वैश्विक रिपोर्ट ने अल्पसंख्यक समुदायों के लिए एक अच्छे देश के रूप में भारत की प्रशंसा करते हुए कहा कि देश में उन पर अलग से कोई प्रतिबंध नहीं लगाया गया है। दरअसल एक शोध संगठन सेंटर फॉर पॉलिसी एनालिसिस ने कई देशों में उनके संबंधी धार्मिक अल्पसंख्यकों को लेकर एक रिपोर्ट तैयार की है, इसमें धार्मिक अल्पसंख्यकों के समावेश और व्यवहार के मामले में तमाम देशों की सूची में भारत को शीर्ष स्थान दिया है।
इस रिपोर्ट से यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि अल्पसंख्यकों के मामले में भारत में किस तरह की उदार नीतियों का इस्तेमाल किया जाता है। भारत में इन अल्पसंख्यकों के लिए उत्सवों, शिक्षा और जीवन शैली के अनुकूल वातावरण है, उन पर कोई दबाव नहीं डाला जाता है। इस रिपोर्ट से स्पष्ट है कि भारत में ऐसा कोई वातावरण नहीं है जो अल्पसंख्यकों को महत्व नहीं देता हो। हालांकि भारत अल्पसंख्यकों के प्रति नरम रुख अपनाने के मामले में विश्व में अग्रणी है। हालांकि यह रिपोर्ट उन चिंताओं को भी दर्शाती है जिनका विभिन्न धार्मिक समुदायों और संप्रदायों को विभिन्न देशों में सामना करना पड़ता है।
आइए पहले देखते हैं कि रिपोर्ट क्या कहती है।
1) भारत में यह मॉडल विविधता को बढ़ावा देने पर केंद्रित है।
2) भारत के संविधान में अल्पसंख्यकों के सांस्कृतिक और शैक्षिक प्रचार के लिए विशेष प्रावधान हैं। दुनिया के किसी अन्य संविधान में इस तरह के प्रावधान नहीं हैं।
3) भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जहां किसी भी धर्म, पंथ का बंधन नहीं है।
4) भारत की अल्पसंख्यक नीति को संयुक्त राष्ट्र द्वारा अन्य देशों के लिए एक मॉडल के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। वहीं इस रिपोर्ट से भारत को सम्मान मिला है। हालांकि, बहुत बार, इसके वांछित परिणाम नहीं होते हैं। बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक समुदायों के बीच, विशेष रूप से मुस्लिम समुदाय के बीच विभिन्न मुद्दों पर संघर्ष की कई रिपोर्टें आती हैं।
एक तरफ यह रिपोर्ट बताती है कि अल्पसंख्यकों के प्रति भारत की नीति किस तरह से लागू की जा रही है, लेकिन जब से नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार भारत आई है, तब से अल्पसंख्यकों के साथ किस तरह अन्याय हो रहा है, इसकी तस्वीर जानबूझ कर चित्रित की गई है। खैर, अल्पसंख्यक का मतलब सिर्फ मुसलमान नहीं है। वास्तव में भारत में जैन, बौद्ध, ईसाई, सिक्ख धर्म के लोगों की संख्या अपेक्षाकृत कम है। लेकिन जब देश में कहीं मुसलमानों को पीटा जाता था तो वे तस्वीरें दिखाते थे कि कैसे पूरे देश में मुसलमानों पर अत्याचार हो रहा है। मोदी सरकार के पहले पांच सालों में आरोप लगे कि मॉब लिंचिंग कर मुसलमानों को मारा जा रहा है। कुछ घटनाएं हुईं, लेकिन ऐसा माहौल बना दिया गया जैसे ये घटनाएं पूरे देश में हुई हों। इस घटना के बाद उदारवादी और वामपंथी समूहों ने नकारात्मक माहौल बनाने की कोशिश की साथ ही उन्होंने यह बताने की कोशिश की कि किस तरह पूरे देश में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार हो रहा है और मुसलमानों पर अत्याचार हो रहा है। उन्हें जानबूझकर गोधरा कांड से जोड़ा गया। दरअसल, मोदी सरकार को बदनाम करने की कोशिश की गई।
भारतीय संविधान ने सभी जातियों और धर्मों के लोगों को समान अधिकार दिए हैं। अल्पसंख्यकों को कहीं भी दुयम दर्जे का स्थान नहीं दिया गया है। उनके पास पूर्ण शैक्षिक अवसर हैं। शिक्षा के लिए छात्रवृत्ति उपलब्ध हैं। अल्पसंख्यकों पर कोई धार्मिक प्रतिबंध नहीं है। अल्पसंख्यकों को अपने रीति-रिवाजों और परंपराओं के अनुसार किसी भी पूजा स्थल जैसे मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारे में जाने की अनुमति है। ईसाई, पारसी, बौद्ध, कोई भी अल्पसंख्यक उस दबाव को महसूस नहीं करता जिसके तहत हम यहां रहते हैं। वे अपनी परंपराओं, अपने उत्सवों, प्रार्थनाओं को बिना किसी प्रतिबंध के कर सकते हैं। उनके पास अपने पूजा स्थलों के लिए भूमि लेने और उनका निर्माण करने का अधिकार और पूर्ण अनुमति है। भारत में सभी धर्मों के लिए नियम समान हैं। भारत में अल्पसंख्यक इससे संतुष्ट भी हैं।
हालांकि जब हम अल्पसंख्यकों को लेकर पड़ोसी देशों पर नजर डालते हैं तो एक अलग ही तस्वीर उभर कर सामने आती है। चाहे पाकिस्तान हो, अफगानिस्तान हो या बांग्लादेश। इस देश में हिंदू, सिख, ईसाई, बौद्ध अल्पसंख्यकों को बहुत सताया जाता है। पाकिस्तान में हिंदुओं की संख्या घटकर 1 से 2 फीसदी रह गई है। वहां के हिंदुओं को मार डाला गया, बहिष्कृत कर दिया गया या उनकी हत्या कर दी गई। साथ ही महिलाओं पर अत्याचार किया गया। हिंदू मंदिरों को तोड़ा गया। इसलिए पाकिस्तान में हिंदुओं की संख्या घटी है। बांग्लादेश में भी हिंदू मंदिरों को तोड़ा गया है। भारत में ऐसी घटनाएं नहीं होती हैं। कोई भी कानून व्यवस्था को अपने हाथ में नहीं ले रहा है। मध्य पूर्वी देशों में अल्पसंख्यकों का दमन किया जाता है। बेशक वे वहां अपने त्योहार मना सकते हैं, लेकिन उन्हें भारत की तरह आजादी से मनाने की इजाजत नहीं है। भारत में जितनी आजादी है उतनी आजादी किसी भी देश में नहीं है।
दूसरे देश के लोग भारत में रह रहे अल्पसंख्यकों के खिलाफ होनेवाले अन्याय का रोना रोते रहते है। वहां की हस्तियों में अचानक भारत के अल्पसंख्यकों के प्रति करुणा का भाव जागृत हो जाता है। लेकिन यह एक बहाना है। इसके पीछे की साजिश थी भारत में अराजकता पैदा करना, लोगों में अशांति पैदा करना और मोदी सरकार को नुकसान पहुंचाना। बेशक, यह सफल नहीं हुआ है और न ही होगा। भारत ने पड़ोसी देशों में अल्पसंख्यकों के मामले में नागरिक संशोधन कानून यानी सीएए बनाया। सीएए कानून पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश से भारत में आनेवाले हिंदुओं, ईसाइयों, बौद्धों, सिखों से गलत व्यवहार करने वाले लोगों को शरण देने के लिए लाया गया था। इस कानून को लाकर एक तरह से उनकी रक्षा की गई। लेकिन हमारे ही कुछ लोगों ने इसका पुरजोर विरोध किया। वहीं यह दावा करते हुए विरोध भड़काए गए कि इस पड़ोसी देश में मुसलमान अल्पसंख्यक नहीं हैं लेकिन उनकी सुरक्षा क्यों नहीं की जाती है। केवल मुसलमानों के प्रचार के लिए आंदोलन का यह कदम उठाकर यह दिखाने की कोशिश की गई कि भारत में अल्पसंख्यक यानी सिर्फ मुसलमान किस तरह से परेशान हैं।
मोदी सरकार ने तीन तलाक की प्रथा को खत्म किया और मुस्लिम महिलाओं के खिलाफ अन्याय को दूर किया। स्वागत तो हुआ लेकिन विरोध भी, यह विरोध वामपंथी, प्रगतिशील, तथाकथित बुद्धिजीवियों ने किया। हालाँकि इसने महिलाओं की सामर्थ्य को रोक दिया है, उन्होंने तलाक विरोधी कानून का भी विरोध किया, उन्हें डर था कि इससे कहीं न कहीं पीएम मोदी के प्रति लोगों में विश्वास पैदा होगा। हालांकि इस वैश्विक रिपोर्ट के आधार पर हम खुद देख सकते है कि भारत में अल्पसंख्यक किस तरह संतुष्ट हैं, जिसके बाद इन तमाम वामपंथी, प्रगतिशील और उदार समूहों का असली चेहरा सामने आ जाता है। हालांकि इस रिपोर्ट ने इन विरोधियों के मुंह पर एक तरह का तमाचा जड़ दिया है। वहीं अल्पसंख्यकों को भी इस मामले पर विचार करने और ऐसे लोगों के झांसे में न आकर अपने कल्याण के बारे में सोचने की जरूरत है। अन्य देशों में अल्पसंख्यकों की स्थिति को देखते हुए कहा जा सकता है कि भारत में अल्पसंख्यक काफी हद तक सुरक्षित हैं। जो कि भारत में सहिष्णु माहौल के कारण है।
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