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Friday, September 20, 2024
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जोशीमठ में दरार,जानिये कौन है इसके लिए जिम्मेदार?  

पहाड़ों पर अंधाधुंध निर्माण और मानव दबाव ऐसी घटनाओं को दे रहे अंजाम 

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उत्तराखंड के जोशीमठ में आई दरारों से यहां के लोग सन्न हैं और उन्हें कई तरह की आशंकाओं ने घेर लिया है। ऐसे में सवाल उठने लगे हैं कि ऐसी घटनाएं क्यों हो रही हैं। इसकी क्या वजह है ?  क्या इसके लिए मनुष्य जिम्मेदार है। अगर जिम्मेदार है तो वह किस प्रकार से जिम्मेदार है। बताया जा रहा है कि पहाड़ों पर अंधाधुंध निर्माण की वजह से पहाड़ी इलाकों में ऐसी घटनाएं हो रही हैं। इसके अलावा मूसलाधार बारिश,बढ़ते तापमान का दुष्प्रभाव, ग्लेशियर पिघलना ,ग्लेशियर फटना,बदलते जलवायु आदि घटनाएं इसके लिए जिम्मेदार है। विशेषज्ञों का कहना है कि हिमालय में लगातार भूगर्भीय हलचल हो रही है। जिसकी वजह  हो सकती है। इसके अलावा बढ़ते मानवीय दबाव की वजह से भी ऐसी घटना को न्योता दिया दिया जा रहा है। जिसकी वजह से हिमालय के संरचना पर काफी असर पड़ा है।

लगातार आबादी बढ़ती गई : विशेषज्ञों का कहना है कि हिमालय के ऊंचे स्थान पर बसे लोगों को काफी खतरा है, क्योंकि ये स्थान मलबे के ढेर से बने हुए हैं। और लगातार बढ़ती आबादी की वजह से इस पर दबाव बन रहा है। ये मलबे सैकड़ों हजारों साल से ठोस सतह बन चुका है। जानकारों का कहना है कि जिसके बाद लोग यहां पहले खेती बाड़ी करनी शुरू उसके बाद यहां बसना शुरू कर दिया। इन जगहों का दबाव सहने की एक क्षमता होती है। यहां लगातार आबादी बढ़ती गई और इस जगह पर अतिरिक्त दबाव बनता गया,जिसकी वजह से आज भू स्खलन ,भू धंसान आदि जैसी घटनाएं हो रही हैं।

उत्तराखंड के 84 जगह डेंजर जॉन घोषित: जानकारों का कहना है कि इससे रोकने के लिए धुआंधार बसाव नहीं होना चाहिए और न ही। अनियंत्रित बसाहट ही होनी चाहिए। बीते कुछ समय से लगातार पहाड़ों पर  निर्माण और चट्टानों को काटा जा रहा हैं बांध बनाये जा रहे हैं ,जलप्रवाह की दिशा तय की जा रही है। जिसकी वजह से ऐसी घटनाएं हो रही हैं। बताया जा रहा है कि उत्तराखंड 84 जगहों को डेंजर जॉन घोषित किया गया। बाढ़ और ग्लेशियर फटने की कई घटनाएं हो चुकी है। वावजूद इसके मनुष्य इससे सबक नहीं ले रहा है और अंधाधुंध निर्माण और बसाहट करता जा रहा है।

वैज्ञानिकों की सलाह जरूर लें: जानकारों का कहना है कि इसे रोकने के लिए बड़े पैमाने पर पेड़ लगाए जाए, चट्टानों को काटना और निर्माणों पर रोक लगाई जानी चाहिए। अगर कोई निर्माण किया जा रहा है तो उस संदर्भ में वैज्ञानिकों की सलाह जरूर लेनी चाहिए। इतना ही नदियों के किनारे होने वाले अतिक्रमण को रोका जाना चाहिए। जल निकासी का उचित प्रबंध किया जाना चाहिए।

जोशीमठ पचास सालों से धंस रही: लोगों कहना है कि जोशीमठ पचास सालों से धंस रही है। संबंध में 1976 में मिश्रा समिति ने अपनी रिपोर्ट भी दी थी। इसको अनदेखा किया गया। जिसमें साफ़ कहा गया है कि जोशीमठ धीरे धीरे डूब रहा है। समिति ने भू धसाव और भू स्खलन वाले स्थानों पर पेड़ लगाने की सलाह दी थी। बताया जा रहा है कि 2020 से ऐसी घटनायें बढ़ती चली गई थी। 2021 में बाढ़ आने पर कई घरों में दरार भी आई थी। 2022 के सितंबर माह में उत्तराखंड की एक सर्वे टीम ने इसका परीक्षण भी किया था।
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