देवेंद्र फडणवीस ने विधान परिषद में देवी-देवताओं के बारे में सुषमा अंधारे के अपमानजनक बयानों को पढ़ा। अंधारे के पुराने वीडियो का हवाला देते हुए फडणवीस ने दिखाया कि कैसे अंधारे भगवान राम और कृष्ण को तुच्छ समझती हैं। सुषमा अंधारे भगवान राम के बारे में कहती हैं कि सात महीने की गर्भवती सीता माता को छोड़ कर शबरी के साथ बैठ कर बेर खा रहे थे, उन्होंने श्रीकृष्ण के बारे में अपमानजनक टिप्पणी की थी और कहा था कि श्रीकृष्ण गोपिकाओं को नहाते हुए देखते थे। वे अब अवतार नहीं ले रहे, शायद वे किसी गोपी के साथ डेट पर गए होंगे। उसके बाद सुषमा अंधारे ने देवेंद्र फडणवीस को चुनौती दी कि आप मुझसे आमने सामने चर्चा करें। सुषमा अंधारे किसको चैलेंज कर रही है, सवाल यह है कि चैलेंज देते समय हमें अपनी काबिलियत को परखना जरूरी है। यदि एक खरगोश एक शेर को लड़ाई के लिए ललकारता है, तो खरगोश खुद हास्यास्पद हो जाता है।
देवेंद्र फडणवीस महाराष्ट्र के सफल मुख्यमंत्री रहे हैं। खास बात यह है कि उन्होंने अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा कर लिया है। वह वर्तमान में उपमुख्यमंत्री हैं और उन्होंने वर्तमान सरकार के गठन में प्रमुख भूमिका निभाई है। विपक्ष के नेता के रूप में, फडणवीस ने महा विकास अघाड़ी सरकार को गिराने में भी प्रमुख भूमिका निभाई थी। इतना ही नहीं उन्होंने प्रदेश से बाहर की राजनीति में भी अपनी काबिलियत साबित की है। उन्होंने पार्टी के लिए अलग-अलग राज्यों में हुए चुनावों में अपने अनुभव का इस्तेमाल किया है। सुषमा अंधारे को कम से कम एक बार अपनी कार्यप्रणाली पर पुनर्विचार करना चाहिए। वह किस पार्टी की थीं, उन्होंने किस पार्टी की आलोचना की और बाद में उन्हें उन्हीं लोगों के साथ काम करना पड़ा। लोग उनके उन्हीं पुराने वीडियो से उनके विचार जानने लगे हैं। सुषमा अंधारे को पहले कोई जानता भी नहीं था। यह ऐसा है जैसे उद्धव ठाकरे के समूह में शिंदे और फडणवीस की आलोचना करने के लिए ही सुषमा अंधारे को नियुक्त किया गया है।
सुषमा अंधारे ने कभी कोई संवैधानिक पद नहीं संभाला, कभी दलीय राजनीति में सम्मान की जगह नहीं पाई, हालांकि जब वह फडणवीस को चुनौती देती हैं तो स्वयं ही उपहास का पात्र बन जाती हैं। बेशक देवेंद्र फडणवीस उनकी चुनौती स्वीकार नहीं करते हैं। लेकिन सामने बैठे दर्शक तालियां बजाते हैं, मीडिया वही दिखा रहा है जो अंधारे कहती हैं, मीडिया में अंधारे की बात हो रही है जिससे उन्हें आशा है कि वो अपने आप को मजबूत बना लेगी। लेकिन येसा नहीं है।
सत्र के दौरान, देवेंद्र फडणवीस एक शक्तिशाली नेता हैं, एनसीपी के नेता और विपक्ष के नेता अजीत पवार ने खुद हॉल में सार्वजनिक रूप से यह बात कही। एनसीपी के एक दिग्गज नेता जब फडणवीस की ताकत का जिक्र करते हैं, तो उसी पार्टी से चुनी गई सुषमा अंधारे फडणवीस को चुनौती देती हैं, यह अजीब लगता है। बेशक, इसे गंभीरता से लेने की जरूरत नहीं है। लेकिन काबिलियत दिखाने की जरूरत है। हो सकता है कि अंधारे को उद्धव ठाकरे समूह द्वारा यह योग्यता न दिखाई जाए। क्योंकि उन्हें बातूनी नेताओं की जरूरत थी, जिसकी पूर्ति अंधारे अपने भाषण से कर रही हैं। ऐसे में अगर अब से अंधारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनौती देती है तो भी उनकी तारीफ होगी, उनकी सराहना की जाएगी। अजीत पवार ने एनसीपी कार्यकर्ता साक्षाना सालगर को एनसीपी के एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना करने से रोक दिया। उस समय उन्होंने अपनी काबिलियत साबित कर दी थी। उद्धव ठाकरे गुट वह काम नहीं कर सकी।
सुषमा अंधारे कभी किसी विचारधारा से बंधी नहीं रहीं। उन्होंने एनसीपी में काम किया लेकिन इससे पहले उन्होंने शरद पवार की भी आलोचना की थी। क्या वह ऐसा करने के योग्य थीं, लेकिन उनकी आलोचना के बाद भी वह एनसीपी में ही थीं। बालासाहेब ठाकरे से लेकर उन्होंने उद्धव ठाकरे, आदित्य ठाकरे को भी आड़े हाथ लिया लेकिन आज वो उनकी ही पार्टी में हैं। फिर इतने अस्त-व्यस्त करियर वाले अंधारी जैसा नेता सिर्फ बातों से ही चुनौती दे सकती है लेकिन असल में किसी का सामना नहीं कर सकता।
इससे पहले आदित्य ठाकरे ने मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को चुनौती दी थी। आदित्य ठाकरे ने कहा कि एकनाथ शिंदे को उनके साथ आमने-सामने चर्चा करनी चाहिए और आरोप लगाया कि महाराष्ट्र की परियोजनाएं गुजरात में कैसे जा रही हैं। आदित्य ठाकरे की मांग और अंधारे की चुनौती में कोई अंतर नहीं है। एकनाथ शिंदे कई वर्षों से विभिन्न स्तरों पर राजनीति में शामिल रहे हैं। उन्होंने लंबे समय तक देखा और अनुभव किया है। उन्होंने ठाणे में शिवसेना का गढ़ बरकरार रखा है। आदित्य ठाकरे केवल एक युवा नेता हैं क्योंकि वह भी ठाकरे परिवार से ताल्लुक रखते हैं। बेहद सुरक्षित निर्वाचन क्षेत्र को देखते हुए चुने गए। इसलिए एकनाथ शिंदे को उनकी चुनौती उतनी ही हास्यास्पद है जितनी कि अंधारे की फडणवीस को चुनौती। अगर एक बार उद्धव ठाकरे ने फडणवीस को चुनौती दी या शिंदे को चुनौती दी, तो यह स्वीकार्य है। लेकिन अंधारे और आदित्य ठाकरे ऐसी चुनौतियों को उपहास का विषय बनाते हैं।
फडणवीस ने सुषमा अंधारे द्वारा दी गई चुनौती पर ध्यान नहीं दिया। उन्होंने अधिवेशन में अपने पुराने बयानों का जिक्र करते हुए अंधारे का नाम तक नहीं लिया। क्योंकि किसी भी नेता को चुनौती देना यह हमें महान नहीं बनाते हैं। जरूरी है कि चुनौती देने के लिए पहले हमें वह क्षमता हासिल करनी होगी, हमें अपना वर्चस्व बनाना होगा। नहीं तो लोग इसे मजे के तौर पर देखते हैं। भले ही मीडिया में इसकी चर्चा हो, लेकिन यह मीडिया के लिए सिर्फ टीआरपी बटोरने का विषय है, इससे ज्यादा कुछ नहीं। अंधारे और आदित्य ठाकरे को यह याद रखना चाहिए।
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