नोटबंदी पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से विपक्ष चारों खाने चित हो गया है। नोटबंदी के बाद जिस तरह से विपक्ष मोदी सरकार पर हमलावर था अब यह मामला भी विपक्ष के हाथ से निकल गया है। विपक्ष आरोप लगाता है कि नोटबंदी के दौरान सैकड़ो लोगों की मौत हो गई थी। लेकिन क्या ऐसा सही में हुआ था ? या केवल विपक्ष मोदी सरकार को घेरने के लिए इसे मुद्दा बनाता रहा है। 2016 में तो उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश सिंह यादव ने मुआवजा तक दिया था। राहुल गांधी ने भी नोटबंदी को मुद्दा बनाते रहे हैं। इतना ही नहीं कांग्रेस ने नोटबंदी के खिलाफ अभियान चलाया था। ममता बनर्जी सहित कई नेता आज भी इस मामले को लेकर मोदी सरकार को घेरते रहे है।
दरअसल, 2016 में केंद्र सरकार पांच सौ और एक हजार के नोटों को बंद कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने 500 और 1000 के नोटों को बंद करने के निर्णय को सही ठहराया है। कोर्ट ने कहा कि नोटबंदी के दौरान किसी भी कानून का उल्लंघन नहीं किया गया है। अदालत ने यह भी कहा कि इससे पहले भी दो बात नोटबंदी हो चुकी है। अब यह तीसरा मौक़ा था ,जब नोटबंदी की गई थी।
कोर्ट ने कहा कि नोटबंदी का निर्णय लेने से पहले केंद्र सरकार ने आरबीआई से लगातार छह माह तक विचार विमर्श किया था। इसके बाद नोटबंदी का फैसला लिया गया, यह केवल केंद्र सरकार का अकेला फैसला नहीं था, बल्कि दोनों ने साथ में विमर्श करके यह निर्णय लिया था। बताते चलें कि कांग्रेस आरोप लगाती रहती है कि मोदी सरकार ने कुछ बिजनेसमैनो को लाभ पहुंचाने की गरज से यह फैसला लिया था। वहीं, बीजेपी का कहना था कि यह फैसला गरीबों के हित में लिया गया था। बावजूद इसके विपक्ष नोटबंदी को गलत ठहराता रहा है।
यह फैसला भी अन्य फैसलों की तरह विपक्ष के गाल पर एक तमाचा है। दिल्ली में बन रही नई संसद को भी लेकर विरोध जताया गया था। जिसमें प्रोजेक्ट को रोकने तक की मांग की गई थी। इसके अलावा कोरोना काल में इसके निर्माण और इसे फिजूलखर्ची बताया गया। इन मामलों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी। लेकिन,आज नई संसद अपने अंतिम चरण में है। सबसे बड़ी बात यह है कि जो लोग यह याचिका दायर करते हैं उनका मकसद मोदी सरकार का विरोध करना होता है। याचिका लगाने वालों का जनता से कोई लेना देना नहीं होता है। ऐसे लोगों को कोर्ट फटकार भी लगा चुकी है बावजूद इसके ये लोग कोर्ट के बेशकीमती समय को जाया करते रहते हैं।
इसी साल नई संसद पर जब अशोक स्तंभ के शेरों की प्रतिमा लगाई गई थी। उस विपक्ष ने आपत्ति जताई थी। विपक्ष ने आरोप लगाया था कि नई संसद पर शेरों की जो प्रतिमा लगाई गई है। उसके बनाने में नियमों का पालन नहीं किया गया है। इसमें शेर क्रूर दिखाई देते हैं। इस प्रतिमा का अनावरण पीएम मोदी ने 11 जुलाई को किया था। इन शेरों की ऊंचाई 21 फुट है।
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा था कि शेरों के चरित्र और प्रकृति को बदलना भारत के राष्ट्रीय प्रतीक का अपमान है। असदुद्दीन ओवैसी ने भी मोदी सरकार की आलोचना की थी।
बाद में इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को कड़ी फटकार लगाई थी। और कहा था कि शेरों के निर्माण में किसी भी कानून का उललंघन नहीं किया गया है। सभी का अपने अपने तरह से देखने का नजरिया है। ऐसे ही कई मामले हैं जो मोदी सरकार के फैसलों पर सवाल खड़ा करते रहे हैं। लेकिन उस पर सुप्रीम कोर्ट अपनी मुहर लगा दी। चाहे राफेल विमान का मामला हो या फिर चौकीदार चोर का मामला हर बार विपक्ष मुंह की खाता है। बावजूद इसके विपक्ष इससे सिख लेने के बजाय उन गलतियों को दोहराता रहता है।
बहरहाल, नोटबंदी पर बीजेपी कहती है कि यह फैसला सही था। इससे किसी को कोई फरक नहीं पड़ा। बल्कि जो लोग पैसा छुपा कर रखे थे वे ही गंगाजी में बहाने लगे थे। इतना ही नहीं बीजेपी का कहना है कि नोटबंदी की वजह से भ्रष्टाचार पर हद तक लगाम लगा है। इसके कई फायदे है।जिसको नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। आज लोग ज्यादा से ज्यादा डिजिटल पेमेंट कर रहे हैं और कैश से भुगतान कम हुआ है। हम यूं भी कह सकते हैं कि मोदी सरकार के हर फैसले का विरोध करना विपक्ष किन आदत बन गई है। इस पर राजनीति होने लगती है।
इसी कड़ी में धारा 370 भी है,जिसको केंद्र सरकार ने अपने दूसरे काल में कश्मीर से धारा 370 हटा दिया था। यह भी मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। मोदी सरकार ने कश्मीर से 2019 में इस धारा को हटा दिया था। नरेंद्र मोदी का यह ऐतिहासिक फैसला था। इस फैसले के खिलाफ भी कोर्ट में याचिका दायर की गई है। जिसमें यह माँग की गई है कि मोदी सरकार के फैसले को रद्द किया जाए और धारा 370 को कश्मीर में दोबारा बहाल किया जाए। ऐसे में सवाल उठता है कि विपक्ष बार बार कोर्ट से मुंह की खाता है। बावजूद इसके विपक्ष इससे क्या सबक लिया। विपक्ष बार बार क्यों गलतियां दोहराता है।
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