केंद्र सरकार ने आगामी स्वतंत्रता दिवस के दिन जब भारत की आजादी के 75 साल पूरे होंगे तब तक हर जिले में 75 नए जलाशय तैयार करने का सुझाव दिया है। कुछ दिन पहले ही केंद्र सरकार के सचिवों के साथ चर्चा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जल संचयन को लेकर फिर से याद दिलाई कि इस काम को शुरू किया जाना चाहिए।
ऐसे में राज्यों में जिलाधिकारियों की जिम्मेदारी बनेगी और उनके लिए खुद का प्रदर्शन साबित करने का यह एक मौका भी होगा। जल संचयन को लेकर पिछले वर्षों में कई स्तर पर काम शुरू हुआ है। खुद मनरेगा के तहत भी पिछले डेढ़ दशक में बड़ी संख्या में तालाब निर्माण हुए लेकिन तकनीकी खामियों के कारण बड़ी संख्या में बेकार पड़े हैं।
आंकड़ों के अनुसार 2014 से 2020 के बीच केवल इस काम में लगभग चार लाख करोड़ रुपये खर्च हुए हैं, लेकिन नतीजे संतोषनजक नहीं हैं। लिहाजा प्रधानमंत्री ने अमृत वर्ष में फिर से इसे याद दिलाया है।
सूत्रों के अनुसार तालाबों के निर्माण में इसका भी ध्यान रखा जाना है कि वह तकनीकी रूप से सटीक हो। बताने की जरूरत नहीं कि जिला मजिस्ट्रेट के कामकाज की समीक्षा का यह भी एक उदाहरण बन सकता है।
इसे सीधे तौर पर मनरेगा से ही जोड़ने का निर्देश है ताकि ग्रामीण रोजगार को भी बल मिले। जल संचयन के लिहाज से यह अहम होगा क्योंकि एक झटके में लगभग साठ हजार जलाशय मानसून के वक्त में तैयार हो सकते हैं।अधिकारी के अनुसार अलग अलग जिलों में अलग अलग कार्यक्रम चलते रहते हैं लेकिन यह एक ऐसा अवसर है जब पूरे देश में इकट्ठा कोई कवायद होगी।
बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, ओडिशा के गंगा क्षेत्र में तो प्राकृतिक और भौतिक रूप से पर्याप्त जल है लेकिन महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल जैसे क्षेत्रों में प्राकृतिक रूप से तो जल मौजूद है, लेकिन भौतिक रूप से थोड़ी कमी है। सबसे ज्यादा परेशानी पंजाब, हरियाणा, राजस्थान जैसे इलाकों में है जहां इसकी भारी कमी है।
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