साल 2024 का लोकसभा चुनाव बीजेपी मुख्य रूप से उन दो मुद्दों पर लड़ने की तैयारी में है, जिस पर विपक्षी दलों को खासा ऐतराज है। पहला- नागरिकता संशोधन कानून यानी CAA और दूसरा समान नागरिक संहिता यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड है। हालांकि सीएए तो जनवरी 2020 से ही प्रभावी हो गया है, लेकिन अभी तक इसके नियम नहीं बने हैं। वहीं यूनिफ़ार्म सिविल कोड एक ऐसा मसला है, जो जनसंघ से लेकर बीजेपी बनने तक की उसकी राजनीतिक यात्रा का सबसे बड़ा हमसफर रहा है और पार्टी देशवासियों से ये वादा करती आई है कि सत्ता में आने पर इसे हर हाल में लागू किया जाएगा। आसान भाषा में समझें तो यूनिफ़ार्म सिविल कोड का अर्थ है-सभी धर्मों के लिए एक कानून। फिलहाल हिंदुओं, मुस्लिमों और पारसियों के लिए अलग-अलग कानून हैं। हालांकि साल 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के घोषणा-पत्र में क्या ये मुख्य एजेंडा होगा? यह देखना दिलचस्प होगा।
देश में यूनिफ़ार्म सिविल कोड लागू करने की तैयारी शुरू हो चुकी है। हो सकता है कि अगले साल होनेवाले लोकसभा चुनाव से पहले ही देश में समान नागरिक संहिता कानून लागू हो जाएं। 22 वें लॉ कमिशन ने देश के लोगों से अगले 30 दिन में इस मामले पर अपनी राय देने के लिए कहा है। हालांकि देखना होगा कि 2024 में होनेवाले लोकसभा चुनाव से ठीक पहले क्या यही मोदी सरकार का सबसे बड़ा दावं होगा। लॉ कमिशन ऑफ इंडिया को भारत का विधि आयुक्त कहते है। और ये फैसला भारत के 22 वें विधि आयोग ने दिया है जिसका गठन हुआ फरवरी 2020 में- इस मौजूदा लॉ कमिशन का कार्यकाल 3 साल का था। जो इस साल फरवरी 2023 में समाप्त भी हो चुका है। लेकिन इस दौरान सरकार ने इसके कार्यकाल को अगस्त 2024 तक के लिए बढ़ा दिया है। और ये इसलिए बहुत महत्वपूर्ण बात है क्यूंकी वर्ष 2024 में ही लोकसभा के चुनाव होनेवाले है।
इसलिए हो सकता है कि मौजूदा लॉ कामिशन का कार्यकाल इसलिए बढ़ाया गया हो कि सरकार अगले साल होनेवाले लोकसभा चुनाव से ठीक पहले यूनिफ़ार्म सिविल कोड को संवैधानिक रूप रेखा देना चाहती हो। लॉ कामिशन ऑफ इंडिया का कहना है कि उससे पहले 21वें विधि आयोग ने भी इस मुददें पर काफी अध्ययन किया था। और तब उस पैनल ने अपने कंसलटेंशन यानी सलाहकार या परामर्श पेपर में कहा कि ये एक ऐसा मुद्दा है। जिसपर और ज्यादा चर्चा कराने की जरूरत है। लेकिन इस बात को अब 3 साल से भी ज्यादा समय हो चुका है। और इसलिए लॉ कमिशन ऑफ इंडिया ने ये फैसला किया कि वो फिर से इस विषय पर अध्ययन करेगा। और नया कंसलटेंशन पेपर तैयार करने के लिए लोगों से उनकी राय और उनके सुझाव मांगेगा। ये पूरी प्रक्रिया अगले 30 दिन के अंदर लागू हो जाएगी। जिसमें हमारे देश के लोग और मान्यता प्राप्त धार्मिक संगठन यूनिफ़ार्म सिविल कोड को लेकर अपनी राय विधि आयोग को ईमेल या एक लिंक के जरिये ऑनलाइन भेज सकते हैं। वहीं इस यूनिफ़ार्म सिविल कोड को लेकर आपके द्वारा दिए गए सुझाव को यदि पसंद किया गया तो आपको चर्चा के लिए आमंत्रित भी किया जाएगा।
यूनिफ़ार्म सिविल कोड का मतलब है समान नागरिक संहिता यानी सभी धर्मों के लोगों के लिए एक समान कानून और ऐसा कानून जो सबके लिए समान है। यानी सांप्रदायिक नहीं समान कानून। और अभी हमारे देश में दो तरह के कानून है। पहला है क्रिमिनल लॉ और दूसरा है सिविल लॉ। क्रिमिनल लॉ सभी धर्मों के लिए समान है। क्यूंकी हत्या और दूसरे अपराधों में जितनी सजा हिन्दू धर्म के व्यक्ति को होती है उतनी ही सजा दूसरे धर्म के व्यक्ति को भी होती है। लेकिन सिविल लॉ को लेकर हमारे देश में एक समान कानून नहीं है। सिविल लॉ का मतलब है शादी, संपत्ति और तलाक से जुड़े कानून। भारत में ऐसे मामलों में हिन्दू, जैन, सिख और बौद्ध धर्म के लोग समान कानून के दायरे में आते है। लेकिन ये कानून भारत के मुसलमान, ईसाई और पारसी धर्म के लोगों पर लागू नहीं होते। क्यूंकी इन सभी धर्मों के अपने-अपने पर्सनल लॉ है।
हालांकि अगर भारत में यूनिफ़ार्म सिविल कोड लागू हो गया तो सभी धर्मों के लोग एक समान कानून के दायरे में या जाएंगे। और तब शायद सही मायनों में भारत का संविधान धर्मनिरपेक्ष और एकसमान बन पाएगा। क्यूंकी अभी भारत का समान धर्मनिरपेक्ष की बात तो करता है। और ये भी कहता है कि भारत में समान कानून की व्यवस्था होनी चाहिए। लेकिन दूसरी तरफ हमारे ही देश में लोगों के धर्म के हिसाब से अलग-अलग कानून भी है।
जैसे भारत का कानून कहता है 18 वर्ष से कम उम्र की लड़की का विवाह नहीं हो सकता और अगर कोई लड़की ऐसा करती है तो यह विवाह मान्य नहीं होगा। और ऐसी शादी गैरकानूनी होगी। लेकिन मुस्लिम पर्सनल लॉ के मुताबिक 15 साल की लड़की का विवाह मान्य भी है और गैरकानूनी बिल्कुल नहीं है। सोचनेवाली बात यह है कि इसी देश में अगर किसी हिन्दू की बेटी है जो 18 साल से कम उम्र में शादी कर लेती है तो वो शादी गैरकानूनी हो जाएगी। लेकिन वो लड़की मुस्लिम परिवार से आती है और अगर वो 15 साल की उम्र में भी शादी कर लेती है तो वो शादी कानूनी रूप से सही मानी जाएगी। ये उदाहरण है एक ही देश में दो अलग-अलग कानून का।
भारत में अब तक यूनिफ़ार्म सिविल कोड को देखने का नजरिया हमेशा से ही राजनीति रहा है। और बहुत सारी पार्टियां मुस्लिम तुष्टीकरण के लिए इसका विरोध करती आई है। लेकिन बीजेपी ने अपनी स्थापना के बाद शुरुवाती वर्षों में जो वादा लोगों से किया था उनमें यूनिफ़ार्म सिविल कोड का वादा भी था और सारे वादों में अब यही एक वादा बचा है बाकी सारे वादे मोदी सरकार पूरे कर चुकी है। मोदी सरकार ने जो वादे किए थे उनमें अयोध्या राम मंदिर, जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाना, तीन तलाक को समाप्त करना, ये सारे ही वादे पूरे हो चुके है। और अब बारी है यूनिफ़ार्म सिविल कोड की। तो भारत अब यूनिफ़ार्म सिविल कोड के लिए पूरी तरह से तैयार है और हो सकता है कुछ ही महीनों के अंदर अंदर ये नया कानून लागू हो जाएं। हो सकता है कि अगले लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी अपना एक बहुत बड़ा दांव खेल ले। यूनिफ़ार्म सिवल कोड का समर्थन जो लोग कर रहे है उनके लिए यह एक बहुत अच्छी खबर है। और भारत देश के लिए भी ये एक अच्छी खबर है।
ये भी देखें
पटना में विपक्षी एकता की बैठक का क्या फायदा? बिहारियों का पलायन रुकेगा?
महाराष्ट्र फिल्म सेना और जितेंद्र आव्हाड का ट्वटिर पर छिड़ा घमासान!
बिपरजॉय तूफान के कहर से मुंबईकरों को बचाने के लिए BMC की खास तैयारी