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Monday, April 14, 2025
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तनीषा भिसे केस में गलती किसकी?

जो झूठा है उसे सजा देना भी कोर्ट के ही अधिकार कक्ष में आता है। महिला कार्यकर्ता के डॉक्टर के मुंह पर चिल्लर फेंक कर मारने से डॉक्टर की नाक फुट जाएगी, मृतक तनीषा वापस नहीं आएगी। 

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महाराष्ट्र के पुणे से ख़बरें आयी की विधानपरिषद विधायक के सहाय्यक की गर्भवती बीवी को 10 लाख रूपए न भरने के कारण उपचार रोके गए, जिससे उसकी मौत हुई। मृतक तनिषा भिसे के परिवार का आरोप है कि नवजात शिशु की देखभाल के लिए ₹10 लाख की एडवांस भुगतान करने में असमर्थता के कारण मास्टर दीनानाथ मंगेशकर अस्पताल ने उसे भर्ती करने और आपातकालीन सी-सेक्शन करने से इनकार किया। अस्पताल से मना किए जाने के बाद, तनिषा को दूसरे अस्पतालों में ले जाया गया, आखिरकार 29 मार्च को सूर्या अस्पताल में सी-सेक्शन के ज़रिए जुड़वां लड़कियों को जन्म दिया। हालाँकि, प्रसवोत्तर जटिलता के कारण उसकी हालत बिगड़ती गई और 31 मार्च को बानेर के मणिपाल अस्पताल में उसकी मौत हो गई। जुड़वाँ बच्चे बच गए और कथित तौर पर स्थिर हैं, जिनमें से एक अप्रैल की शुरुआत में वेंटिलेटर से हटा दिया गया था।

इस खबर के फैलने के बाद पुणे के लोगों ने दीनानाथ मंगेशकर अस्पताल के बाहर हड़ताल किया, आंदोलन किए, इतना ही नहीं जिस डॉक्टर के अंडर कथित तौर पेपर यह केस था, उसे भी लक्ष्य करने की कोशिश हुई और उसके क्लिनिक पर भी हमले हुए। देखते ही देखते मामला इतना बड़ा हो गया की अस्पताल प्रशासन के साथ मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को भी संज्ञान पड़ा। देवेंद्र फडणवीस ने इस मामले की पूरी सघनता से जांच करने के आदेश दिए है। साथ ही अस्पताल प्रशासन के दोषी पाए जाने पर उस पर योग्य धाराओं में कारवाई के आदेशों की बात की गई है। 

मृतक की भाभी प्रियंका पाटिल के अनुसार जब उन्होंने डॉक्टरों से तनीषा को भर्ती करने की विनती की, तो एक डॉक्टर ने कथित तौर पर बेरहमी से जवाब देते हुए कहा, “अगर आप यहाँ इलाज नहीं करवा सकते तो ससून अस्पताल चले जाएँ।” ससून जनरल अस्पताल एक सरकारी अस्पताल है जो मुफ़्त या कम कीमत पर इलाज उपलब्ध कराने के लिए जाना जाता है। इस टिप्पणी को अगर आप सुनेंगे तो आप को अस्पताल की असंवेशनशीलता पर गुस्सा आएगा। मामले में परिवार ने अलंकार पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई और रिश्तेदारों ने जवाबदेही तय करने के लिए 5 अप्रैल को मुख्यमंत्री से मुलाकात की।

दरम्यान इसमें दीनानाथ मंगेशकर अस्पताल ने मामले पर समिती गठीत की उसका भी पक्ष सामने आया है। अस्पताल का कहना है की मीडिया में प्रसारित जानकारी भ्रामक है, हम रोगी देखभाल के उच्चतम मानकों के लिए प्रतिबद्ध हैं।अस्पताल के स्टेटमेंट में उल्लेख किया गया है कि तनीषा भिसे 2020 से मंगेशकर अस्पताल से परामर्श कर रही थीं और 2022 में 50% चैरिटी लाभ के साथ वहां उनकी सर्जरी कराई थी। यानी इससे पहले सब्सिडी के साथ उनका इलाज हो चूका था। समिति ने इस बात पर प्रकाश डाला कि जुड़वाँ बच्चों के साथ तनीषा की गर्भावस्था जोखिम से भरी थी, और अस्पताल ने उसे संभावित खतरों के बारे में पहले ही सूचित कर दिया था। साथ ही अस्पताल ने कहा है की सलाह के बाद भी तनीषा ने छह महीने तक कोई फॉलोअप नहीं किया, और सीधे 28 मार्च को गंभीर अवस्था में ही अस्पताल में लाइ गई। रिपोर्ट के अनुसार पेशंट की हालत देखकर डॉक्टर ने उसे बच्चे पैदा न करने की सलाह दी थी, जिसे नजरअंदाज कर तनीषा और उसके पति ने IVF के जरिए बच्च पैदा करने की कोशिश की। 

तनीषा के पति को एडवांस राशि भरते हुए हो सके उतने पैसे भरने को कहा गया था, फीर भी वे अपनी पत्नी को अस्पताल से ले गए ऐसा सनसनाटी दावा भी रिपोर्ट में किया गया है। परिस्थिती का अवलोकन करने के बाद, जो लोग  ‘दीनानाथ मंगेशकर अस्पताल को बंद करने, डॉक्टर को जेल भेजो’ आदि राय व्यक्त कर रहे हैं, वे कुछ इस प्रकार के लोग हैं: 

  • जो सच में गुस्से में है, जिनके साथ पहले किसी अस्पताल में ऐसा हो चूका है और इस मामले में अपनी संवेदना व्यक्त कर रहें है। 
  • फिर वो राजनीतिक समूह जो लता मंगेशकर द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को राखी बांधने पर नाराज था, यह वो लोग है जो बस एक मौके की तलाश में थे।
  • वहां के स्थानिक छुटभैय्ये नेता जो अस्पताल पर अपना रौब झाड़ना चाहते है। 
  • दीनानाथ के डॉक्टर ब्राम्हण समुदाय से है, इस जलन से अवसर को भुनाने की कोशश में लगा है। 

इन लोगों की आवाजों में मुद्दे की बात दब जाती है की आखिर सच कौन बोल रहा है। क्या तनीषा भिसे के परिवार वाले सच बोल रहें है या फिर अस्पताल समिती की रिपोर्ट सही है? अगर भिसे परिवार सच कह रहा है, तो उन्हें कोर्ट में मदद मांगनी होगी, और कोर्ट को भी मदद करनी होगी। वहीं इस बात का भी जवाब भिसे परिवार को देना होगा की अगर उन्हें अस्पताल ने बच्चे पैदा न करने की सलाह नहीं दी गई, तो उन्होंने ऐसा क्यों किया।

अस्पताल में आम आदमी के जाते ही उनकी जेबे खाली करने वाली एक व्यवस्था सभी लोग जानते है, यह कोई नै बात नहीं है। लेकिन अगर आपको सुव्यवस्था और कारगर उपचार चाहिए तो यह पैसे खर्च करने ही पड़ते ही है। अस्पताल का स्टाफ और अन्य व्यवस्था के कारण इलाज का ख र्च हिसाब के बाहर ले जाया जाता है। इसमें आम मध्यमवर्गीय पीस जाता है, इसीलिए प्रधानमंत्री मोदी को आयुष्यमान भारत जैसी सुविधा खोलनी पड़ती है, लेकीन ऐसी व्यवस्था में भी इलाज की क्वालिटी गिर जाती है। 

लेकीन इस केस में लोग जिस प्रकार से कूद पड़े है, अस्पताल और डॉक्टरों से दुश्मनी लेने में लगे है उनकी हालत बिन पेंदी के लोटे के समान है। उन्होंने इस बात की जांच करना भी सही नहीं समजा की क्या इससे पहले किसी और पेशंट के साथ दीनानाथ अस्पताल में ऐसा हुआ है ? क्या किसी ने अस्पताल का पक्ष जानने की कोशिश की? क्या किसी ने दोनों पक्षों को आमने सामने लाकर सच की पड़ताल की ? नहीं क्योंकी ऐसा करना कोर्ट का काम है, जो झूठा है उसे सजा देना भी कोर्ट के ही अधिकार कक्ष में आता है। महिला कार्यकर्ता के डॉक्टर के मुंह पर चिल्लर फेंक कर मारने से डॉक्टर की नाक फुट जाएगी, मृतक तनीषा वापस नहीं आएगी। 

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