गाज़ा में बढ़ते संकट के बीच ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज़ ने सोमवार (11 अगस्त) को घोषणा की कि उनकी सरकार आगामी संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक में फिलिस्तीन को आधिकारिक रूप से एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता देगी। यह ऐलान ऐसे समय हुआ है जब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फिलिस्तीन को मान्यता देने की मांग तेज़ हो रही है।
अल्बनीज़ ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, “आज मैं पुष्टि कर सकता हूं कि सितंबर में होने वाले संयुक्त राष्ट्र महासभा के 80वें सत्र में ऑस्ट्रेलिया फिलिस्तीन राज्य को मान्यता देगा। ऑस्ट्रेलिया फिलिस्तीनी लोगों के अपने स्वतंत्र राष्ट्र के अधिकार को मान्यता देगा।” उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यह निर्णय फिलिस्तीनी प्राधिकरण से मिली प्रतिबद्धताओं पर आधारित है और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ मिलकर इसे वास्तविकता में बदला जाएगा।
यह कदम फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के उस बयान के कुछ ही हफ्तों बाद आया है जिसमें उन्होंने फ्रांस द्वारा भी फिलिस्तीन को मान्यता देने की योजना का संकेत दिया था।
अल्बनीज़ ने दो-राष्ट्र समाधान का समर्थन करते हुए कहा, “दो-राष्ट्र समाधान ही मध्य पूर्व में हिंसा के चक्र को तोड़ने और गाज़ा में संघर्ष, पीड़ा और भुखमरी को समाप्त करने की मानवता की सबसे बड़ी उम्मीद है।” उन्होंने आगे कहा, “जब हम फिलिस्तीन की लंबे समय से चली आ रही और वैध आकांक्षाओं को मान्यता देते हैं, तब हम इज़राइल के लोगों के स्वतंत्रता, सुरक्षा और शांति से रहने के अधिकार को भी मज़बूत करते हैं, क्योंकि जब तक फिलिस्तीन की राज्य व्यवस्था स्थायी नहीं होगी, तब तक शांति अस्थायी ही रहेगी।”
अल्बनीज़ के अनुसार, इस मान्यता में हमास की किसी भी तरह की भूमिका स्वीकार्य नहीं होगी, गाज़ा का निरस्त्रीकरण और वहां चुनाव कराना अनिवार्य होगा। यह भी उल्लेखनीय है कि फिलहाल संयुक्त राष्ट्र के 193 सदस्य देशों में से 147 से अधिक देश फिलिस्तीन को मान्यता दे चुके हैं, जो दुनिया के लगभग 75% देशों और अधिकांश जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करते हैं।
इस घोषणा से पहले ऑस्ट्रेलिया में अल्बनीज़ सरकार के भीतर और बाहर, गाज़ा में जारी पीड़ा और भुखमरी को लेकर फिलिस्तीन को मान्यता देने की मांग तेज़ हो गई थी। साथ ही, ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने इज़राइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के गाज़ा में कब्ज़ा बढ़ाने के प्रस्ताव की भी कड़ी आलोचना की थी। यह ऐतिहासिक कदम अंतरराष्ट्रीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव के रूप में देखा जा रहा है, जो मध्य पूर्व में स्थायी शांति की दिशा में एक अहम मोड़ साबित हो सकता है।
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