दिल्ली के लाल किला मेट्रो स्टेशन के पास सोमवार शाम हुए बम विस्फोट ने राष्ट्रीय राजधानी की सुरक्षा व्यवस्था पर कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। यह धमाका ऐसे समय हुआ जब सुरक्षा एजेंसियों के पास पहले से ही संभावित आतंकी खतरे का अलर्ट मौजूद था। फिर भी, इतना बड़ा विस्फोट रुक नहीं सका| यह चूक अब जांच एजेंसियों के घेरे में है।
विस्फोट में 10 लोगों की मौत हो गई और 24 लोग घायल हुए। धमाके की तीव्रता इतनी ज्यादा थी कि कई गाड़ियां जलकर खाक हो गईं और पास की पुलिस चौकी की दीवार तक ढह गई। दिल्ली पुलिस ने इसे “आतंकी हमला” मानते हुए गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम यानी यूएपीए, विस्फोटक अधिनियम और भारतीय न्याय संहिता की कई धाराओं के तहत प्राथमिकी दर्ज की है।
पुलिस के अनुसार, विस्फोटक कार 10 नवंबर को दोपहर 3:19 बजे पार्किंग में आई थी और करीब तीन घंटे बाद 6:48 बजे वहां से निकली। सिर्फ चार मिनट बाद 6:52 बजे सुभाष मार्ग लाल बत्ती के पास उसमें जबरदस्त धमाका हुआ। जांच में यह पता चला है कि संदिग्ध व्यक्ति पार्किंग के दौरान गाड़ी में ही मौजूद था और संभवतः किसी के निर्देश या संकेत का इंतजार कर रहा था।
अब जांच एजेंसियां यह पता लगाने में जुटी हैं कि क्या लक्ष्य भीड़भाड़ वाला इलाका था या कोई खास व्यक्ति या संस्था। दिल्ली पुलिस की एफआईआर में लिखा गया है कि “यह एक सुनियोजित बम विस्फोट” था, जिसका उद्देश्य अधिकतम जनहानि पहुंचाना था।
इस घटना के बाद दिल्ली में हाई अलर्ट घोषित कर दिया गया है। हवाई अड्डों, रेलवे स्टेशनों और बस अड्डों पर सुरक्षा बढ़ा दी गई है, जबकि एनआईए और दिल्ली पुलिस की संयुक्त टीमें कई इलाकों में छापेमारी कर रही हैं।
जांच का दायरा अब आतंकी संगठनों, फंडिंग नेटवर्क और संदिग्ध मॉड्यूल तक फैलाया जा रहा है। पुलिस इस बात की भी जांच कर रही है कि क्या इस हमले में कोई बड़ा अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क या स्लीपर सेल शामिल था। फिलहाल सबसे बड़ा सवाल यही बना हुआ है| “अलर्ट के बावजूद इतनी बड़ी चूक आखिर कैसे हो गई?”
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