प्रयागराज में 144 वर्षों की प्रतीक्षा और त्रिवेणी संगम पर आयोजित महाकुंभ अनन्य आस्था, अगाध भक्ति, हर्ष-उमंग और भावनाओं के उमड़ते ज्वार के बीच महाकुंभ लाखों श्रद्धालुओं के जप-तप और पुण्य-मोक्ष का मार्ग बनने के साथ ही एकता के सूत्र में पिरोने वाला माध्यम बन गया। इस अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर का साक्षी बनने, पुण्यों को साकार करने और मानव सभ्यता के सबसे बड़े विलक्षण क्षण का साक्षी बनने की होड़ नजर आई।
मेले में आए विदेशी श्रद्धालुओं की भागीदारी भी विशेष आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। अमेरिका, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया और एशिया के विभिन्न देशों से आए श्रद्धालु भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता से अभिभूत हो रहे हैं। गंगा किनारे योग, ध्यान और सत्संग में शामिल होकर वे अपने में आत्मशांति महसूस कर रहे हैं।
महाकुंभ के मेला क्षेत्र में हर तरफ जयकारे की गूंज ही सुनाई दे रही हैं। अपनी आस्था के अनुसार जय-जयकार कर रहे हैं। कहीं साधुओं की टोली ढोलक की थाप पर राम धुन गा रही है, तो कहीं मंजीरे के साथ साधुओं की टोली भजन सुना रही है। लोग इन्हें अपनी आस्था के अनुसार दान भी कर रहे थे। संगम के तट पर सजे महाकुंभ में आस्था, श्रद्धा और आध्यात्मिकता का अद्वितीय संगम दिख रहा है।
महाकुंभ में केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन हो रहा है। नृत्य, संगीत, नाटक और कला प्रदर्शनियां महाकुंभ को और भी खूबसूरत बना रही हैं। गंगा आरती भी श्रद्धालुओं को भावविभोर कर रही है।
महाकुंभ ने देश ही नहीं, बल्कि दुनियाभर के संतों और आध्यात्मिक गुरुओं के साथ ही अन्य लोगों को भी आकर्षित किया है। इनमें से एक नाम है अमेरिका के न्यू मैक्सिको में जन्मे और कभी अमेरिकी सैनिक रहे माइकल का। माइकल अब बाबा मोक्षपुरी बन गए हैं। बेटे की मौत ने उनकी जिंदगी की दिशा बदल दी।
उन्होंने बंदूक थामने वाले हाथों में कमंडल धारण कर लिया। आज वे जूना अखाड़े से जुड़े हैं और अपना पूरा जीवन सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित कर चुके हैं। त्रिवेणी के संगम पर कल्पवास कर रहे बाबा मोक्षपुरी ने कहा, मैं भी कभी साधारण व्यक्ति था।
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