उतराखंड के हल्दानी में रेलवे की जमीन से अतिक्रमण पर हाईकोर्ट के आदेश के बाद से गफूर बस्ती में लोग प्रदर्शन पर उतार आएं है। कड़ाके की ठंड के बीच लोग कोर्ट के फैसले का विरोध कर रहे हैं। गफूर बस्ती में आंदोलन शुरू हो गया है। इस आंदोलन में बच्चे और महिलाएं रो-रोकर कह रहे हैं कि उन से जमीन खाली नहीं कराया जाए और उन के घरों पर बुलडोजर नहीं चलाए जाए। इस के विरोध में बड़ी संख्या में लोग सड़क पर प्रर्दशन कर रहे है। कई मकानों पर प्रशासन का बुलडोजर चल चुका है। रेलवे की इस 78 एकड़ जमीन पर 4400 सौ परिवार और करीब 50 हजार से अधिक अवैध लोगों के घरों को हटाने के लिए रेलवे प्रशासन और पुलिस टीम को जमीन खाली कराने के लिए कोर्ट ने आदेश दिया है। बता दें कि रेलवे लाइन से सटे 2.2 किलोमीटर में फैले इस इलाके में 20 मस्जिदें 9 मंदिर और स्कूल भी बने हुए है।
रेल की यात्रा करते समय आपने देखा होगा कि रेल की पटरियों के दोनों तरफ बस्ती होती है। बिल्कुल ऐसे ही सालों पहले हल्द्वानी में रेलवे की जमीन पर अवैध कब्जा करके हजारों लोग बस गए। इस जमीन पर एक दो परिवार नहीं बल्कि 50 हजार परिवार रहते है। जिसमें एक बड़ी संख्या में मुस्लिम आबादी है। वहीं अब इस पर राजनीति भी शुरू हो गई है। उतराखंड में बीजेपी की सरकार है। पक्ष लगातार प्रदेश सरकार पर हमला कर रहा है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की भी एंट्री हो चुकी है। गुरुवार, 4 जनवरी को इस मामले की सुनवाई देश की सर्वोच्च अदालत में होगी। आम बात है कि लोग आस-पास की जमीन पर कब्जा कर लेते हैं। लेकिन अगर भविष्य में कोई सरकारी प्रोजक्ट आता है तो उन लोगों को जमीन खाली करनी होती है। हालांकि उत्तराखंड सरकार चाहे तो गफूर बस्ती के लोगों को कहीं दूसरी जगहों पर आवास योजना के तहत जमीन अलॉट कर सकते हैं।
बता दें कि रेलवे की खाली पड़ी जमीन भविष्य में विस्तार के लिए रखी जाती है। लेकिन अक्सर ऐसा होता है कि, लोग अवैध कब्जा कर लेते हैं और जब अवैध कब्जा को हटाया जाता है। तो इसी तरह से प्रदर्शन होता है जो गलत है। क्योंकि सरकारी जमीन पर कब्जा कोई नहीं कर सकता है। इसलिए राजनीति करने वाला ये कहकर नहीं बच सकता है कि, ये एक वर्ग विशेष के साथ जोर जबरदस्ती हो रहा है। इसलिए इसमें कोई संदेह की गुंजाइश नहीं कि अतिक्रमण हटाने मे किसी वर्ग विशेष के साथ भेदभाव किया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बैंच आज सुबह साढ़े 10 बजे इस मामले में सुनवाई करेगी। इस मामले में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के नेताओं के सात साथ कुल 6 याचिकाओं पर सुनवाई की जानी है।
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