मौर्य बने कालिदास! सपा का लगेगा पतीला?

अखिलेश यादव की नसीहत के बावजूद समाजवादी पार्टी के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने एक बार फिर हिन्दू धर्म पर विवादित बयान दिया। एक दिन पहले ही अखिलेश यादव ने धर्म पर विवादित बयान देने वाले नेताओं पर अंकुश लगाने का वादा किया था।

मौर्य बने कालिदास! सपा का लगेगा पतीला?

अखिलेश यादव की नसीहत के बावजूद समाजवादी पार्टी के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने एक बार फिर हिन्दू धर्म पर विवादित बयान दिया। एक दिन पहले ही अखिलेश यादव ने धर्म पर विवादित बयान देने वाले नेताओं पर अंकुश लगाने का वादा किया था। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या स्वामी प्रसाद मौर्य अखिलेश यादव की बात नहीं मानते हैं। क्या मौर्य सपा को आगामी लोकसभा चुनाव में लुटिया डुबोने की तैयारी कर ली है। क्या सपा के लिए मौर्य कालिदास साबित होंगे। जो जिस डाल पर बैठे थे उसी को काट रहे थे।

दरअसल, सोमवार को मौर्य ने दिल्ली के जंतर मंतर मैदान में एक कार्यक्रम में शामिल हुए थे। जहां उन्होंने कहा कि हिन्दू धर्म, धर्म नहीं बल्कि एक धोखा है। उन्होंने इस दौरान अपनी बात को सही ठहराने के लिए पीएम नरेंद्र मोदी, सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश और संघ प्रमुख मोहन भागवत द्वारा कही गई बात का हवाला दिया। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक आदेश में कहा था कि हिन्दू धर्म, कोई धर्म नहीं है, बल्कि एक जीवन शैली है। उन्होंने कहा कि संघ प्रमुख ने एक बार नहीं, बल्कि दो बार कहा कि हिन्दू धर्म नहीं, बल्कि एक जीवन शैली है। इसी तरह मौर्य ने पीएम नरेंद्र मोदी और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के बयानों का भी हवाला दिया।

लेकिन सवाल यह है कि क्या संघ प्रमुख, पीएम मोदी या सुप्रीम कोर्ट ने हिन्दू धर्म को धोखा कहा है? जैसा कि मौर्य ने कहा है। अगर, शायद मौर्य यह कहते कि हिन्दू धर्म, धर्म नहीं बल्कि एक जीवन शैली है। तो उसका समर्थन जरूर किया जाता, लेकिन उन्होंने अंत में जिस शब्द का इस्तेमाल किया, वह हिन्दू धर्म को अपमानित करने वाला था। सवाल यह भी है कि मौर्य ने हिन्दू धर्म की जो व्याख्या की, क्या वे सही मन से की गई है। कतई नहीं, ऐसा लगता है कि मौर्य हिन्दू धर्म को अपमानित करने के लिए ही हिन्दू धर्म को धोखा बताया है, और उन्होंने ऐसा एक बार नहीं किया, बल्कि कई बार हिन्दू धर्म के खिलाफ बयान दिया है। जिसे कभी भी सही नहीं ठहराया जा सकता है। मौर्य आज सपा में कालिदास की भूमिका में है। जो जिस डाली पर बैठे थे उसे ही काट रहे थे।

दोस्तों, दो दिन पहले ही रविवार को लखनऊ में सपा के कार्यालय में ब्राह्मण सम्मेलन आयोजित किया गया था। जिसमें कार्यकर्ताओं ने बिना किसी का नाम लिए ही अखिलेश यादव से पार्टी के नेताओं द्वारा हिन्दू धर्म के खिलाफ बोलने वालों की शिकायत की थी। कार्यकर्ताओं ने इस दौरान यह भी कहा कि ऐसे बयानों से सपा की छवि हिन्दू विरोधी पार्टी की बन रही है। इस बैठक में यह भी कहा गया कि ऐसे बयानों से एक वर्ग पार्टी से दूर हो रहा है। जिसका उसे इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। ऐसे बयानों से पार्टी को लोकसभा चुनाव में नुकसान उठाना पड़ सकता है। जिसके बाद अखिलेश यादव ने ऐसे बयानों पर अंकुश लगाने की बात कही थीं, लेकिन मौर्य ने अखिलेश यादव की चेतावनी को अनसुना करते हुए हिन्दू धर्म के खिलाफ जहर उगला। जिस पर विवाद हो गया।

अखिलेश यादव ने ब्राह्मण समाज की यह बैठक आगामी लोकसभा चुनाव को देखते हुए बुलाया था। लेकिन जिस तरह से मौर्य ने अखिलेश यादव के किये धराये पर पानी फेर रहे हैं। उसको देखते हुए कहा जा रहा है कि अखिलेश यादव भले पीडीए फार्मूले के तहत दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों को साध लें,लेकिन अगड़ा समाज पार्टी से खिसक रहा है। इसका नमूना अखिलेश यादव का ब्राह्मण समाज का सम्मेलन करना है। अखिलेश यादव इस सम्मलेन के जरिये पार्टी से दूर हो रहे अगड़ा समाज को साधने की कोशिश है, मगर मौर्य बाज नहीं आ रहे हैं और लगातार हिन्दू हिंदुत्व और रामचरित मानस पर सवाल उठाते रहे हैं।

कहा जा रहा है कि पार्टी के समीक्षा में यह सामने आया है कि सपा का कोर वोट बैंक यादव और मुस्लिम समुदाय पार्टी से जुड़ा हुआ है, लेकिन उन्हें 2024 में बीजेपी को हराने के लिए वोट शेयर बढ़ाना होगा। इसीलिए अखिलेश यादव ने ब्राह्मण समाज का सम्मलेन करकर उन्हें अपने पाले में लाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन मौर्य उस पर पानी फेरने का काम कर रहे है। अगर बीजेपी की बात करें तो,एक समय में कहा जाता था कि यह पार्टी अगड़ों को पार्टी है। लेकिन अब बीजेपी पिछड़ों, दलितों और अल्संख्यक समुदाय को भी जोड़ने का काम कर रही है। इसका असर भी देखा जा सकता है। यूपी में ब्राह्मण समाज 10 फीसदी है। साथ ही कई जिलों में निर्णायक भूमिका निभाता है। भले ब्राह्मण समाज की यूपी में ज्यादा संख्या न हो, लेकिन यह समाज राजनीति में महत्वपूर्ण माना जाता है। बताया जाता है कि यूपी के 12 ऐसे जिले हैं जहां ब्राह्मण समाज 15 फीसदी है और उम्मीदवारों के जीताने और हारने में बड़ा रोल अदा करता हैं। इसी बात को समझते हुए अखिलेश यादव ने ब्राह्मणों को अपने पाले में लाने की जुगत भिड़ा रहे हैं, जबकि मौर्य उसका पतीला लगा रहे है।

यूपी में ब्राह्मण समाज कितना महत्वपूर्ण है इसका जीता जागता उदाहरण कांग्रेस का हाल ही में यूपी में बड़ा फेरबदल है। जहां कांग्रेस ने प्रियंका गांधी को यूपी के प्रभारी से मुक्त कर अविनाश पांडेय को यूपी का प्रभारी बनाया है। कहा जाता है कि यूपी में चुनाव के समय जाति समीकरण महत्वपूर्ण होता है। यही कारण है कि कांग्रेस ने ब्राह्मण समाज को साधने के लिए अविनाश पांडेय को यूपी का प्रभार सौंपा है। जो कांग्रेस का परंपरागत वोट है। राज्य में कांग्रेस के कमजोर होने के साथ ही और मुस्लिम समुदाय को ज्यादा तवज्जो देने के बाद से यह समाज कांग्रेस से दूरी बना लिया है और बीजेपी से जुड़ गया है। कहा जा रहा है 65 साल के अविनाश पांडेय संगठन को मजबूत करने में बड़ा रोल निभा सकते हैं। जो कांग्रेस से शुरू से ही जुड़े हुए है और संगठन को खड़ा करने का उनके पास अनुभव है। तो एक ओर जहां कांग्रेस ब्राह्मण समाज को जोड़ने की कोशिश में है तो दूसरी ओर सपा के नेता हिन्दू धर्म को निशाने पर लिया हुआ है।

बहरहाल, कांग्रेस के यूपी प्रदेशाध्यक्ष अजय राय ने भी मौर्य के बयान पर आपत्ति जताई है। उन्होंने अखिलेश यादव से मौर्य पर कार्रवाई करने की मांग की है। अगर ऐसा ही रहा तो सपा को आगामी लोकसभा चुनाव में बड़ा झटका लग सकता है। हाल ही एक सर्वे में दावा किया गया है कि यूपी में बीजेपी को लोकसभा चुनाव में 80 में से लगभग 73 से 75 सीटें मिल सकती है।  ऐसे विपक्ष के गठबंधन में हलचल तेज हो गई हैं। अब देखना होगा कि अखिलेश यादव मौर्य को कैसे चुप कराते हैं,क्या मौर्य पर कार्रवाई की जाएगी? या सपा  की यह रणनीति है।

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