह तो तय हो गया है कि शिवसेना उद्धव बालासाहेब ठाकरे का केसरिया रंग धीरे-धीरे फीका पड़ रहा है। उद्धव ठाकरे की अनुपस्थिति ने शिव राज्याभिषेक दिवस समारोह की भावना को कम नहीं किया, लेकिन पार्टी प्रमुख की तुच्छ मानसिकता को लोगों ने जरूर नोटिस किया है।
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