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Mumbai Blast 1993: जब 12 बम धमाकों से दहल उठा था मुंबई

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30 साल पहले आज की ही तारीख यानी 12 मार्च 1993 को में मुंबई लगातार 12 जगह हुए 12 बम विस्फोटों ने पूरे देश को हिला कर रख दिया था। दिसंबर 1992 में बाबरी मस्जिद का विवादित ढांचा ढहा दिया गया था, जिसके बाद मुंबई में बड़े पैमाने पर दंगे हुए थे। इसके बाद दाऊद इब्राहिम, टाइगर मेनन, मोहम्मद दोसा और मुस्तफा दोसा ने ‘बाबरी मस्जिद ढहाए जाने का बदला लेने के लिए’ मुंबई में ब्लास्ट कराने का प्लान बनाया था।

 मुंबई में पहला धमाका स्टॉक एक्सचेंज की 28 मंज़िला इमारत के बेसमेंट में हुआ था। घड़ी में डेढ़ बजे थे। 50 लोग मारे गए थे। अभी यहां की चीख पुकार थमी नहीं थी कि आधे घंटे बाद एक कार धमाका और हुआ। जगह थी नरसी नाथ स्ट्रीट। अगले दो घंटे से कम वक़्त में ही सिलसिलेवार 12 धमाके हो चुके थे। इन धमाकों में 257 लोग मारे गए थे जबकि 713 लोग घायल हुए थे। यह दुनिया भर में सीरियल बम विस्फोटों का पहला मामला था। करीब 27 करोड़ रुपए की संपत्ति को नुकसान पहुंचा था।
धमाकों के बाद शरद पवार ने बयान दिया कि 12 नहीं 13 ब्लास्ट हुए हैं, एक मुस्लिम इलाके में भी हुआ है। एनसीपी के सुप्रीमों ने उस दौरान खुला झूठ बोला। उस समय महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे पवार ने समुदाय विशेष को पीड़ित दिखाने के लिए बम ब्लास्ट्स की संख्या बढ़ा दी थी। दूसरे शब्दों में कहें तो उन्होंने एक अतिरिक्त बम ब्लास्ट की ‘खोज’ कर ली थी, जो असल में हुआ ही नहीं था। महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री शरद पवार ने हमलों के तुरंत बाद दूरदर्शन स्टूडियो में जाकर बोला था और घोषणा की थी कि कुल 13 धमाके हुए हैं। उन्होंने न जाने कहाँ से एक अतिरिक्त विस्फोट की ‘खोज’ कर ली थी। पवार ने कहा था कि मस्जिद बंदर में 13वाँ विस्फोट हुआ था। चूँकि इस हमले में हिन्दू बहुल क्षेत्रों को निशाना बनाया गया था, ऐसे में पवार ने मस्जिद में विस्फोट की कहानी गढ़ी ताकि समुदाय विशेष को भी पीड़ित की तरह पेश किया जा सके। वास्तव में, सभी 12 धमाके हिन्दू बहुल इलाक़े में किए गए थे।
अब बात करते है साजिश की-
दाऊद इब्राहिम ने अपने करीबी टाइगर मेमन, मोहम्मद दोसा और मुस्तफा दोसा के साथ मिल कर इस घातक हमले की पूरी साजिश को रचा था। इसके लिए मुस्तफा, टाइगर और छोटा शकील ने पाकिस्तान और भारत में अपने ट्रेनिंग कैंप बनाए जहाँ उन्होंने खुद को और अन्य हमलावरों को इस अटैक के लिए तैयार करना शुरू किया। यहाँ ये लोग भारी विस्फोटकों से लेकर बड़े-बड़े हथियारों के बारे में उन्हें जानकारी देते थे। धमाकों से पहले साजिशकर्ता 15 बार एक दूसरे से मिले थे और इसके लिए गल्फ से फंड आया था। भारतीय अधिकारियों के अनुसार, इस हमले में पाकिस्तान इंटेलिजेंस सर्विस और इंटर सर्विस इंटेलिजेंस भी सक्रिय रूप से शामिल थे।1993 सीरियल ब्लास्ट की जांच पुलिस के लिए किसी चुनौती से कम नहीं थी। तब आला अफसरों ने ऑपरेशन की कमान मुंबई के पूर्व पुलिस कमिशनर राकेश मारिया को सौंपी। उस वक्त वे डीसीपी ट्रैफिक का जिम्मा संभाल रहे थे। 150 से ज्यादा टीमों ने शहर के अगल-अलग इलाकों से सबूत जुटाए। 1993 ब्लास्ट केस की जांच के लिए तब के डीसीपी ट्रैफिक राकेश मारिया की देखरेख में पुलिस की 150 से ज्यादा टीमें बनाई गई थीं।  एक विस्फोटक से लदे एक लावारिस स्कूटर और मारूति वैन से पहला सुराग मिला था। जांच टीमों ने 17 राज्यों के करीब 80 शहरों में छापेमारी की। इस दौरान 180 संदिग्धों की गिरफ्तारी हुई। मारिया के मुताबिक, ब्लास्ट से पहले कस्टम और इंटेलिजेंस एजेंसियों को भनक थी कि हथियारों का बड़ा जखीरा भारत आने वाला है। दूसरी ओर, बाबरी ढांचा गिराए जाने के बाद हुए दंगों के आरोपी गुल मोहम्मद खान ने पुलिस हिरासत में ब्लास्ट का प्लान बनाए जाने का दावा किया था। उसने कहा था कि वह दुबई के रास्ते पाकिस्तान में हथियार चलाने और बम बनाने की ट्रेनिंग लेकर आया है। लेकिन किसी ने उस पर भरोसा नहीं किया। अपने करीबी खान के पकड़े जाने पर टाइगर ने तय वक्त से पहले ब्लास्ट की साजिश को अंजाम दिया। पहले इसके लिए अप्रैल में कोई तारीख तय की गई थी।साल 1993 नवंबर की 4 तारीख। 189 लोगों के खिलाफ 10,000 पन्ने की प्राथमिक चार्जशीट दायर की गई थी। 19 नवंबर 1993 में केस सीबीआई को मिला। अप्रैल 1995 को मुंबई की टाडा अदालत में इस मामले की सुनवाई शुरू हुई। अगले दो महीनों में आरोपियों के खिलाफ आरोप तय किए गए। सितंबर 2006 में अदालत ने फैसला सुनाना शुरू किया। मामले में 123 अभियुक्त थे, जिनमें से 12 को निचली अदालत ने मौत की सजा सुनाई। 20 लोगों को उम्रकैद और 68 लोगों को उससे कम की सजा सुनाई गई। 23 लोग निर्दोष पाए गए। नवंबर 2006 में संजय दत्त को अवैध रूप से पिस्तौल और एके-56 राइफल रखने का दोषी पाया गया। संजय दत्त को गिरफ्तार किया गया था। मार्च 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने भी संजय दत्त को अवैध हथियार रखने का दोषी मानते हुए 5 साल की सजा सुनाई थी।
देश छोड़कर भागे मोस्टवांटेड सलेम को इंटरपोल लगातार तलाश कर रही थी। 18 सितंबर 2002 को अबू सलेम को उसकी प्रेमिका मोनिका बेदी के साथ इंटरपोल ने लिस्बन, पुर्तगाल में गिरफ्तार कर लिया था। अबू सलेम समेत 22 दोषियों को उम्रकैद की सजा हुई।
साल 2006 में मुंबई की अदालत ने जिन लोगों को धमाकों का दोषी पाया, उनमें एक ही परिवार के चार सदस्य भी शामिल थे। याकूब मेमन, यूसुफ मेमन, ईसा मेमन और रुबिना मेमन को साजिश और आंतकवाद को बढ़ावा देने का दोषी पाया गया। धमाकों के वांटेड टाइगर मेमन के भाई याकूब मेमन को इसी फैसले में सजा सुनाई गई थी। याकूब मेमन को 30 जुलाई 2015 को महाराष्ट्र के यरवडा जेल में फांसी दे दी गई। फिलहाल इस मामले में टाइगर मेमन और दाऊद इब्राहिम समेत 27 आरोपी फरार हैं।
बता दें कि इस बम ब्लास्ट में रिटायर्ड मेजर वसंत जाधव ने अपनी जान की परवाह किए बिना हजारों लोगों की जान बचाने में अहम भूमिका निभाई थी। मेजर वसंत जाधव ने 12 मार्च 1993 के दिन प्रशासन के एक अनुरोध पर, बिना अपनी जान की परवाह किए देशहित के काम मे लग गए। धमाके वाले दिन मेजर वसंत जाधव की ड्यूटी मुंबई एयरपोर्ट पर लगाई गई थी। प्रशासन की तरफ से मेजर को यह जिम्मेदारी दी गई कि वो बॉम्बे बम स्क्वायड टीम का नेतृत्व करें और एक्सप्लोसिव मटेरियल की पहचान करें। बम स्क्वायड टीम का नेतृत्व करते मेजर जाधव ने कई ऐसे हैंड ग्रेनेड ढूंढ़ निकाला, जिससे कि हजारों लोगो की जान बचाई गई।
हालांकि आज जब इन धमाकों के 30  साल पूरे हो रहे हैं, तब यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि ढाई दशक बाद मुंबई अंडरवर्ल्ड का क्या अब कोई वजूद रह गया है? इन ढाई दशक में मुंबई कितना बदला है? अंडरवर्ल्ड और आतंकवाद के खिलाफ पुलिस का खुफिया नेटवर्क कितना बदला है? पहले अंडरवर्ल्ड की कमाई बॉलिवुड से बहुत होती थी, क्योंकि बॉलिवुड फिल्मों के निर्माता या फाइनैंसर बिल्डर हुआ करते थे। अब कार्पोरेट्स ने फिल्में बनानी शुरू कर दी हैं। उनसे उगाही करना अंडरवर्ल्ड के लिए बहुत आसान नहीं रह गया। फिर, पुलिस का कम्यूनिकेशन सिस्टम बहुत अत्याधुनिक हो गया हैं। अंडरवर्ल्ड सरगना जब भी कुछ सोचते हैं, हमें उनकी साजिश बहुत जल्द पता चल जाती है, इसलिए दाऊद जैसे लोगों ने 1993 में भले ही मुंबई को हिला और रुला दिया, पर अब उनके लिए उस दहशत को दोहराना आसान नहीं।
1993 ब्लास्ट में जब अंडरवर्ल्ड का हाथ पाया गया, तो पुलिस ने भी कमर कस ली और अंडरवर्ल्ड के खिलाफ जबरदस्त मुहिम चालू की। फिर महाराष्ट्र में नया कानून मकोका बना। फिर एनकाउंटर का भी दौर आरंभ हुआ। बहुत जबरदस्त ऐक्शन हुआ और अंडरवर्ल्ड की कमर तोड़ दी गई।
वहीं अंडरवर्ल्ड गैंगस्टर से जो कई पुलिसवाले पहले मिले हुए थे, उस गठजोड़ में अब काफी कमी आ गई है। पहले कई अफसर अंडरवर्ल्ड सरगनाओं को अंदर की जानकारी दे देते थे। चूंकि ऐसे कई पुलिस वालों पर ऐक्शन हुआ है, इसलिए भी अंडरवर्ल्ड कमजोर हुआ है। क्यूंकी कोई भी कमजोर नेटवर्क कभी दहशत नहीं फैला सकता। 1993 जैसा काला इतिहास इसलिए दोहराया नहीं जा सकता। 30 साल बाद जब हम आज की मुंबई को देखते हैं, तो मानते हैं कि इस मुंबई पर अंडरवर्ल्ड की दहशत अब काफी कम हो गई है। हालांकि 8 मार्च 1993 का दिन मुंबई के अतीत का वो बदनुमा दाग है, जिसे शायद ही कभी मिटाया जा सके।
ये भी देखें 
https://hindi.newsdanka.com/international/murabba-is-the-name-of-a-city-in-saudi-arabia/53636/

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