अगले कुछ दिनों में भारत का बजट पेश किया जाएगा। यह बजट ऐसे समय में पेश किया जा रहा है जब दुनिया आर्थिक मंदी के कगार पर है। संभावना है कि इसका देश की अर्थव्यवस्था पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। त्योहारी सीजन के बाद उपभोक्ता कंपनियों की स्थिति इस बात का संकेत है। उम्मीद है कि आम चुनाव से पहले इस बजट में राष्ट्र निर्माण पर फोकस रहेगा। इसके मुताबिक सरकार राजकोषीय घाटे को कम करने पर ध्यान देगी। क्योंकि अर्थव्यवस्था का आकार 5 ट्रिलियन डॉलर आंका गया है।
जानकारों के मुताबिक वित्त वर्ष 2023 की तुलना में वित्त वर्ष 2024 में जीडीपी ग्रोथ और महंगाई दोनों कम रहने की उम्मीद को देखते हुए रेवेन्यू की रफ्तार भी धीमी रहने की संभावना है। जिससे चीजें और भी मुश्किल हो जाएंगी। ऐसे में सरकार संपत्ति के मुद्रीकरण का विकल्प चुन सकती है। इसके मुताबिक उम्मीद है कि शेयर सरकारी कंपनियों के पास जाएंगे।
विशेषज्ञों का कहना है कि समस्या यह है कि वैश्विक तरलता की कमी घरेलू कंपनियों के लिए दुनिया भर से धन जुटाना चुनौतीपूर्ण बना देगी। इससे सरकार को सड़कों जैसी स्थिर राजस्व पैदा करने वाली संपत्ति हासिल करने पर ध्यान केंद्रित करने में मदद मिलेगी। हालांकि, पीएलआई योजनाओं की सफलता से उन्हें नए क्षेत्रों में भी प्रोत्साहन मिलने की संभावना है।
विशेषज्ञों ने कहा कि दुनिया भर में कड़ी निगरानी जारी रह सकती है। ऐसे में अगर भारत को ग्रोथ बरकरार रखनी है तो उसे बाहरी फंड की तलाश करनी होगी। भारत कुछ एफटीए पर हस्ताक्षर करने की प्रक्रिया में है। उन्होंने कराधान पर कहा कि मोटे तौर पर इसके स्थिर रहने की उम्मीद है। रेवेन्यू पर फोकस को देखते हुए घाटे की उम्मीद नहीं करनी चाहिए। क्योंकि पहले हमने गैर-सूचीबद्ध इक्विटी के लिए पूंजीगत लाभ कराधान पर ध्यान दिया था और बॉन्ड को इक्विटी के साथ जोड़ा जा रहा है। इस साल के बजट में यह ज्यादा रहने की संभावना है। कुल मिलाकर बजट 2023 से भारतीय कंपनियों को प्रोत्साहन देने की उम्मीद की जा सकती है। क्योंकि हम एक देश के रूप में अगले कुछ वर्षों में 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के लक्ष्य तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं।
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