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Sunday, December 7, 2025
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संघर्ष से शिखर तक रवि शंकर प्रसाद की प्रेरक गाथा!

पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टी (पीयूसीएल) के बिहार सचिव और पटना हाईकोर्ट अधिवक्ता संघ के सचिव रह चुके प्रसाद, अदालत से लेकर सड़क तक न्याय और सुधार की अलख जगाते रहे।

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बिहार की राजधानी पटना की धरती ने भारतीय राजनीति और न्यायपालिका को अनेक धुरंधर दिए हैं। इन्हीं में से एक नाम- रवि शंकर प्रसाद का है। जो वकील, राजनीतिज्ञ, वक्ता और सुधारक के रूप में अपनी पहचान गढ़ चुके हैं।

30 अगस्त 1954 को बिहार की राजधानी पटना में जन्मे रवि शंकर प्रसाद के जीवन की जड़ें संघर्ष और प्रतिबद्धता से सिंचित हैं। उनके पिता ठाकुर प्रसाद बिहार के जाने-माने वकील और जनसंघ के संस्थापक नेताओं में से थे। परिवार से मिली राजनीतिक-सामाजिक चेतना ने उन्हें प्रारंभ से ही नेतृत्व और न्याय की लड़ाई के लिए प्रेरित किया।

कॉलेज जीवन में ही रवि शंकर प्रसाद ने अपनी वाक पटुता और नेतृत्व क्षमता का लोहा मनवा लिया। वे जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में चले छात्र आंदोलन का हिस्सा बने और आपातकाल के दौरान जेल भी गए। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) से जुड़े रहकर उन्होंने संगठनात्मक राजनीति की गहराई समझी। इसी दौर ने उन्हें ‘नागरिक स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक अधिकारों’ के लिए समर्पित कार्यकर्ता बना दिया।

1980 से पटना हाईकोर्ट में वकालत शुरू करने वाले रवि शंकर प्रसाद ने शीघ्र ही संवैधानिक और आपराधिक मामलों के विशेषज्ञ के रूप में अपनी पहचान बनाई। वे पटना हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता बने और सुप्रीम कोर्ट तक कई महत्वपूर्ण मामलों में पैरवी की। भ्रष्टाचार विरोधी लड़ाई और नागरिक अधिकारों के लिए उन्होंने लगातार आवाज उठाई।

पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टी (पीयूसीएल) के बिहार सचिव और पटना हाईकोर्ट अधिवक्ता संघ के सचिव रह चुके प्रसाद, अदालत से लेकर सड़क तक न्याय और सुधार की अलख जगाते रहे।

उन्होंने राम जन्मभूमि-अयोध्या विवाद में हिंदू महासभा का प्रतिनिधित्व किया, लालकृष्ण आडवाणी को 1990 में रथ यात्रा के दौरान बिहार में गिरफ्तारी के समय अदालत में बचाव किया, और चारा घोटाले में लालू प्रसाद यादव के खिलाफ जनहित याचिका में मुख्य वकील रहे। उनके कानूनी योगदान ने भ्रष्टाचार और सामाजिक अन्याय के खिलाफ उनकी प्रतिबद्धता को रेखांकित किया।

भारतीय जनता पार्टी से जुड़कर उन्होंने विधिक प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय संयोजक, अनुशासनात्मक समिति के सदस्य और राष्ट्रीय प्रवक्ता जैसे अहम पदों पर कार्य किया। उनकी तेजतर्रार बहस और धारदार तर्कों ने उन्हें पार्टी का विश्वसनीय चेहरा बना दिया।

मंत्री रहते हुए उन्होंने आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ाया, कोयला और खान मंत्रालय में बदलाव की गति तेज की और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की स्थिति को मजबूती से रखा। 2002 में उन्हें दक्षिण अफ्रीका में एनएएम सम्मेलन का नेतृत्व करने और फिलिस्तीनी नेता यासिर अराफात से मुलाक़ात के लिए भारतीय प्रतिनिधिमंडल में शामिल किया गया – यह उनकी कूटनीतिक भूमिका का बड़ा प्रमाण था।

कानून, न्याय और आईटी मंत्री के रूप में रवि शंकर प्रसाद का सबसे बड़ा योगदान डिजिटल इंडिया कार्यक्रम को गति देना रहा। कॉमन सर्विस सेंटर स्कीम से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में बीपीओ यूनिट्स खोलने और इलेक्ट्रॉनिक मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने तक – उन्होंने डिजिटल क्रांति को आमजन से जोड़ा। 2018 में ब्रिटेन की एक एनजीओ ने उन्हें दुनिया के डिजिटल गवर्नमेंट के शीर्ष 20 नेताओं में शामिल किया।

सिर्फ अदालत और संसद ही नहीं, बल्कि अखबारों और मंचों पर भी उनके विचार गूंजते हैं।

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