वीर सावरकर: क्रांति की ज्वाला और भारतीयों का प्रेरणास्रोत

"अभिनव भारत" नामक एक गुप्त क्रांतिकारी संगठन की स्थापना की और ब्रिटिश राज के खिलाफ विद्रोह के लिए युवाओं को संगठित किया।

वीर सावरकर: क्रांति की ज्वाला और भारतीयों का प्रेरणास्रोत

Veer Savarkar: Flame of revolution and source of inspiration for Indians

-प्रशांत कारुलकर

वीर सावरकर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख व्यक्ति थे, जिन्होंने राष्ट्र निर्माण में बहुआयामी योगदान दिया। उनका योगदान स्वतंत्रता संग्राम से परे सामाजिक सुधार और राष्ट्रीय पहचान के निर्माण में भी महत्वपूर्ण रहा है।

सावरकर मात्र 14 वर्ष की आयु से ही स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ गए थे। उन्होंने “अभिनव भारत” नामक एक गुप्त क्रांतिकारी संगठन की स्थापना की और ब्रिटिश राज के खिलाफ विद्रोह के लिए युवाओं को संगठित किया। उन्हें 1904 में ब्रिटिश सरकार द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया और अंडमान सेलुलर जेल में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई।

जेल में रहते हुए भी सावरकर ने अपनी क्रांतिकारी भावना को मिटने नहीं दिया। उन्होंने कई साहित्यिक कृतियों की रचना की, जिनमें “हिंदू राष्ट्र” और “स्वातंत्र्य-समर” शामिल हैं। ये रचनाएँ भारत की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष को प्रज्वलित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

11 वर्षों के कठिन कारावास के बाद, 1924 में सावरकर को रिहा कर दिया गया। रिहाई के बाद भी वह राष्ट्र निर्माण और सामाजिक सुधारों में सक्रिय रहे। उन्होंने हिंदू राष्ट्रवाद की विचारधारा को आगे बढ़ाया और सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाई।

स्वतंत्रता संग्राम:​-

क्रांतिकारी विचारधारा के प्रणेता: सावरकर ने युवाओं में क्रांतिकारी विचारधारा जगाने में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने अपनी लेखनी और भाषणों के माध्यम से अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष का आह्वान किया।

बलिदान की भावना: सावरकर अंग्रेजों के विरुद्ध क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल रहे, जिसके कारण उन्हें कठोर कारावास भी भोगना पड़ा। उन्होंने सेलुलर जेल में अमानवीय यातनाएं सहीं, परंतु कभी झुके नहीं।

राष्ट्रीय चेतना का प्रसार: सावरकर ने ‘स्वराज्य’ और ‘हिंदुत्व’ की अवधारणाओं को जन-जन तक पहुंचाया। उन्होंने राष्ट्रीय चेतना जगाने के लिए कई लेख और पुस्तकें लिखीं, जिनमें ‘हिंदू राष्ट्र दर्शन’ और ‘मै हूँ हिंदू’ प्रमुख हैं।

राष्ट्रीय ध्वज का प्रारूप: सावरकर ने 1906 में बंगाल विभाजन के विरोध में राष्ट्रीय ध्वज के प्रारूप का प्रस्ताव दिया। यह प्रारूप भारत के पहले तिरंगे ध्वज का आधार बना।

सामाजिक सुधार:​-

अस्पृश्यता विरोधी विचार:सावरकर जाति व्यवस्था के विरोधी थे और उन्होंने अस्पृश्यता निवारण के लिए आवाज उठाई। उन्होंने ‘पाटण शिरोमणि मंदिर’ की स्थापना की, जो सभी जातियों के हिंदुओं के लिए खुला था।

महिला सशक्तीकरण: सावरकर महिला शिक्षा और सशक्तीकरण के पक्षधर थे। उन्होंने महिलाओं को राष्ट्र निर्माण में भागीदारी के लिए प्रोत्साहित किया।

वीर सावरकर का जीवन और योगदान बहुआयामी है।उनका राष्ट्र के प्रति समर्पण, क्रांतिकारी विचारधारा और सामाजिक सुधारों के प्रयास उन्हें भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाते हैं।उनका जीवन और कार्य आज भी युवाओं को प्रेरणा देते हैं।उनकी निष्ठा, साहस, बलिदान और राष्ट्रभक्ति को हमेशा याद रखा जाएगा।

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