भारत और न्यूज़ीलैंड के बीच 22 दिसंबर को मुक्त व्यापार समझौते (FTA) की वार्ताएं पूरी होने के बाद अब न्यूज़ीलैंड के 15 वर्षों में 20 अरब डॉलर के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) के वादे की निगरानी के लिए भारत एक ओवरसाइट कमेटी गठित करेगा। यह समिति यह आकलन करेगी कि तय समय-सीमा में निवेश लक्ष्य पूरे न होने की स्थिति में न्यूज़ीलैंड को अतिरिक्त समय (ग्रेस पीरियड) दिया जाए या दंडात्मक कार्रवाई की जाए।
FTA के तहत शामिल ‘री-बैलेंसिंग मैकेनिज़्म’ भारत को यह अधिकार देता है कि यदि अपेक्षित निवेश नहीं आता, तो वह समझौते के तहत मिलने वाले कुछ लाभों को निलंबित कर सके। यह प्रावधान भारत–यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ (EFTA) समझौते की तर्ज पर है। हालांकि, भारत–EFTA समझौते में जहां निवेश लक्ष्य पूरे न होने पर यूरोपीय देशों को तीन वर्ष का स्पष्ट ग्रेस पीरियड दिया गया है, वहीं भारत–न्यूज़ीलैंड FTA में इस ग्रेस पीरियड की समय-सीमा अभी तय नहीं की गई है।
एक सरकारी अधिकारी ने कहा, “यदि 15 वर्षों की समय-सीमा में FDI प्रतिबद्धताएं पूरी नहीं होती हैं, तो समिति के पास उचित दंड तय करने या किए गए निवेश की मात्रा अथवा अन्य महत्वपूर्ण कारकों के आधार पर ग्रेस पीरियड देने का अधिकार होगा। ये निर्णय वाणिज्य विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी की अध्यक्षता वाली समिति द्वारा लिए जाएंगे।”
सूत्रों के अनुसार, कानूनी जांच (लीगल स्क्रबिंग) पूरी होने के बाद अगले दो–तीन महीनों में FTA पर हस्ताक्षर होने की संभावना है। फिलहाल इस क्लॉज के सूक्ष्म विवरण सार्वजनिक नहीं किए गए हैं।
निवेश के मौजूदा आंकड़ों पर नजर डालें तो जनवरी 2000 से सितंबर 2025 के बीच न्यूज़ीलैंड से भारत में कुल FDI लगभग 88.24 मिलियन डॉलर रहा है। अब तक कंपनियों ने मैन्युफैक्चरिंग और इन्फ्रास्ट्रक्चर से जुड़े क्षेत्रों में निवेश में रुचि दिखाई है। इसके अलावा, निवेश प्रवाह की निगरानी और निवेशकों को सहायता देने के लिए DPIIT द्वारा एक इन्वेस्टमेंट डेस्क भी स्थापित किया जाएगा।
तुलनात्मक रूप से, भारत–EFTA ट्रेड एंड इकोनॉमिक पार्टनरशिप एग्रीमेंट (TEPA) 1 अक्टूबर से लागू है, इस अग्रीमेंट के तहत भारत ने 15 वर्षों में 100 अरब डॉलर के निवेश और 10 लाख प्रत्यक्ष नौकरियों की बाध्यकारी प्रतिबद्धता सुनिश्चित की है। TEPA के अनुसार, पहले 10 वर्षों में 50 अरब डॉलर और अगले पांच वर्षों में अतिरिक्त 50 अरब डॉलर निवेश का लक्ष्य है। निवेश न आने पर परामर्श के बाद बाजार पहुंच में आंशिक कटौती और तीन वर्ष के ग्रेस पीरियड के बाद अस्थायी व अनुपातिक रियायतों के निलंबन का प्रावधान है।
उल्लेखनीय है कि इन निवेश प्रतिबद्धताओं में विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI) शामिल नहीं है; फोकस दीर्घकालिक पूंजी, उत्पादक क्षमता निर्माण और रोज़गार सृजन पर है। भारत–न्यूज़ीलैंड FTA में निगरानी तंत्र का गठन इसी रणनीतिक दृष्टिकोण को मजबूत करता है।
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