सात सितंबर 2022 का दिन लगभग सभी को याद होगा। क्योंकि इसी दिन राहुल गांधी ने “भारत जोड़ो यात्रा” की शुरुआत की थी। जबकि इससे एक दिन पहले यानी 6 सितंबर को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार दिल्ली में राहुल गांधी, अरविंद केजरीवाल और शरद पवार सहित कई नेताओं से मिले थे। आज इस घटना के लगभग आठ माह हो गए है। वर्तमान में बहुत कुछ बदल गया है। राहुल गांधी, सांसद से पूर्व सांसद हो गए हैं। जबकि नीतीश कुमार का हृदय परिवर्तन हो गया है। ऐसी बिहार के राजनीति गलियारे में चर्चा है।
वहीं, नीतीश कुमार ने अगस्त 2022 के पहले सप्ताह में बीजेपी से अलग हुए थे। उसके बाद ही उन्होंने विपक्ष को एकजुट करने का ऐलान किया था। अब एक बार फिर नीतीश कुमार चर्चा में हैं। कहा जा रहा है कि नीतीश कुमार फिर पलटी मार सकते हैं। नीतीश कुमार लगातार बीजेपी नेताओं से मिल रहे हैं और उनके धार्मिक कार्यक्रमों में शामिल हो रहे हैं। जिसके कई मायने निकाले जा रहे हैं। तो आइये जान लेते हैं कि बिहार की राजनीति में क्या चल रहा है?
दरअसल, विपक्षी एकता का दम भरने वाले नीतीश कुमार की राजनीति अधर में हैं। उन्हें कोई पार्टी या नेता भाव नहीं दे रहा है। बीजेपी से अलग होने के बाद उन्होंने कहा था कि पीएम मोदी को 2024 के लोकसभा चुनाव में हराएंगे। लेकिन, वर्तमान में जिस तरह से उन्हें विपक्षी दलों ने किनारे लगाया है, उससे लगता है कि अब नीतीश कुमार की राजनीति हैसियत हाशिये पर चली गई।
राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता जाने के बाद सभी राजनीति दल, बीजेपी की एक सुर में आलोचना की, लेकिन नीतीश कुमार इस मामले पर कुछ भी कहने से इंकार कर दिया। ऐसे में सवाल उठता है कि नीतीश कुमार ने राहुल कांड पर क्यों नहीं बोले। आखिर ऐसी कौन सी वजह है कि विपक्ष की एकता की हुंकार भरने वाले नीतीश को बोलती बंद क्यों है। जबकि महागठबंधन में कांग्रेस शामिल है। सवाल पूछा जा रहा है कि, आखिर बीजेपी नेताओं से उनकी नजदीकियां क्यों बढ़ रही है।
गौरतलब है कि चैती छठ के अवसर पर नीतीश कुमार बीजेपी नेता संजय मयूख के घर गए थे। यहां नीतीश कुमार अपने लाव लश्कर के साथ पहुंचे। खड़ना खाने पहुंचे मुख्यमंत्री का बीजेपी नेता ने जोरदार स्वागत किया था। खड़ना के बारे में कहा जाता है कि इसे ज्यादा से ज्यादा लोगों में बांटने की कोशिश होती है। मान्यता है कि जो खड़ना खा लेता है उससे कोई बैर नहीं होता है , वह व्यक्ति अपने जमात का हो जाता है। अभी तो यह भविष्य के गर्भ में है कि नीतीश कुमार बीजेपी के हुए की नहीं, लेकिन उसके आगे की कहानी और दिलचस्प है।
दरअसल, नीतीश कुमार जिस संजय मयूख के घर खड़ना खाने पहुंचे थे, वे बिहार बीजेपी का जाना माना चेहरा है। संजय मयूख जमीनी स्तर के नेता है और गृहमंत्री अमित शाह के करीबी है। संजय मयूख वर्तमान में एमएलसी हैं। इतना ही नहीं राष्ट्रीय प्रवक्ता भी हैं। इस घटना के बाद से बिहार में कई तरह की अटकलें लगाई जा रही है। सवाल किया जा रहा है कि क्या एक बार फिर नीतीश कुमार यू टर्न लेंगे। यह सवाल उठना वाजिब भी है। क्योंकि नीतीश कुमार का पलना अब कोई नया नहीं रह गया है।अगर नीतीश कुमार ऐसा करते हैं तो कोई हैरानी वाली बात नहीं होगी। जो यह कह चुके हैं कि मरते दम तक अब वे बीजेपी के साथ नहीं जाएंगे?
गौरतलब है कि नीतीश कुमार की त्यौहार कूटनीति हमेशा चरचा में रही है। इसी तरह, अप्रैल 2022 में राबड़ी देवी ने इफ्तार की दावत दी थी, जहां नीतीश कुमार पैदल पहुंचे थे। इसके पांच माह बाद नीतीश कुमार ने बीजेपी को झटका देकर महागठबंधन का दामन थाम लिया था। इसलिए नीतीश के फेस्टिवल पॉलिटिक्स की चर्चा तेज हो गई है। वर्तमान माह भी अप्रैल ही है। ऐसे में देखना बड़ा दिलचस्प होगा कि क्या एक और इफ्तार दावत सरकार बदलेगी। उस समय लालू प्रसाद के बेटे तेजस्वी यादव ने कहा था कि “चाचा आ गए तो अब सरकार भी बन जायेगी।” तो क्या बिहार में होली के आसपास सियासी होली होने वाली है। यह अभी देखना होगा।
वहीं दूसरी तरफ, नीतीश कुमार एक और बीजेपी के धार्मिक कार्यक्रम में पहुंचकर सियासी गलियारे को और गरमा दिया। दरअसल रामनवमी पर बीजेपी ने एक शोभायात्रा निकाली थी ,जिसमें बीजेपी नेताओं ने नीतीश कुमार को आमंत्रित किया था। इस दौरान भी बीजेपी नेताओं ने नीतीश कुमार का जोरदार स्वागत किया।
लेकिन क्या सच में नीतीश कुमार पाला बदलने वाले है। जिस तरह से नीतीश कुमार की त्यौहार कूटनीति रही है उससे ही जोड़कर देखा जा रहा है। सबसे बड़ी बात वैचारिकता की है, क्योंकि महागठबंधन में कांग्रेस और आरजेडी है। जो हिन्दू त्यौहार को तवज्जो नहीं देती है। वहीं पिछले दिनों आरजेडी के नेता और शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर ने रामचरितमानस को नफ़रत और समाज को बांटने वाला बताया था। यह बात जनवरी की है। इसके बाद भी कई बार रामचरितमानस पर सवाल खड़ा किया गया। कुछ दिन पहले ही जीतन मांझी भी विवादित बयान दिया था। इससे लगता है बिहार की राजनीति फिर करवट लेने वाली है।
हालांकि, बीजेपी नेताओं ने इस दौरान कहा कि यह कोई राजनीति मंच नहीं है, नीतीश कुमार इससे पहले भी ऐसे कार्यक्रमों में पहुंचते रहे हैं। वहीं, गिरिराज सिंह ने इस संबंध में कहा कि रामनवमी के अवसर पर जो कोई पहुंचता है उनकी गलतियों को भगवान राम माफ़ करते हैं। गिरिराज सिंह का यह बयान अपने आप में बड़ा मतलब समेटे हुए है। क्योंकि, पिछले माह जब अमित शाह बिहार आये थे तो उन्होंने कहा था कि अब नीतीश कुमार के साथ बीजेपी किसी भी कीमत पर नहीं जा सकती है।
वहीं, बताया जा रहा है कि अमित शाह बिहार दौरे पर जाने वाले हैं। ऐसे में क्या बीजेपी और जेडीयू में कोई खिचड़ी पक रही है? यह हर कोई जनना चाहता है, लेकिन यह भी साथ में जोड़ा जा रहा है कि नीतीश कुमार की बिहार में राजनीति खत्म होने के कगार पर पहुंच गई है। इसलिए राहुल गांधी कांड के बाद विपक्ष द्वारा दिए जा रहे धरना प्रदर्शन में उनके नेता कम ही दिखाई दे रहे हैं। जबकि अन्य दलों के नेता राहुल के समर्थन में उतर रहे हैं।
बहरहाल, देखना होगा कि नीतीश कुमार की त्यौहार कूटनीति बिहार की राजनीति को कैसे बदलती है ? क्या सही मायने में नीतीश यूटर्न लेने वाले है ? क्या यह बात सही है कि नीतीश कुमार आरजेडी के दबाव में है। इन तमाम सवालों का जवाब तो मिलेगा, लेकिन समय लगेगा।
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