बिहार में बहार है…कभी यह नारा खूब गूंजता था। लेकिन ऐसा लगता है कि बिहार में कभी भी बहार नहीं आएगी। क्योंकि यहां के नेताओं को नेतागिरी से छुट्टी ही नहीं मिलती है. तो जनता के बारे में क्या सोचेंगे ? यह बड़ा और अहम सवाल है। दो दिन पहले ही एक टीवी शो के कार्यक्रम में मीडिया के एक छात्र ने पूछा था कि बिहार का पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश आज तरक्की पर तरक्की कर रहा है, लेकिन बिहार में आज भी जंगलराज है। ऐसे में बिहार की राजनीति पर सवाल तो खड़े होंगे ही।
गौरतलब है कि यूपी में योगी सरकार आने के बाद से कई योजनाएं राज्य की तरक्की में अहम साबित हो रही है। यूपी सरकार ने निवेशकों को आकर्षित करने के लिए हाल ही में एक कार्यक्रम आयोजित की थी। मगर बिहार सरकार में लगातार राजनीति उठापटक की वजह से राज्य की दशा और दिशा तय नहीं हो पा रही है। बिहार आज भी बीमारू राज्य बना हुआ है। ताजा मामला जेडीयू नेता उपेंद्र कुशवाहा का है। उन्होंने जेडीयू से निकलकर अपनी अलग पार्टी बना ली है। इससे पहले भी कुशवाहा ने दो बार अपनी पार्टी बना चुके है, साफ़ है कि नीतीश कुमार का साथी होने की वजह से वे जेडीयू से अंदर बाहर होते रहे हैं। नीतीश कुमार भी हर चुनाव के बाद अपना सहयोगी बदलते रहते हैं।
सबसे बड़ी बात यह है कि कुशवाहा ने जब पार्टी छोड़ी तो उन्होंने कहा कि अब नितीश कुमार के पास कुछ नहीं बचा है। तो उनसे क्या हिस्सेदारी लूं। बता दें कि 26 जनवरी को कुशवाहा ने नीतीश कुमार पर बड़ा हमला बोला था. उन्होंने चेतावनी वाले लहजे में कहा था कि वे जेडीयू से बिना हिस्सेदारी लिए नहीं जा सकते हैं। लेकिन जब उन्होंने जेडीयू से इस्तीफा दिया तो खाली हाथ थे। यानी कुशवाहा की हालत बेआबरू होकर तेरे कुचे से निकाले जैसे हो गई। वे न घर के रहे न घाट के। बार बार पार्टी बदलने के कारण उन पर अन्य पार्टियों का भरोसा उठ गया है। हालांकि, जेडीयू से खाली हाथ लौटने पर इसके कई मायने निकाले जा रहे है। कहा जा रहा है कि अगर जेडीयू में कुशवाहा और दिन रहते तो उन्हें जबरन निकाल दिया जाता। इसलिए उन्होंने खुद पार्टी से इस्तीफा दे दिया है।
ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि कुशवाहा का नीतीश कुमार का साथ छोड़ने पर जेडीयू पर क्या असर पड़ेगा। तो बता दें कि कुशवाहा ने अपना राजनीति सफर समता पार्टी से शुरू किया था। तब नीतीश कुमार पार्टी के बड़े नेताओं में गिने जाते थे, लेकिन 2000 के विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद समता पार्टी जेडीयू यानी जनता दल यूनाइटेड में बदल गई। हालांकि, कुशवाहा ने इस विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज की थी। जिसके बाद नीतीश कुमार ने कुशवाहा को विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाया था। उस समय लालू ने राज्य में यादव और मुस्लिम के समीकरण के साथ सत्ता हासिल की थी। जिसके बाद नीतीश कुमार ने कुशवाहा के जरिये ‘लव कुश” की योजना बनाई। जिसमें कुर्मी, कोइरी,कुशवाहा और ओबीसी की अन्य जातियों के साथ एक समीकरण तैयार किया।
लेकिन, कुशवाहा ने 2013 में नीतीश कुमार का साथ छोड़कर अपनी खुद की नई पार्टी बना ली। यह बात उस समय कि है जब नरेंद्र मोदी को 2014 के लोकसभा चुनाव के लिए बीजेपी ने पीएम उम्मीदवार घोषित किया था। उस समय नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे। नरेंद्र मोदी को पीएम उम्मीदवार घोषित करने से वे बीजेपी समर्थित एनडीए से बाहर निकल गए थे। कुशवाहा ने अपनी पार्टी का नाम राष्ट्रीय लोक समता पार्टी रखा था। यहां, कुशावाहा ने बीजेपी के साथ चले गए और 2014 का लोकसभा चुनाव बीजेपी के साथ लड़ा और जीत दर्जकर सरकार में मंत्री भी रहे।
बहरहाल, नीतीश कुमार और उपेंद्र कुशवाहा में एक बात कॉमन है। दोनों पाला बदलने में माहिर हैं। 2017 में जब नीतीश कुमार ने महागठबंधन से बाहर निकलकर बीजेपी के साथ गए तो कुशवाह ने 2018 बीजेपी का साथ छोड़ दिया। 2019 के लोकसभा चुनाव में महागठबंधन के साथ चले गए, लेकिन उन्हें करारी हार मिली। इसके बाद कुशवाहा इधर उधर भटकते हुए 2020 के विधानसभा चुनाव में जेडीयू में अपनी पार्टी का विलय कर लिया। लेकिन यहां भी खटपट जारी रही। बीते साल जब नीतीश कुमार ने तेजस्वी यादव को 2025 के विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किया तो यह मामला और तेजी से बिगड़ता गया और अब कुशवाहा जेडीयू से बाहर हैं।
कहा जा रहा है कि अगर कुशवाहा बीजेपी के साथ जाते हैं तो वे जेडीयू को बड़ा झटका दे सकते हैं। वैसे भी जेडीयू की हालत काफी खराब हों चुकी है। जानकार तो यहां तक कह रहे हैं कि अपनी बदहाली को देखकर ही नितीश कुमार ने तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री का चेहरा बनाने की घोषणा की थी। जिसका उनकी ही पार्टी में विरोध हो रहा है। एक दिन पहले ही जेडीयू के अध्यक्ष ललन सिंह ने कहा कि मैंने कब कहा था कि तेजस्वी यादव को सीएम बनाया जाए। कुल मिलाकर कहा जाए तो नीतीश की आगामी चुनाव में लोटिया डुबनी तय हैं।
बहरहाल,जानकारों का कहना है कि अभी फ़िलहाल महागठबंधन के पास 74 प्रतिशत से ज्यादा वोट है। जबकि बीजेपी को 2020 के विधानसभा चुनाव में 19 प्रतिशत वोट मिले थे। ऐसे में अगर बीजेपी राज्य की छोटी छोटी पार्टियों के साथ आगामी चुनाव लड़ती है तो नीतीश कुमार और महागठबंधन के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती है। जबकि कुशवाहा जेडीयू और राजद के वोटों को टारगेट करेंगे। जो बड़ा नुकसान कर सकते हैं। अगर वे बीजेपी के साथ जाते हैं तो बिहार की राजनीति में बिखराव की नई कहानी लिखी जाएगी। क्योंकि नीतीश कुमार अब कमजोर हुए हैं, तो उनकी भी पार्टी में हलचल तेज है। जिसका लाभ कुशवाहा उठाने से नहीं चूकेंगे। तो देखना होगा कि बिहार की राजनीति में बहार आता या बिखराव यह तो आने वाला समय ही बताएगा।