ममता ने कांग्रेस से इसलिए बनाई दूरी, विपक्ष का ये है प्लान, चेहरा पर रार?

कांग्रेस द्वारा ममता बनर्जी की वरिष्ठता को नकार दिया गया है ,इसलिए वे कांग्रेस से नाराज हैं। वे लगातार बंगाल की मुख्यमंत्री हैं। बावजूद इसके उनको इग्नोर किया जा रहा है। ममता के सामने केजरीवाल रोड़ा है।

ममता ने कांग्रेस से इसलिए बनाई दूरी, विपक्ष का ये है प्लान, चेहरा पर रार?

राहुल गांधी की सदस्यता रद्द होने के बाद विपक्ष लामबंद दिखाई दे रहा है। लेकिन ऐसा जमीनी स्तर पर नहीं है। अभी 2024 के लोकसभा चुनाव में समय है। पर कहा जा रहा है कि एक साल कोई ज्यादा समय नहीं है। यही वजह है कि विपक्ष तैयारियों में कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहता है। वहीं, विपक्ष अपनी रणनीति में कामयाब नहीं होता है तो नरेंद्र मोदी तीसरे टर्म में भी पीएम की सत्ता संभाल सकते हैं। हालांकि, यह कहना सही होगा कि 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी अभी विपक्ष पर भारी है। क्योंकि विपक्ष अभी किसी भी निर्णय पर नहीं पहुंचा है।

ऐसे में कई सवाल अनुत्तर है। जैसे कि विपक्ष का पीएम चेहरा कौन होगा? विपक्ष पीएम मोदी के खिलाफ क्या रणनीति बना रहा है ? क्या जो विपक्ष की रणनीति बन रही है वह बीजेपी के समक्ष टिक पाएगी ? तमाम ऐसे सवाल हैं जो लोगों के जेहन में खलबली मचाये हुए हैं। तो दोस्तों आज हम इन्हीं सवालों के उत्तर ढूढ़ने की कोशिश करेंगे।

तो पहला सवाल यह है कि विपक्ष की ओर से पीएम का चेहरा कौन होगा? याद रहे हम विपक्ष की बात कर रहे है न कि कांग्रेस की। कांग्रेस में अभी क्या स्थिति है यह भली भांति सभी लोग जानते हैं। हां, यह कहा जा रहा है कि जल्द कांग्रेस राहुल गांधी की सदस्यता रद्द मामले को लेकर सूरत की सेशन कोर्ट का दरवाजा खटखटाने वाली है। हालांकि यह कब होगा? यह अभी तय नहीं किया गया है।

हां इतना, कहा जा रहा है कि कांग्रेस के वकील इस मामले में अपनी तैयारी कर लिए हैं। बहरहाल, यह रही कांग्रेस और राहुल गांधी की बात। इनके बारे में जिक्र करना इसलिए जरुरी था कि, विपक्ष कांग्रेस-कांग्रेस खेल रहा है, तो कांग्रेस की बात किये बिना आगे नहीं बड़ा जा सकता है।

तो दोस्तों, जानकारों की माने तो कहा जा रहा है कि विपक्ष के लिए ममता बनर्जी का चेहरा सबसे सटीक और टिकाऊ है। सटीक और टिकाऊ कहने का मतलब है कि ममता बनर्जी की इमेज मोदी विरोधी की रही है। कई मौकों पर उन्होंने पीएम मोदी के सामने कडा रुख अख्तियार कर चुकी हैं, जिसकी खूब चर्चा भी हो चुकी है। जिसमें बंगाल के पूर्व मुख्य सचिव अलपन बंदोपाध्याय का मामला दो साल पहले खूब सुर्खियां बटोरा था।

दो साल पहले अलपन बंगाल में आये तूफ़ान के बाद पीएम मोदी की बैठक में शामिल नहीं हुए थे। उसके बाद केंद्र सरकार ने तलब किया था। बाद में इस मामले पर जमकर उठापटक देखने को मिला था। जब उन्हें दिल्ली बुलाया गया था तो उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था और इसके बाद अलपन को ममता बनर्जी ने अपना मुख्य सलाहकार बना लिया था।

इतना ही नहीं कोरोना काल के दूसरे चरण में भी कई बार दिल्ली आकर ममता बनर्जी ने पीएम मोदी के खिलाफ बयानबाजी की थी। उस समय उनकी आक्रमता को पीएम उम्मीदवारी से भी जोड़ कर देखा गया था। हालांकि, अब समय में बड़ा बदलाव आ गया है। कुछ समय पहले ममता बनर्जी ने यह ऐलान किया था कि आगामी लोकसभा का चुनाव वे अकेले लड़ेंगी। लेकिन,राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता जाने के बाद से पीएम उम्मीदवार की रेस में सबसे आगे चल रहे राहुल गांधी अभी तक तो किनारे लग गए हैं। बशर्तें, अभी ऊपरी अदालतों का आदेश आना बाकी हैं। इसके बाद विपक्ष की रणनीति क्या होगी यह देखना होगा।

बहरहाल, भविष्य के बजाय वर्तमान में बातें करते है,तो कहा जा रहा है कि कांग्रेस से ममता बनर्जी इसलिए नाराज हैं कि उनकी अनदेखी की जा रही है। यही कारण है कि ममता बनर्जी ने लोकसभा चुनाव अकेले दम पर लड़ने का मन बनाया है। जानकारों के हवाले से कहा गया है कि ममता बनर्जी को राजनीति में सबसे ज्यादा अनुभव है। वे अस्सी के दशक से केंद्र की राजनीति में सक्रिय हैं। इतना ही नहीं, वे लगातार बंगाल की तीसरी बार मुख्यमंत्री हैं। बावजूद इसके उनको इग्नोर किया जा रहा है। साथ ही, मोदी विरोधी नेताओं में उनका नाम सबसे पहले आता है। लेकिन, कांग्रेस उनको तवज्जो नहीं दे रहा है।

कहा जा रहा है कि ममता बनर्जी राहुल के बजाय, सोनिया गांधी से किसी मुद्दे पर बात करना पसंद करती है। इस बारे में कहा जा रहा है कि वर्तमान में राहुल गांधी और कांग्रेस सीताराम येचुरी से सलाह ले रही है। जिससे ममता का छत्तीस का आंकड़ा है। यह भी उनके नाराजगी कारण है। वहीं, बताया जा रहा है कि राहुल कांड में भले टीएमसी कांग्रेस के साथ दिखाई दे रही है, लेकिन वह लोकसभा चुनाव में अकेले ही चुनाव लड़ेगी। दूसरी ओर, ममता बनर्जी के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का नाम सामने आ रहा है।

कहा जा रहा है कि वर्तमान में जिस तरह से केजरीवाल पीएम मोदी पर हमलावर है। वे भी चाहते हैं कि विपक्ष उन्हें पीएम का चेहरा बनाये है। बताया जा रहा है कि जिस तरह से ममता बनर्जी अपनी वरिष्ठता के आधार पर विपक्ष का चेहरा बनने की आश लगाई हैं। उसी तरह अपनी पहली ही पारी में पीएम बनने के लिए बनारस से चुनाव लड़ने वाले केजरीवाल की महत्वकाक्षां कम नहीं है। केजरीवाल भी खुद को यूनिक राजनेता के तौर पर प्रमोट कर रहे हैं।

हालांकि, केजरीवाल के बारे में यह भी कहा जा रहा है कि सीबीआई और ईडी ने जिस तरह से उनकी पार्टी और उनके नेताओं पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया है। उससे केजरीवाल की छवि को खासा नुकसान हुआ है। धन शोधन के मामले में उनके नेता जेल के सलाखों में हैं। शराब नीति घोटाले में तो उनके सबसे विश्वासपात्र मनीष सिसोदिया तिहाड़ जेल की हवा खा रहे हैं। यही सबसे बड़ी वजह है जो केजरीवाल को पीएम मोदी पर हमला करने का मौक़ा दिया है।

जानकारों के अनुसार, कहा जा रहा है कि केजरीवाल का मानना है कि देर सवेर उनके पास भी इन घोटालों की जांच की आंच पहुंच सकती है, नहीं तो केजरीवाल पीएम मोदी पर सीधा हमला करने से बच रहे थे, लेकिन अब उन्होंने अपनी रणनीति में बदलाव किया है। माना जा रहा है कि ममता बनर्जी और केजरीवाल में विपक्ष के चेहरे को लेकर जंग हो सकती है। हालांकि, अभी किसी नेता को विपक्ष का चेहरा नहीं बनाने की रणनीति सामने आई है।

बताया जा रहा है कि अभी केजरीवाल चाहते हैं कि हर राजनीति दल अपने अपने राज्यों में अपने को मजबूत करें। उसके बाद लोकसभा चुनाव के बाद सबकुछ तय किया जाएगा। कहने का मतलब है कि जैसे उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव मजबूत हैं तो उन्हें वहां मौक़ा मिलना चाहिए, अगर यहां कांग्रेस कमजोर है तो उसे यूपी का मैदान छोड़ देना चाहिए। इसी तरह केसीआर तेलंगाना में अपने दमखम दिखा सकते हैं। बिहार में नीतीश कुमार, तेजस्वी यादव, तमिलनाडु में एमके स्टालिन जैसे नेता अपने राज्यों में रणनीति बनाकर लोकसभा का चुनाव लड़ सकते हैं।

हालांकि, सीटों का सहयोगी दलों के साथ बंटवारा किया जा सकता है। बताया जा रहा है कि विपक्ष लगभग 400 सीटों पर चुनाव लड़ेगा और सभी दल हर राज्य में जाएंगे। इसके साथ ही दीवाली के आसपास विपक्ष एक राजनीति मंच की घोषणा कर सकता है। बावजूद इसके विपक्ष के सामने कई चुनौतियां भी है। जैसे दिल्ली में केजरीवाल के पास नेताओं की कमी है। बिहार, बंगाल सहित कई राज्यों के नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप है या केस दर्ज है जो विपक्ष के लिए एक चुनौती है

रही बात बीजेपी के सामने टिकने की तो, विपक्ष के सामने इन चुनौतियों के साथ भी कई मुद्दे हैं जिस पर आम सहमति बनाना मुश्किल ही नहीं नामुकिन है। दूसरा यह कि पीएम मोदी की अपनी लोकप्रियता है और बीजेपी की चुनावी रणनीति सबसे अलग होती है। जानकारों का कहना है कि वर्तमान में बीजेपी की किस मुद्दे पर क्या रणनीति होगी, ऐसी अटकलों पर अब ज्यादा कहना बेईमानी है। क्योंकि बीजेपी उचित मौके पर ही अपना पत्ता खोलती है। तो साफ़ है कि 2024 का लोकसभा चुनाव विपक्ष के लिए एक जंग की तरह होगा।

 

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