गुजरात दंगा मामले में फर्जी हलफनामा दाखिल कर अदालती कार्यवाही को प्रभावित करने के आरोप में 1 जुलाई को हाई कोर्ट ने तीस्ता सीतलवाड़ की जमानत रद्द कर उनसे सरेंडर के लिए कहा था। वहीं 19 जुलाई को तीस्ता सीतलवाड़ को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। शीर्ष अदालत ने उन्हें जमानत दे दी है। और गुजरात हाईकोर्ट का फैसला रद्द कर दिया गया।
हालांकि तीस्ता का पासपोर्ट निचली अदालत के पास ही सरेंडर रहेगा, तीस्ता गवाहों को प्रभावित नहीं करेंगी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ज्यादातर सबूत दस्तावेजी हैं, चार्जशीट दाखिल हो चुकी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि तीस्ता से हिरासत में पूछताछ की कोई जरूरत नहीं है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, अगर तीस्ता जमानत शर्तों का उल्लंघन करती हैं तो सरकार अर्जी दाखिल कर सकती है।
वहीं इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट पर सवाल उठाए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, हाईकोर्ट का फैसला विकृत है। हाईकोर्ट ने जिस तरह का फैसला दिया है उससे आरोपियों को जमानत मिलना मुश्किल है। हाईकोर्ट का यह निष्कर्ष गलत कि तीस्ता ने FIR रद्द करने की अर्जी नहीं दी। जमानत के लिए यह देखना होगा कि क्या प्रथम दृष्टया मामला बनता है। फरार होने का खतरा है और व्यक्ति सबूतों से छेड़छाड़ कर सकता है। हाईकोर्ट ने जमानत पर इन मुद्दों पर गौर क्यों नहीं किया?
सुनवाई के दौरान तीस्ता की ओर से कपिल सिब्बल ने पूरा मामला समझाया। उन्होंने कहा कि फर्जी तौर पर सबूत गढ़ कर एफआइआर दर्ज की गई। अभी तक कोई जांच आगे नहीं बढ़ी। छह दिन पुलिस रिमांड पर लेने के बावजूद सिर्फ एक दिन पूछताछ की गई। गुजरात हाईकोर्ट ने अंतरिम जमानत की अर्जी खारिज कर दी, क्योंकि तब चार्जशीट दाखिल नहीं हुई थी। हालांकि चार्जशीट भी दाखिल हो गई, लेकिन तीस्ता को जमानत नहीं मिली। अब सुप्रीम कोर्ट से अंतरिम जमानत मिली है।
सिब्बल ने सुनवाई के दौरान कहा कि देश छोड़कर भागने या गवाहों को प्रभावित करने का कोई जोखिम नहीं है। तीस्ता को क्यों गिरफ्तार किया गया? तीस्ता को अलग क्यों रखा गया है? उनके अनुसार हलफनामा मनगढ़ंत है। यह मामला 2002 में हुआ था। तब से तीस्ता ने किसी भी शर्त का उल्लंघन नहीं किया है और अंतरिम जमानत पर हैं। उन्होंने आगे कहा कि तीस्ता को जमानत मिले दस महीने हो गए, किसी को प्रभावित करने की कोशिश नहीं की, फिर किस आधार पर जमानत खारिज कर दी गई?
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