हल्द्वानी में रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण के मामले में 5 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद उत्तराखंड के हल्द्वानी में बसे करीब 50 हजार लोगों के सिर से छत उजड़ने का खतरा फिलहाल के लिए टल गया है। इसके साथ ही कोर्ट ने हल्द्वानी के बनभूलपुरा इलाके में रेलवे की जमीन से अतिक्रमण हटाने के हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने कहा कि रातों रात 50 हजार लोगों को नहीं हटाया जा सकता है। यह एक मानवीय मामला है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमें कोई व्यावहारिक समाधान ढूंढना होगा।
दरअसल उत्तराखंड की हाई कोर्ट हल्द्वानी के बनभूलपुरा के 2.2 किमी इलाके में फैले गफूर बस्ती, ढोलक बस्ती और इंदिरा नगर के रहनेवाले लोगों को रेलवे ने नोटिस जारी किया था। हाई कोर्ट ने कहा था कि जिस भूमि को अतिक्रमण बताया जा रहा है वह नजूल की भूमि है। इसी संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार और रेलवे को भी नोटिस जारी किया है। अब इसकी अगली सुनवाई सात फरवरी को होगी। बता दें कि हल्द्वानी में घरों के अलावा, लगभग आधे परिवार भूमि के पट्टे का दावा कर रहे हैं। इस क्षेत्र में चार सरकारी स्कूल, 11 निजी स्कूल, एक बैंक, दो ओवरहेड पानी के टैंक, 10 मस्जिद और चार मंदिर हैं। इसके अलावा दशकों पहले बनी दुकानें भी हैं। लोगों का दावा है कि वे बरसों से उस ज़मीन पर बसे हैं और उनके पास सारे दस्तावेज मौजूद हैं।
पहले नजूल जमीन के बारे में थोड़ा समझ लेते हैं। नजूल जमीन सरकारी जमीन होती है। इस जमीन की मालिक राज्य सरकार होती है। गांवों में अक्सर यह जमीन यूं ही पड़ी मिल जाती है। हालांकि इस जमीन के इस्तेमाल को लेकर राज्य सरकार ने नियम बनाया हुआ है। मतलब सरकार इसे इस्तेमाल के लिए दे सकती है। यहां ध्यान देनेवाली बात ये है कि नजूल जमीन को हस्तांतरित तो किया जा सकता है, लेकिन उसका मालिकाना हक सरकार के पास ही रहता है। इसके साथ ही यह जमीन जिसे मिलती है, वह न इसे बेच सकता है और न किराए पर दे सकता है।
आज यहाँ बड़ा सवाल यह भी है कि आखिर ये कैसे तय होगा कि किस जमीन पर अतिक्रमण के खिलाफ कार्यवाही हो सकती है और किस जमीन पर नहीं। आज भारत के कई शहर झुग्गी बस्तियों में तब्दील हो चुके है। अतिक्रमण का यह मामला 75 वर्षों से हमारे देश में चली आ रही है। हालांकि इस अवैध कब्जे को अब रोकने की सख्त जरूरत है। और सरकार को ऐसे अफसरों के खिलाफ कार्यवाही करनी चाहिए। जिन्होंने जमीनों पर अवैध कब्जे होने दिए। जून 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने बहुत बड़ा फैसला सुनाया था जिसके तहत उस समय वन विभाग की जमीन पर बने 10 हजार मकान पर बुलडोजर चलाया गया था। ये सारे मकान दिल्ली के पास हरियाणा के फरीदाबाद में वन विभाग की जमीन पर बने थे। वहीं सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ही इन सारे 10 हजार मकान को तोड़ा दिया गया था।
सोचनेवाली बात है कि आज जब भी रेलवे विभाग या कोई सरकार किसी सरकारी जमीन को खाली कराने जाती है तो उसे खाली करने के लिए सुरक्षा बल की जरूरत होती है। इससे पता चलता है कि हमारे देश की सरकारी जमीन को अतिक्रमण से मुक्त कराना कितनी बड़ी चुनौती है। आज भी हमारे देश में जब कोई व्यक्ति जमीन खरीदता है तो वह जमीन के चारों और एक चार दीवारी बनाता है ताकि कोई व्यक्ति उस जमीन पर कब्जा ना करें। इससे स्पष्ट है कि अवैध कब्जे वाली बीमार ने भारत में कितना गंभीर रूप ले लिया है।
इस समय भारत में वन विभाग के 9 लाख 7 हजार एकड़ जमीन पर अवैध रूप से लोगों का कब्जा हो चुका है। इसी तरह भारत में जो जमीन रक्षा मंत्रालय की भूमि है, उनके 9 हजार 375 एकड़ जमीन पर लोगों का कब्जा हो चुका है। यानी भारत में जंगल से लेकर सेना के जमीन पर लोगों ने अपना अवैध कब्जा जमा रखा है। वहीं इस समय भारत में रेल्वे की लगभग 2 हजार एकड़ जमीन पर लोगों का अवैध कब्जा है। इसका रिकार्ड रेल्वे के पास है। रेलवे की इस जमीन पर लोगों ने झुग्गी और बस्ती बना लिया है। यहाँ लोग कई वर्षों से रह रहे है। वहीं बात यदि दिल्ली की करें तो दिल्ली के ही 140 किमी रेलवे ट्रैक पर लाखों झुग्गी बने हुए है। सोचनेवाली बात है कि दिल्ली की आम आदमी पार्टी ने यहाँ लोगों को फ्री में बिजली और पानी तक की सुविधा उपलब्ध कराई है साथ ही इन सब का आधार कार्ड और वोटर आईडी भी बन चुका है। एक तरह दिल्ली सरकार कहती है कि ये कब्जे सही है वहीं दूसरी और रेलवे कहती है कि ये उनकी जमीन है।
अब बात करते है हल्द्वानी की जिसमें मासूमियत की झलक मिलती है। जिसमें उन हज़ारों महिलाओं और बच्चों की तस्वीरें दिखाई गई, जिन्होंने ठंड के बीच इन अवैध कब्जों को बचाने के लिए प्रदर्शन किया। हरद्वानी के जिस क्षेत्र में ये अतिक्रमण हुआ है वो जगह अपराध के लिए काफी बदनाम रहा है। यहाँ से नशे में प्रयोग किया जानेवाले इन्जेक्शन बरामद किया जा चुका है यानी यहाँ ड्रग्स का कारोबार होता है। साथ ही प्रतिबंधित दवा और अवैध शराब यहाँ पकड़ी गई है। लूट और चोरी के मामले में यहाँ कई कार्यवाहियाँ हो चुकी है। बता दें कि इसी साल इस क्षेत्र में एक मंदिर से दर्शन करके लौट रहे लोगों पर पथराव किया गया था। वहीं रेलवे द्वारा भी इन लोगों पर कई केस दर्ज कराई जा चुकी है।
भारत देश में ऐसे हजारों मोहल्ले है जहां नेताओं और सरकारी अधिकारियों की मदद और रिश्वत देकर ऐसे इलाके सरकारी जमीन पर बसा दिए जाते है। वहीं जब कोर्ट इस पर एक्शन लेती है तो धर्म को बीच में लाया जाता है। उत्तराखंड के हल्द्वानी में रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण का मामला अब मजहबी होता दिख रहा है। कुछ मुस्लिमों नेताओं के बयान से ऐसा लग रहा है। इन नेताओं का कहना है कि जिन लोगों को घर से बेघर किया जा रहा है, उनमें मुस्लिमों के तादाद ज्यादा हैं। किसी ने सरकार की नीयत पर सवाल उठाया है तो किसी ने कहा कि यह देश नफरत ने नहीं चलेगा। वहीं हल्द्वानी अतिक्रमण हटाए जाने को लेकर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में भी छात्रा ने विरोध किया और हाथों में पोस्टर लेकर मार्च किया। छात्रों ने कहा कि मुसलमानों के खिलाफ जिस तरह सरकार काम रही है उसे बदलना पड़ेगा।
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