छत्तीसगढ़ में पत्रकार मुकेश चंद्राकर की हत्या के बाद देशभर की मीडिया में हड़कंप मच गया|सड़क कार्यों में भ्रष्टाचार उजागर करने पर मुकेश चंद्राकर की हत्या कर दी गयी| 32 वर्षीय चंद्राकर का जीवन उतार-चढ़ाव से भरा रहा है। कुछ समय तक आदिवासी इलाके में शराब बेचने और दोपहिया वाहन मैकेनिक के रूप में काम करने वाले चंद्राकर ने पत्रकारिता की शुरुआत की। पत्रकारिता के माध्यम से जनता के मुद्दों को संबोधित करने वाले चंद्राकर की उनके ही रिश्तेदार ने हत्या कर दी।
मुकेश चंद्राकर का जन्म बीजापुर जिले के बासगुड़ा में हुआ था। 2008 के मध्य में बासगुड़ा गांव में सशस्त्र नागरिक बलों और माओवादियों के बीच हिंसा भड़क उठी। इस हिंसा के बाद मुकेश चंद्राकर के परिवार के लोग विस्थापित होकर बीजापुर के आश्रय केंद्र में आ गए|
कम उम्र में अपने पिता की छत्रछाया खोने के बाद मुकेश और उनके बड़े भाई युकेश का पालन-पोषण उनकी माँ ने किया। लेकिन 2013 में कैंसर के कारण उनकी भी मृत्यु हो गई। मुकेश के दोस्त ने बताया कि मुकेश ने अपनी मां को बचाने की हर तरह से कोशिश की,लेकिन इलाज के लिए वह सिर्फ 50 हजार रुपये ही जुटा सके| मित्र के रूप में, हमने वह सब किया जो हम मदद कर सकते थे।
उनके दोस्त ने यह भी बताया कि जब मुकेश चंद्राकर बच्चे थे तो उनके परिवार के पास दूध खरीदने तक के पैसे नहीं थे| मुकेश अपनी मां से बहुत प्यार करते थे|बीजापुर की स्थिति चिंताजनक होने पर मां ने मुकेश को पढ़ने के लिए दंतेवाड़ा भेज दिया।
अपने दैनिक खर्चों को पूरा करने के लिए, मुकेश चंद्राकर ने मोहची के रूप में शराब बेचने और दोपहिया वाहनों की मरम्मत करने का काम किया। बड़े भाई युकेश स्वतंत्र पत्रकारिता कर रहे थे। उन्हें देखकर मुकेश की भी पत्रकारिता में रुचि जगी। इसके बाद मुकेश की भी इच्छा पत्रकार बनने की थी शुरुआत में उन्होंने सहारा, बंसल, न्यूज18 और एनडीटीवी जैसे कुछ न्यूज चैनलों में काम किया। मुकेश नक्सल प्रभावित इलाकों में जाने और मुठभेड़ स्थल से रिपोर्टिंग करने में माहिर थे| वह अपनी ग्राउंड रिपोर्ट के लिए जाने जाते थे।
पत्रकारिता करते समय मुकेश अन्य पत्रकारों की भी मदद करते थे। जिन इलाकों में पहुंचना संभव नहीं होता था, वहां भी मुकेश चंद्राकर अपनी दोपहिया गाड़ी से पत्रकारों को वहां ले जाते थे। एक पत्रकार ने कहा कि जब भी मैं उनसे बात करता था तो वह खबरों पर चर्चा करते थे| आप किस समाचार पर काम कर रहे हैं? आप यहां कब आएंगे? ऐसे थे उनके सवाल. खबरों से परे जाकर वह हर किसी से निस्वार्थ दोस्ती करते थे। उन्होंने छत्तीसगढ़ के कई पत्रकारों को घटनास्थल तक पहुंचाने में मदद की|
दंतेवाड़ा के पत्रकार रंजन दास मुकेश चंद्राकर के करीबी दोस्त थे| वे 2016 से एक साथ काम कर रहे थे। दास ने कहा कि मुकेश बीजापुर में एक मिट्टी के घर में रहता था। इस घर का किराया 2,200 रुपये प्रति माह था| हम दोनों की आर्थिक स्थिति ख़राब थी| इसलिए उन्होंने मुझे पांच साल तक अपने घर में रहने दिया| बीजापुर में कई पत्रकार किराये के मकान में रहते हैं। वे आदिवासियों और खासकर जल, जमीन और जंगल के मुद्दे पर बेहद संवेदनशील थे।
उन्होंने ग्रामीणों के आंदोलनों, फर्जी मुठभेड़ों, निर्दोष नागरिकों की हत्याओं, बुनियादी ढांचे को नुकसान, कुपोषण और स्वास्थ्य प्रणाली की गिरावट पर रिपोर्ट करने का काम किया। इसलिए वे आदिवासियों के बीच बहुत लोकप्रिय थे। उन्हें अपना काम बहुत पसंद था|
मुकेश की रिपोर्टिंग के कारण उन पर अक्सर सरकार का दबाव रहता था। साथ ही सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के बाद माओवादियों की आलोचना करने पर माओवादी उन्हें धमकी भी देते थे| हमें लगातार डर था कि नक्सली मुकेश की जान को नुकसान पहुंचाएंगे,लेकिन उसने कभी नहीं सोचा था कि अपराधी उसे इस तरह खत्म कर देंगे|
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