माधबी पूरी बुच पर एफआईआर के आदेश, क्या है सच्चाई ?

मुंबई कोर्ट ने पूर्व सेबी प्रमुख और अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया

माधबी पूरी बुच पर एफआईआर के आदेश, क्या है सच्चाई ?

FIR ordered against Madhabi Puri Buch, what is the truth?

मुंबई के एंटी करप्शन ब्यूरो (एसीबी) अदालत ने शेयर बाजार में कथित धोखाधड़ी को लेकर भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) की पूर्व अध्यक्ष माधबी पुरी बुच और पांच अन्य अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया है। यह मामला 1994 में बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) में एक कंपनी की लिस्टिंग से संबंधित विनियामक विफलताओं और वित्तीय कदाचार के आरोपों से जुड़ा है।

एक अज्ञात स्थानिक पत्रकार द्वारा दायर की गई शिकायत में आरोप लगाया गया है कि सेबी और बीएसई के अधिकारियों ने एक ऐसी कंपनी की लिस्टिंग की अनुमति देकर बाजार में हेरफेर और कॉर्पोरेट धोखाधड़ी की सुविधा प्रदान की, जो आवश्यक विनियामक मानदंडों को पूरा नहीं करती। अज्ञात याचिकाकर्ता के अनुसार, निरीक्षण में इस विफलता के कारण निवेशकों को काफी वित्तीय नुकसान हुआ और अनुचित शेयर बाजार प्रथाओं को बढ़ावा मिला।

नियामक ने चूक की जिसके कारण एक अयोग्य कंपनियों को बीएसई में सूचीबद्ध होने का मौका मिला। सेबी अधिकारी द्वारा धोखाधड़ी की गतिविधियों के खिलाफ कारवाई करने में विफल रहें। सेबी और बीएसई में संभावित भ्रष्टाचार, जिसके कारण शेयर कीमतों में हेरफेर हुआ। एसीबी अदालत ने शिकायत का संज्ञान लेते हुए एंटी करप्शन ब्यूरो को बुच और अन्य अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने और 30 दिनों के भीतर स्थिति रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया।

इस मामले में पूर्व सेबी अध्यक्ष माधबी पुरी बुच समेत पूर्णकालिक सदस्य अश्विनी भाटिया, अनंत नारायण जी. , कमलेश चंद्र वार्ष्णेय, बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज के चेयरमन प्रमोद अगरवाल और सीईओ सुंदररामन राममूर्ती पर नियामक मानकों को बनाए रखने में विफल रहने का आरोप है, जिससे अप्रत्यक्ष रूप से शेयर बाजार में धोखाधड़ी को बढ़ावा मिला।

अदालत के निर्देश के बाद, सेबी ने आदेश का कड़ा विरोध करते हुए इसे तुच्छ शिकायत कहा है। साथ ही इस निर्णय को कानूनी रूप से चुनौती देने की अपनी मंशा की घोषणा की। सेबी के प्रवक्ता ने कहा,  “सेबी या आरोप लगाए गए अधिकारियों को अपना पक्ष रखने का अवसर दिए बिना ही यह आदेश जारी किया गया। एफआईआर में नामित अधिकारी 1994 में कथित लिस्टिंग के समय अपने संबंधित पदों पर भी नहीं थे।” सेबी ने अज्ञात शिकायत को “तुच्छ और परेशान करने वाला” बताते हुए खारिज किया है, साथ ही आरोप लगाया कि यह ठोस सबूतों के बजाय निराधार दावों पर आधारित है।

बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) ने भी विवाद पर प्रतिक्रिया देते हुए धोखाधड़ी गतिविधियों में किसी भी तरह की संलिप्तता से इनकार किया। बीएसई के एक अधिकारी ने कहा “बीएसई सख्त नियामक ढांचे के भीतर काम करता है, और हम किसी भी कानूनी कार्यवाही में पूरा सहयोग करेंगे। हालांकि, लगाए गए आरोप निराधार हैं।”

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यह आरोप इस ऐसे समय पर किए जा रहें है जब विदेशी निवेशक भारत के वीटीटीय बाजारों से मुनाफ़ा उठाकर निकल रहे है। एफआईआई निवेशकों की ओर से लगातार बिक्री के कारण वित्तीय बाज़ार रोज़ नीचे ख़िसक रहा है। ऐसे में किसी अज्ञात रिपोर्टर द्वारा 1994 में लिस्ट की गई कंपनी से संबंधित अभी के अधिकारियों को दोषी ठहराने और भ्रष्टाचार निरोध के नाम पर सेबी और बीएसई के अधिकारियों पर कीचड़ उछालना राजकीय हमले का ही एक रूप है। याद दिलाएं की कुछ महीने पूर्व इसी प्रकार से तत्कालीन सेबी अध्यक्षा माधबी पूरी बुच पर हिंडेनबर्ग ने आरोप लगाए थे, जिन्हे माधबी बुच ने तुरंत ही खंडित किया था। प्रतित होता है की भारत का सुदृढ़ वित्तीय मार्केट भारत विरोधियों के आँखों में खल रहा है।

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