33 C
Mumbai
Tuesday, October 22, 2024
होमदेश दुनियासाहित्यकार-पत्रकार गीतेश शर्मा को वियतनाम का सर्वोच्च नागरिक सम्मान

साहित्यकार-पत्रकार गीतेश शर्मा को वियतनाम का सर्वोच्च नागरिक सम्मान

Google News Follow

Related

मुंबई। ‘ जनसंसार ‘ के प्रधान संपादक रहे प्रख्यात साहित्यकार-पत्रकार गीतेश शर्मा को मरणोपरांत वियतनाम के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ऑर्डर ऑफ फ्रैंडशिप मैडल से नवाजा गया है। यह सम्मान उन्हें वियतनाम के राष्ट्रीय दिवस पर प्रदान किया गया, जिसे गीतेश शर्मा के पुत्र संजीव शर्मा ने स्वीकार किया। इस गौरवपूर्ण अवसर पर उनके साथ वियतनाम के भारत स्थित राजदूत फाम सान्ह चाउ, इंडो वियतनाम सॉलिडैरिटी कमेटी की सचिव कुसुम जैन व डॉ. प्रभामयी सामंत राय भी उपस्थित थीं।

संबंधों की मजबूती में अहम भूमिका

गीतेश शर्मा ने सदियों से चले आ रहे भारत-वियतनाम के सौहार्द्रपूर्ण मैत्री-संबंधों को और ज्यादा मजबूत तथा विस्तृत करने की दिशा में चार-पांच दशकों तक सक्रिय भूमिका निभाई थी। 1982 से 2013 तक वियतनाम सरकार तथा अन्य संगठनों के आमंत्रण पर 17 बार उत्तर से दक्षिण वियतनाम के विभिन्न शहरों व ग्रामीण अंचलों का भ्रमण किया था। गीतेश शर्मा ने लेखन के साथ ही भारत के कोने-कोने समेत एशिया, यूरोप, अमेरिका के कई देशों की यात्रा तथा विविध राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों-गोष्ठियों में हिस्सा लिया।

कई भाषा में कई किताबें

उन्होंने प्रासंगिक सामाजिक परिदृश्यों पर कई किताबें लिखीं, जिनमें प्रमुख हैं – ‘ धर्म के नाम पर विकृत समाज ‘, ‘ पंजाब : सुलगता सवाल ‘, ‘ सांप्रदायिकता एवं सांप्रदायिक दंगे ‘, ‘ विद्रोही कवि नज़रुल इसलाम : धर्म निरपेक्षता के मायने ‘, ‘ टैगोर : एक दूसरा पक्ष ‘, ‘ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ‘, ‘ नागार्जुन और कलकत्ता ‘, ‘ धर्म एवं सामाजिक न्याय ‘, ‘ ट्रेसेज ऑफ इंडियन कल्चर इन वियतनाम ‘ (अंग्रेजी), ‘ इंडिया वियतनाम रिलेशंस : फर्स्ट टु ट्वेंटी फर्स्ट सेंचुरी ‘ (अंग्रेजी) आदि। अंग्रेजी में लिखीं दोनों किताबें वियतनामी भाषा में भी अनुदित हैं। इसके अलावा स्वीडिश लेखक टामस एंडरसन तथा कवयित्री कुसुम जैन के साथ संयुक्त लेखन में ‘ डबल फैंटेसी ‘ नाम से किताब भी लिखी, जिसका स्वीडिश भाषा में ‘ डुबला बार्लडर ’ शीर्षक से अनुवाद हुआ है।

पुरोहिताई छोड़ घर से भागे थे कोलकाता

वर्ष 1932 में बिहार में जन्मे वरिष्ठ कवि -साहित्यकार-पत्रकार गीतेश शर्मा ने अपने पत्रकारीय करिअर की शुरुआत 1951 में दैनिक विश्वमित्र से की थी। दरअसल हुआ यह था कि उनके पिता ने युवावस्था में ही उन्हें पढ़ाई छुड़वाकर पुरोहिताई के पुश्तैनी धंधे में लगा दिया था। 4 वर्ष तक पुरोहिताई करने के बाद अंतत: सबसे बगावत कर वे 1950 में कोलकाता आ पहुँच गए थे। इस दौरान पत्रकारीय जीवन के साथ ही उनके भीतर साहित्यिक आयाम ने भी आकार लिया। अपने विशिष्ट योगदान के लिए उन्हें हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग, बिहार राजभाषा विभाग, नज़रुल इंस्टीट्यूट, ढाका, बांग्लादेश, उत्तरापथ, गोथेन बर्ग, स्वीडन, वियतनाम लेखक संघ व बुल्गारिया सरकार, रायल इंस्टीट्यूट थाइलैंड द्वारा सम्मानित किया गया।

लेखक से अधिक

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

The reCAPTCHA verification period has expired. Please reload the page.

हमें फॉलो करें

98,341फैंसलाइक करें
526फॉलोवरफॉलो करें
184,000सब्सक्राइबर्ससब्सक्राइब करें

अन्य लेटेस्ट खबरें