दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया एक अभूतपूर्व मानवीय आपदा का सामना कर रहे हैं। भीषण बारिश और चक्रवाती तूफानों ने तबाही मचा दी है। अकेले इंडोनेशिया में स्थिति अत्यंत गंभीर हो चुकी है। देश के पश्चिमी द्वीपों पर आए भयावह बाढ़ और भूस्खलन में अब तक 961 लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है, जबकि 293 लोग अभी भी लापता हैं।
इंडोनेशिया की राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन एजेंसी (BNPB) के अनुसार, 10 लाख से अधिक लोग विस्थापित हो चुके हैं। सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों में अचेह (Aceh), नॉर्थ सुमात्रा और वेस्ट सुमात्रा शामिल हैं। अचेह प्रांत के गवर्नर मुजाकिर मनाफ ने स्थिति की भयावहता बताते हुए कहा, “सब कुछ कम पड़ रहा है, खासकर चिकित्सा कर्मियों की भारी कमी है। हम डॉक्टरों की कड़ी जरूरत में हैं।”
स्कूल और अस्पताल बड़ी संख्या में क्षतिग्रस्त, 5,000 से अधिक लोग घायल, बंडा अचेह में पीने के पानी और ईंधन के लिए लंबी कतारें, अंडे जैसे सामान्य खाद्य पदार्थों के दाम कई गुना बढ़े है। तकनीकी संसाधनों की कमी के बीच, राहत कार्यों में मदद के लिए स्थानीय प्रशिक्षण केंद्र के 4 हाथियों को भी तैनात किया गया, जो बड़े मलबे हटाने और फंसे वाहनों को खींचने में मदद कर रहे हैं। BNPB ने अनुमान लगाया है कि पुनर्निर्माण का खर्च 51.82 ट्रिलियन रुपिया (लगभग 5.3 बिलियन डॉलर) तक पहुंच सकता है।
श्रीलंका से भी भयावह आंकड़े सामने आए हैं। चक्रवात दित्वाह को देश का इस सदी का सबसे विनाशकारी तूफान बताया जा रहा है। 635 लोगों की मौत, 20 लाख से अधिक लोग प्रभावित यह देश की जनसंख्या का 10% है। सेना ने 38,500 सुरक्षा कर्मियों को राहत कार्यों में लगाया। अब तक 31,116 लोगों को बचाया गया।
श्रीलंकाई राष्ट्रपति अनुरा दिसानायके ने पीड़ित परिवारों के लिए राहत पैकेज की घोषणा की है, जिसमें सुरक्षित क्षेत्रों में जमीन खरीदने के लिए 1 करोड़ रुपये तक की सहायता शामिल है। हालांकि सरकार ने स्पष्ट किया है कि आर्थिक संकट के चलते वह अकेले पुनर्निर्माण का खर्च नहीं उठा सकती और अंतरराष्ट्रीय सहायता, जिसमें IMF की मदद भी शामिल है, की आवश्यकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि भले ही मानसूनी बारिश इस क्षेत्र का स्वाभाविक हिस्सा है, लेकिन हाल के वर्षों में ये घटनाएँ, ज्यादा अनिश्चित, ज्यादा असामान्य और ज्यादा घातक होती जा रही हैं, जिसका सीधा संबंध जलवायु परिवर्तन से है।
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