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Thursday, December 11, 2025
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IMF छोड़ेंगी गीता गोपीनाथ-अगस्त के अंत में देंगी इस्तीफा!

हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में फिर शुरू करेंगी शैक्षणिक करियर

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अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) में प्रथम उप प्रबंध निदेशक के पद पर कार्यरत भारतीय-अमेरिकी अर्थशास्त्री गीता गोपीनाथ ने संस्थान से इस्तीफा देने की घोषणा की है। वे अगस्त 2025 के अंत तक अपने पद से हटेंगी और सितंबर से हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र की प्रोफेसर के रूप में अपनी शैक्षणिक पारी दोबारा शुरू करेंगी। गोपीनाथ ने सोमवार (21 जुलाई)को सोशल मीडिया मंच X पर कहा, “IMF में सात अद्भुत वर्षों के बाद मैंने अपने शैक्षणिक मूल की ओर लौटने का फैसला किया है।”

वह हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में ग्रेगरी एंड अनिया कॉफी प्रोफेसर ऑफ इकोनॉमिक्स के एक नवसृजित पद को संभालेंगी। इससे पहले वह 2005 से 2022 तक हार्वर्ड में John Zwaanstra Professor of International Studies and Economics के रूप में कार्यरत थीं। गीता गोपीनाथ ने 2019 में IMF के मुख्य अर्थशास्त्री के रूप में जॉइन किया था और 2022 में उन्हें First Deputy Managing Director बनाया गया था। वह IMF के इस उच्च पद को संभालने वाली पहली महिला भी हैं।

उन्होंने अपने वक्तव्य में लिखा, “यह एक जीवन में एक बार मिलने वाला अवसर था। वैश्विक चुनौतियों के दौर में IMF की सेवा कर पाना मेरे लिए गर्व की बात रही। अब मैं फिर से शिक्षा और शोध की ओर लौट रही हूं, जहां मैं अंतरराष्ट्रीय वित्त और मैक्रोइकोनॉमिक्स के क्षेत्र में शोध को आगे बढ़ाऊंगी और नई पीढ़ी के अर्थशास्त्रियों का मार्गदर्शन करूंगी।”

IMF की प्रबंध निदेशक क्रिस्टालिना जॉर्जीवा ने गीता गोपीनाथ की प्रशंसा करते हुए कहा, “वह एक उत्कृष्ट सहकर्मी रही हैं — असाधारण बौद्धिक नेतृत्व वाली, IMF के मिशन के प्रति पूर्ण समर्पित, और एक संवेदनशील व कुशल प्रबंधक, जिन्होंने हमारे स्टाफ को प्रेरित किया।”

गोपीनाथ की अर्थशास्त्र में पहचान केवल प्रशासनिक भूमिका तक सीमित नहीं रही है। इससे पहले उन्होंने 2001 से 2005 तक यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो के बूथ स्कूल ऑफ बिज़नेस में पढ़ाया था। अब एक बार फिर वह अपने शिक्षण और शोध कार्य में लौट रही हैं — एक ऐसा क्षेत्र जहां से उनकी प्रतिष्ठा की शुरुआत हुई थी। उनकी वापसी न केवल हार्वर्ड के लिए बल्कि वैश्विक अकादमिक समुदाय के लिए भी महत्वपूर्ण मानी जा रही है। उनके अनुभव और विशेषज्ञता से अंतरराष्ट्रीय वित्तीय नीतियों पर नई दृष्टि विकसित होने की उम्मीद है।

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