सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने पूर्व राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी द्वारा महाराष्ट्र विधानसभा में कराए गए फ्लोर टेस्ट की वैधता से संबंधित एक मामले की सुनवाई की थी, जिसके बाद ऑनलाइन ट्रोल्स ने सीजेआई और न्यायपालिका पर हमला शुरू किया है। हालांकि सबसे बड़ी हैरानी की बात यह है कि चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के समर्थन के लिए कुछ विपक्षी सांसदों को आवाज उठानी पड़ी है। इन विपक्षी सांसदों को लग रहा है कि यह देश की न्यायपालिका और सीजेआई के प्रति हमला है, उनका अपमान है। इसलिए विपक्षी सांसदों को सीजेआई की पैरवी राष्ट्रपति और अटॉर्नी जनरल तक से करनी पड़ रही है। इन लोगों ने ऐसे ट्रोल्स और उनके पीछे जो लोग हैं, उनके खिलाफ सख्त और तत्काल कार्यवाही की मांग की है।
राष्ट्रपति से गुहार लगाने वाले विपक्षी सांसदों का दावा है कि सुप्रीम कोर्ट और सीजेआई के प्रति महाराष्ट्र की सत्ताधारी पार्टी से सहानुभूति रखने वाले लोग हैं। देश की सर्वोच्च सत्ता और भारत के सबसे बड़े न्याय अधिकारी के सामने जिन सांसदों ने देश के प्रधान न्यायाधीश की रक्षा के लिए आवाज उठाई है, उनमें कांग्रेस के राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा सबसे आगे हैं; और उनको समर्थन देने वालों में समाजवादी पार्टी के रामगोपाल यादव और जया बच्चन, आम आदमी पार्टी के राघव चड्ढा, शिवसेना उद्धव बालासाहेब ठाकरे ठाकरे की प्रियंका चतुर्वेदी भी शामिल हैं। जबकि, इसमें कांग्रेस के कई और सांसद भी शामिल हैं, जिसमें दिग्विजय सिंह, प्रमोद तिवारी, शक्तिसिंह गोहिल, इमरान प्रतापगढ़ी, रंजीत रंजन, अमी याज्ञ्निक और अखिलेश प्रसाद सिंह शामिल हैं।
पिछले साल जून में महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे की सरकार गिर गई थी। दरअसल शिवसेना के 40 विधायकों ने एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में बगावत कर दिया था, जिसके बाद राज्यपाल ने उद्धव सरकार को बहुतम साबित करने के लिए फ्लोर टेस्ट का आदेश दिया था। उस वक्त राज्यपाल के आदेश के खिलाफ उद्धव ठाकरे की शिवसेना सुप्रीम कोर्ट भी पहुंची थी, लेकिन कोई राहत नहीं मिली थी। महाराष्ट्र के गठित नई सरकार के खिलाफ उद्धव गुट सुप्रीम कोर्ट पहुंची थी। उन्होंने विधायकों के बगावत और राज्यपाल द्वारा दिए गए फ्लोर टेस्ट के आदेश को चुनौती दी है। लंबी सुनावई के बाद उच्चतम न्यायालय ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।
हालांकि सोचनेवाली बात यह है कि समय-समय पर न्यायालय को लेकर विवादित बयान देने से बाज ना आनेवाले विपक्षी अचानक से न्यायाधीश के इतने बड़े हितैषी कैसे बन गए। विपक्षी द्वारा समय-समय पर केंद्र सरकार, उनकी व्यवस्थाओं और जांच समिति पर विवादित बयान दिया जाता है। यह विपक्षी कभी कानून के हितैषी और कभी विरोधी बन जाते है। उनके कई उदाहरण है जिसकी जानकारी आज हम आपको देंगे।
दरअसल कुछ समय पहले सहकारिता मंत्री अतुल सावे ने चंद्रपुर जिला केंद्रीय सहकारी बैंक में भर्ती के आदेश दिए थे। लेकिन मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने इस आदेश को स्थगित कर दिया। उसके बाद चंद्रपुर जिला केंद्रीय सहकारी बैंक ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। कोर्ट ने मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को अतुल सावे के फैसले को बरकरार रखने का आदेश देते हुए कहा कि उन्हें सहकारिता मंत्री के फैसले को बदलने या फिर से विचार करने का कोई अधिकार नहीं है।
कोर्ट के इस फैसले पर मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने कोई आपत्ति नहीं जताई, न आलोचना की और न ही इस पर कोई प्रतिक्रिया दी। शिंदे-फडणवीस की शिवसेना-भाजपा सरकार के खिलाफ कोर्ट कई बार फैसला सुना चुकी है। लेकिन शिंदे-फडणवीस ने कभी इसपर आलोचना या आपत्ति नहीं जताई। कोर्ट ने महाविकास अघाड़ी के पक्ष में फैसला सुनाया, उन्हें राहत दी। बावजूद इसके शिंदे-फडणवीस ने ऐसा कोई बयान नहीं दिया कि हमें न्यायपालिका पर भरोसा नहीं है, या अदालत बिक चुकी है।
इसके विपरीत, उद्धव ठाकरे समूह द्वारा अदालत के फैसले की बार-बार आलोचना और उनके प्रति दुर्व्यवहार किया गया। संजय राउत हमेशा से कोर्ट के फैसले को नकारते रहे है। वहीं हाल ही में उन्होंने कई बार कोर्ट पर विवादित टिप्पणी किया। हालांकि सिर्फ कोर्ट पर ही टिप्पणी नहीं, बल्कि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को चुनाव चिह्न और नाम दिए जाने के बाद उन्होंने चुनाव आयोग पर भी विवादित टिप्पणी की।
चुनाव आयोग कहता है कि शिवसेना उनकी है…शिवसेना तुम्हारे बाप की है क्या …’ यह वाक्य कहते हुए संजय राउत ने केंद्रीय चुनाव आयोग के लिए सीधे-सीधे अभद्र भाषा का प्रयोग किया। संजय राउत ने विवादित बयान देते हुए कहा कि यह विधायकी नहीं चोरों का गिरोह है। आलोचना होने के बाद उन्होंने यह कहकर खुद को बचाने की कोशिश की कि मैंने ऐसा नहीं कहा। वहीं ईडी द्वारा की गई कार्रवाई के बाद महाविकास अघाड़ी के नेताओं ने उनकी आलोचना की और टिप्पणी की कि वे बेकार हैं।
महाविकास आघाड़ी और खासकर उद्धव ठाकरे गुट बार-बार जांच एजेंसियों और अदालतों की आलोचना कर रहे है। इसके बावजूद सुप्रीम कोर्ट महाराष्ट्र के सत्ता संघर्ष पर सुनवाई कर रहा है। वे यह कहने में भी नहीं झिझकते कि सुप्रीम कोर्ट ही उनके उम्मीद की आखिरी किरण बचा है। हालांकि अगर उम्मीद की यह किरण उनके खिलाफ जाती है तो वे सुप्रीम कोर्ट को भी घसीटने से नहीं हिचकिचाएंगे। वे सुप्रीम कोर्ट पर भी अभद्र बयान को देने के लिए स्वतंत्र होंगे। ऐसी प्रवृत्ति के लोग न्याय व्यवस्था और जांच व्यवस्था के प्रति लोगों का नजरिया बदल देते है। महा विकास अघाड़ी के नेता ये तमाम बयान दे रहे हैं जिससे लोगों का लोकतंत्र पर भरोसा खत्म हो रहा है, माविआ की तरफ से इस तरह का बयान देना गलत है।
वहीं इस बात की भी आलोचना की गई कि महाविकास अघाड़ी का व्यवहार और भाषण बदलता रहता है। दरअसल जब अदालत का फैसला उनके पक्ष में होता है, तो वे शेखी बघारते थे कि अदालत कितनी अच्छी थी और कहते है कि उन्हें न्यायपालिका और व्यवस्था पर भरोसा है। हम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हैं। सही निर्णय लेने के लिए सराहना की जाती है। अगर फैसला उद्धव गुट के पक्ष में आता है तो कोर्ट सही है वरना कोर्ट को बुरा भला कहा जाता है।
हालांकि अगर फैसला उनके खिलाफ जाता है तो यह किसी के लिए यानी बीजेपी के लिए राहत की बात होगी ऐसा कहा जाता है। कहा जाता है कि यह एक अदालत है जो किसी एक का पक्ष लेती है, अदालत बिक चुकी है, यह दबाव में काम कर रही है। जब भी अदालत उनके खिलाफ फैसला सुनाती थी, तो वे बयान देते थे कि कैसे यह अदालत भाजपा के अनुकूल है और कोर्ट का फैसला भाजपा को राहत दे रही हैं।
संजय राउत ने बयान देते हुए कहा कि उन्हें कोर्ट से उचित न्याय की उम्मीद नहीं है। इस पर कोर्ट ने कहा, कि हमने इस बयान को पढ़ा है। लेकिन इन बातों से हमें कोई फर्क नहीं पड़ता। संजय राउत को कोर्ट ने फटकार लगाते हुए कहा था कि इस तरह के बयानों की जगह हमारे लिए कोई मायने नहीं रखती है। लेकिन इस आलोचना के बाद भी सामना के पहले पन्ने से अदालतों की आलोचना करते हुए न्यायपालिका की यह कहकर आलोचना की गई कि केंद्र सरकार के हाथ में न्याय का तराजू चोर बाजार से खरीदा गया है।
महाविकास अघाड़ी के नेता बार-बार अदालतों, सुरक्षा व्यवस्था को लेकर गलत बयानबाजी करते रहते हैं। ये बयान देना गलत है। इस तरह के जुबानी बयान से लोगों का न्यायपालिका के प्रति नजरिया, कोर्ट के प्रति विश्वास बदल जाएगा और यह सही नहीं होगा। लेकिन ये जो प्रवक्ता बार-बार कहते रहते हैं कि महाराष्ट्र का अपमान किया गया है। और महापुरुषों का अपमान किया गया है। वहीं प्रवक्ता इन व्यवस्थाओं का अपमान कर रहे हैं। फिर उनका क्या किया जाए। महाराष्ट्र का अपमान करने वालों से बार-बार माफी की मांग करने वाले ये सभी प्रवक्ता क्या न्यायपालिका, चुनाव आयोग, जांच एजेंसी का अपमान करने के लिए माफी मांगेंगे? यह एक बड़ा सवाल है।
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