एकल कमांड संरचना की स्थापना: अधिनियम संयुक्त सैन्य अभियानों के लिए थिएटर कमांड प्रणाली की नींव रखता है। तीनों सेनाओं के संसाधन एकीकृत होकर एक कमांडर के नेतृत्व में कार्य करेंगे।
कमांडर-इन-चीफ के अधिकार: थल सेना अधिनियम, 1950; नौसेना अधिनियम, 1957; और वायु सेना अधिनियम, 1950 के अंतर्गत: अब अंतर-सेवा संगठन के कमांडर-इन-चीफ को अनुशासनात्मक और प्रशासनिक कार्रवाई का अधिकार प्राप्त है।
केंद्र सरकार के विशेष अधिकार: केंद्र सरकार को नए अंतर-सेवा संगठनों की स्थापना और उनके कार्यों को परिभाषित करने का अधिकार होगा।
मान्यता प्राप्त अंतर-सेवा संगठन और उनकी भूमिका: अंडमान और निकोबार कमान भारत की पहली एकीकृत थिएटर कमान। हिंद महासागर क्षेत्र में सामरिक निगरानी और समुद्री सुरक्षा का दायित्व।
रक्षा अंतरिक्ष एजेंसी: अंतरिक्ष आधारित सैन्य परिसंपत्तियों और प्रौद्योगिकियों के प्रबंधन हेतु।
साइबर रक्षा एजेंसी: साइबर युद्ध और डिजिटल रक्षा क्षमताओं को मजबूत करने में सहायक।
अधिनियम के लाभ: तेज निर्णय प्रक्रिया: संकट या युद्धकाल में समयबद्ध निर्णय लेना संभव होगा। संसाधनों का कुशल उपयोग: साझा लॉजिस्टिक्स और प्रशिक्षण के माध्यम से लागत में कमी। संयुक्त प्रशिक्षण और अभियान: तीनों सेनाओं के सहयोग से युद्धक क्षमता में वृद्धि। नई युद्ध चुनौतियों से निपटना: साइबर, अंतरिक्ष और हाइब्रिड युद्ध के लिए तैयार सशस्त्र बल।
संभावित चुनौतियां: संस्कृति और कार्यशैली का अंतर: तीनों सेनाओं की अलग-अलग परंपराएं समन्वय में बाधा बन सकती हैं। प्रशिक्षण और मानसिकता: एकीकृत दृष्टिकोण के लिए व्यापक प्रशिक्षण की आवश्यकता। बुनियादी ढांचे की कमी: थिएटर कमांड हेतु तकनीकी और लॉजिस्टिक संसाधनों में भारी निवेश आवश्यक।
विशेषज्ञता की जरूरत: साइबर और अंतरिक्ष क्षेत्र में प्रशिक्षित मानव संसाधन का विकास आवश्यक है। कुल मिलाकर, अंतर-सेवा संगठन अधिनियम, 2023 भारतीय सशस्त्र बलों को 21वीं सदी की रक्षा चुनौतियों से निपटने के लिए अधिक सक्षम, एकीकृत और शक्तिशाली बनाता है। यदि इसे सुनियोजित ढंग से लागू किया गया, तो यह भारत को एक वैश्विक सैन्य शक्ति के रूप में स्थापित करने में सहायक सिद्ध होगा।
