अब सवाल उठता है कि क्या विपक्ष “इंडिया” नाम देकर देश के उद्देश्यों को पूरा कर रहा है। वर्त्तमान में तो यही कहा जा सकता है कि विपक्ष किसी भी तरह से देश के विकास या उसे समावेशी बनाने में कोई भूमिका नहीं निभा रहा है। विपक्ष जमीन पर कहीं दिखाई नहीं दे रहा है। वह देश समाज का मुद्दा उठाने के बजाय केवल राजनीति करता नजर आ रहा है। ये बातें इसलिए कहीं जा रही हैं कि विपक्ष व्यक्ति विशेष को लेकर राजनीति करता नजर आया है। इसके एक दो नहीं बल्कि कई उदाहरण दिए जा सकते हैं। हम पुराने किसी भी घटना का जिक्र नहीं करना चाहते हैं। वर्तमान में दो से तीन मुद्दों पर बात करेंगे। पहला बंगाल में महिलाओं के साथ बदसलूकी,राजस्थान में महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न पर कांग्रेस चुप है और इंडिया जिसे हाल ही में विपक्ष ने नाम दिया।
वेस्ट बंगाल में पंचायत चुनाव के दौरान जारी हिंसा के बाद अब दो महिलाओं को यहां निर्वस्त्र कर पीटा जाना दुर्भाग्यपूर्ण है। क्योंकि यही कांग्रेस जब मणिपुर में दो महिलाओं के साथ हैवानियत की जाती है तो गला फाड़ फाड़कर कहती है कि देश में लोकतंत्र नहीं है। मणिपुर के मुख्यमंत्री बीरेन सिंह का इस्तीफा मांगती है। लेकिन जब राजस्थान में, किसी महिला के साथ दुर्व्यवहार होता है तो कांग्रेस के नेता राहुल गांधी, सोनिया गांधी , प्रियंका गांधी कुछ नहीं बोलते है। जबकि राजस्थान कांग्रेस शासित राज्य है। उनके मुंह से कोई शब्द नहीं निकलता है। इसी तरह जब बिहार में एक पुरुष और एक नाबालिग लड़की को सरेआम निर्वस्त्र कर मारपीट की जाती है तब भी कांग्रेस के नेता कुछनहीं बोलते है। क्या यही विपक्ष “इंडिया” है, मौका परस्त, अवसरवादी।
कांग्रेस ने राजस्थान के मुख्यमंत्री को हटाने के बजाय उस मंत्री जो हटा दिया, जो राज्य में महिलाओं के खिलाफ हो रहे अत्याचार पर बोलता है। राजस्थान में राजेंद्र गुढ़ा को इसलिए बर्खास्त कर दिया गया, कि वे राज्य में महिलाओं के ऊपर हो रहे अत्याचार पर राज्य सरकार को आइना दिखाया। उनका कहना था कि हमें मणिपुर के बजाय राज्य में महिलाओं के ऊपर हो रहे अत्याचार पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, क्योंकि हम राज्य में महिलाओं को सुरक्षा देने में असफल रहे हैं। इसी तरह, कांग्रेस ने बंगाल के मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का इस्तीफा नहीं मांग। न ही बिहार के मुख्यमंत्री का इस्तीफा मांगा। यह विपक्ष कादोगलापन है. जो जनता को छलने के लिए “इंडिया” नाम रखा है।
कांग्रेस की यही दोगली नीति है। ऐसे कई मौके आये हैं,जब राजस्थान में महिलाओं के साथ बदसलूकी हुई, लेकिन कांग्रेस के शीर्ष नेता एक भी शब्द नहीं बोलते। मणिपुर की समस्या, कोई आम समस्या नहीं है, जिसे आसानी से सुलझा लिया जाए. मणिपुर में हिंसा के समय खुद गृहमंत्री अमित शाह कई दिन वहां रहे और वहां के लोगों से अपील किये कि किसी प्रकार की हिंसा न करें। इतना ही नहीं, जब सेना के जवान उपद्रवियों को पकड़ते हैं तो महिलाओं की भीड़ ने उन्हें छोड़ने के लिए मजबूर कर देती है। कहा जा सकता है कि मणिपुर की समस्या आज की नहीं है बल्कि वर्षों की है, जिसे कभी कांग्रेस ने सुलझाने की कोशिश नहीं की। आज कांग्रेस घड़ियालू आंसू बहा रही है।
बेंगलुरु में विपक्ष की बैठक में ममता बनर्जी ने कहा था, इंडिया जीतेगा, बीजेपी हारेगी, जबकि राहुल गाँधी ने कहा था कि यह लड़ाई बीजेपी और विचारघारा के खिलाफ है। यह लड़ाई इंडिया और नरेंद्र मोदी के बीच की है। कहा जा सकता है कि विपक्ष बीजेपी के खिलाफ नहीं लड़ रहा है बल्कि पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ लड़ रहा है। तो विपक्ष का इंडिया अपने हित के लिए लड़ रहा है। अपने स्वार्थ के लिए लड़ रहा है। देश के विकास के लिए नहीं लड़ रहा है, देश के लोगों के लिए नहीं लड़ रहा है, केवल सत्ता के लिए लड़ा है।
तो सवाल यही है कि क्या कांग्रेस इसलिए बंगाल और बिहार में महिलाओं के साथ हुई बदसलूकी पर नहीं बोलती है कि ममता के साथ लोकसभा चुनाव लड़ने वाली। कांग्रेस अपने मुख्यमंत्रियों को राज्य की कानून व्यवस्था बनाने के लिए निर्देश क्यों नहीं देती। कांग्रेस राजेंद्र गुढ़ा के बयान के बाद राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को क्यों नहीं हटाया। कहा जा सकता है कि कांग्रेस केवल किसी मुद्दे का राजनीतिकारण है। राहुल गांधी ने मणिपुर का दौरा किया, लेकिन क्या हासिल किये। क्या उन्हें मणिपुर की मूल समस्या से वाकिफ हैं। ये वे सवाल हैं जिससे कांग्रेस हमेशा बचती रही है। कांग्रेस के नेता राहुल गांधी से अगर उनके मुताबिक़ प्रश्न नहीं पूछा जाए तो कहेंगे ये बीजेपी का एजेंट है।
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