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Saturday, July 27, 2024
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इंडिया गठबंधन” में एक और “गांठबंधन?”  

इंडिया गठबंधन के सभी दल भले साथ रहने का दम भर रहे हों,लेकिन इस गठबंधन में चार नेताओं का एक और गठबंधन जो अपनी अपनी राग अलापते रहते है।         

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“इंडिया गठबंधन” में चल रही खींचतान से बार बार सवाल उठता है कि क्या 2024 यह अलायंस  कायम रहेगा? या केवल एक विचार बनकर रह जाएगा। यह सवाल इसलिए पैदा होता है कि गठबंधन की बैठक होने से पहले महाराष्ट्र के नेता उद्धव ठाकरे इस गठबंधन के लिए सारथी ढूंढ़ने लगते हैं, तो दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पंजाब में लोकसभा की सभी सीटों पर आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार को जीताने की अपील करते है.तो अखिलेश यादव इस गठबंधन में मायावती के शामिल किये जाने पर अलग होने की धमकी देते हैं। वहीं, ममता बनर्जी मल्लिकार्जुन खड़गे के नाम को पीएम उम्मीदवार के लिए प्रस्तावित की है। जिसके बाद बिहार के सीएम नीतीश कुमार और लालू यादव नाराज हो जाते हैं। ऐसा क्यों? ये चार पांच नेता क्या  गठबंधन में गठबंधन किये हुए है ? यह सवाल यूं ही नहीं उठा है, बल्कि इन नेताओं के रवैये को देखते हुए ऐसे सवाल उठ रहे है। 

 जब ममता बनर्जी खड़गे का नाम पीएम उम्मीदवार का प्रस्ताव रखती है तो उनके दिमाग में ऐसा क्या चल रहा था जो राहुल गांधी को इग्नोर कर खड़गे का नाम आगे किया। इंडिया गठबंधन में क्या एक और गठबंधन है ? दोस्तों शुरुआत महाराष्ट्र से करते हैं. यहां उद्धव गुट की शिवसेना इंडिया गठबंधन का हिस्सा है। 19 दिसंबर को जब इंडिया गठबंधन की बैठक होने वाली थी, उससे पहले सामना के संपादकीय में यह सवाल उठाया गया था कि आखिर इस गठबंधन का “सारथी कौन होगा ?”

सवाल यह है कि  उद्धव गुट “इंडिया गठबंधन” की तारीफ़ कर चुका है और उनके नेता बार बार यह दावा करते हैं कि आगामी लोकसभा चुनाव में बीजेपी की हार होगी, पीएम मोदी इंडिया गठबंधन से हार जाएंगे। लेकिन जब “सामना” में यह पूछा जाता है कि इस गठबंधन का सारथी कौन है ? तब सवाल खड़ा होने लगता है कि आखिर यह सवाल उद्धव गुट की ओर से क्यों उठाया गया ? क्या उद्धव गुट इंडिया गठबंधन पर सवाल खड़ा करना चाहता है या उद्धव ठाकरे को गठबंधन में किसी पद की लालसा है। हालांकि, उद्धव गुट की वर्तमान में जो हैसियत है। उससे देखते हुए कहा जा सकता है कि उद्धव गुट को कोई बड़ा पद नहीं मिल सकता है। भले उद्धव गुट लगातार पीएम मोदी और बीजेपी पर हमलावर हो, उद्धव गुट आगामी लोकसभा चुनाव में अपना अस्तित्व बचा ले वह ही बड़ी बात होगी। क्योंकि उद्धव गुट जमीनी हकीकत से कोसो दूर है। तो कहा जा सकता है कि 28 घोड़ों का सारथी पूछने का एक ही मतलब हो सकता है कि इंडिया गठबंधन पर दबाव बनाया जा सके। और गठबंधन की गाडी को आगे बढ़ाया जा सके।    

अब बात दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की, जो दिल्ली और पंजाब में कांग्रेस को ज्यादा सीटें नहीं देना चाहते हैं। कहा जा रहा है कि केजरीवाल पंजाब में कांग्रेस के साथ कोई समझौता नहीं करना चाहते हैं  यहां आप अकेले चुनाव मैदान में उतरना चाहती है. मगर यह भी देखने को मिल रहा है कि वे इंडिया गठबंधन में रहने का दम जरूर भरते हैं। इतना ही नहीं जब ममता बनर्जी खड़गे को पीएम फेस बनाने का प्रस्ताव रखती है तो केजरीवाल उनका समर्थन करते हैं, क्यों ? यह वह सवाल है जिस पर अभी भी बहस जारी है। सवाल यह है कि ममता बनर्जी और केजरीवाल आखिर राहुल गांधी को किनारे क्यों लगाना चाहते हैं। यहां सवाल यह नहीं है कि ममता ने खड़गे का नाम पीएम फेस के लिए क्यों बढ़ाया है। यहां सबसे बड़ा सवाल यह है कि ममता बनर्जी को राहुल गांधी से इतनी खुन्नस क्यों है? क्या ममता और केजरीवाल ने गांधी परिवार को 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद साइड लाइन करने का इरादा बना रखा है। भले ममता बनर्जी खड़गे को दलित नेता के रूप में समर्थन कर 2024 की बिसात बिछा रही हो लेकिन,आगामी लोकसभा चुनाव में केवल दलित चेहरा होना ही काफी नहीं होगा। सवाल यह भी है कि पीएम मोदी के सामने क्या 80 साल के खडगे टिक पाएंगे ?  

 अब बात अखिलेश यादव की जो शुरू से ही कांग्रेस के साथ जाने से आनाकानी रहे हैं। मगर मध्य प्रदेश विधानसभा में कांग्रेस द्वारा ठुकराए जाने पर अखिलेश यादव अपनी रौ में देखे जा सकते हैं। अभी तक हमने जिन नेताओं की बात की है ,उनका इंडिया गठबंधन से ज्यादा लेना देना नहीं है। गठबंधन में सभी शामिल रहना चाहते हैं, और सभी पीएम नरेंद्र मोदी को हराना चाहते हैं लेकिन अपना  स्वार्थ सबसे ऊपर रखे हुए हैं। अखिलेश यादव बहुजन समाज पार्टी को इंडिया गठबंधन में शामिल नहीं करना चाहते हैं। ऐसे में सवाल उठता है की अखिलेश यादव ऐसा क्यों चाहते हैं। तो कहा जा सकता है कि उनका इसमें स्वार्थ है। वे यूपी की ज्यादा से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ना चाहते हैं। वे यूपी की 80 अस्सी सीटों में ज्यादा हिस्सेदारी नहीं करना चाहते है। साथ ही अखिलेश यादव यूपी में एकछत्र राज करना चाहते हैं।     

अब बात मामता बनर्जी की, जो अपनी बेबाक बात कहने के लिए जानी जाती है। ममता बनर्जी का राजनीति अनुभव अपार है। वे तीन बार से लगातार बंगाल की मुख्यमंत्री है तो केंद्र भी  बीजेपी और सरकार में मंत्री रह चुकी है। ममता बनर्जी अपने रणनीति कौशल के कारण ही लगातार सत्ता में हैं। कहा जा रहा है कि उन्होंने खड़गे का नाम पीएम उम्मीदवार के तौर पर आगे कर गांधी परिवार को पंगु करने की कोशिश की। इससे जरिये उन्होंने एक तीर से कई निशाने साध लिए। सबसे पहला निशाना राहुल गांधी,जो खड़गे का नाम आगे करते ही खुद ब खुद हट गए। सबसे सोचने वाली बात यह है कि ममता बनर्जी ने खड़गे का नाम इंडिया गठबंधन के नेताओं से बिना राय मशविरा किये ही आगे किया। हम कह सकते हैं कि गठबंधन में सबकी अपनी डफली है और सबका अपना राग है।

 बात भले पीएम मोदी के हराने की हो रही हो,पर वह रणनीति, वह धार, वह कसावट नजर नहीं आ रहा है। ये वे चार नेता है जो “इंडिया गठबंधन” में रहकर भी अलग गठबंधन बनाये हुए हैं। ममता बनर्जी सोनिया गांधी के करीब है लेकिन राहुल गांधी को पीएम नहीं बनाना चाहती। केजरीवाल एक ऐसा नेता है जो कभी कांग्रेस के ही समर्थन से मुख्यमंत्री बने थे, लेकिन आज वे राहुल गांधी पीएम पद के लिए समर्थन नहीं कर रहे हैं। अखिलेश यादव और राहुल गांधी यूपी लड़के बनकर साथ चुनाव लड़ चुके है पर आज यूपी में कांग्रेस को ज्यादा स्पेस नहीं देना चाहते हैं। रही बात उद्धव ठाकरे की तो वे एक हारे खिलाड़ी की तरह छटपटा रहे हैं, करें तो क्या करें, उनका सारथी कौन बनेगा इस पर भी उन्हें संशय है। 

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