जूना अखाड़े के महामंडलेश्वर स्वामी यतींद्रानंद गिरि ने संगम नोज पर हुई घटना पर दुख व्यक्त किया है। कहा कि मौनी अमावस्या को संगम नोज पर हुई भगदड़ की सूचना अत्यंत पीड़ादायक है। इसमें कई लोगों की मृत्यु हुई है और बड़ी संख्या में लोग घायल हो गए हैं। मेला प्रशासन की हठधर्मिता के चलते यह घटना घटी है। पहली बार किसी कुंभ में ऐसी अव्यवस्था देखी है। साधु-संतों को बुनियादी सुविधाएं तक नहीं दी गई हैं।
प्रयागराज महाकुंभ का पर्व प्रत्येक 12 वर्ष में लगने वाला कुंभ अपने आप में दुर्लभ योग के कारण 144 वर्ष बाद आता है। यतींद्रानंद ने कहा कि सरकार खुद कहती थी 40 से 45 करोड लोग आएंगे। सरकार का जो अनुमान था लोग उसी अनुमान के अंतर्गत ही आए हैं उससे अधिक नहीं तो फिर शासन और प्रशासन ने उसी अनुमान के अनुसार व्यवस्था क्यों नहीं किया। यह प्रश्न उठता है समूचे मेले में चाहे मेला अधिकारी हो अपर मेला अधिकारी हो एसएसपी मेला, डीआईजी मेला किसी भी अधिकारी का मिलना तो दूर फोन तक उठना भी संभव नहीं है।
प्रशासन केवल वीआईपी जनों की आवभगत में लगा है। कुंभ में ट्रैफिक व्यवस्था तो पहले से ही ध्वस्त थी। जगह-जगह बैरिकेडिंग कर रास्ता अवरुद्ध कर दिया गया। पांटून पुलों से पैदल तक नहीं जाने दिया जा रहा है। पुल और सड़क सिर्फ वीआईपी के लिए आरक्षित कर दिए गए हैं। प्रशासन ने पूरे मेले को एक इवेंट बनाकर रख दिया है।
आगे कहा कि मेला प्रशासन के अधिकारी कुंभ मेले की आध्यात्मिक और धार्मिक भावनाओं को ना जानते हैं और ना ही मानते हैं। मेले को भव्य और दिव्य कहा गया लेकिन वीआईपी और व्यावसायिक बनाकर भव्य बनाने का प्रयास तो हुआ किंतु मेले की आत्मा आध्यात्मिक और धार्मिकता जो की दिव्यता थी उसको दरकिनार कर दिया गया।
शासन और प्रशासन ने पूरा मेला एक इवेंट बनाकर रख दिया कुंभ कोई इवेंट या व्यावसायिक मेला नहीं है। कुंभ एक धार्मिक और आध्यात्मिक मेला है। यहां देवता आते हैं। साधु संत और कल्पवासी साधना करते हैं। शासन और प्रशासन दोनों के द्वारा देवताओं का मान सम्मान नहीं किया गया। उनको आदर नहीं दिया गया। साधु संत तथा कल्पवासियों का आदर और उनकी सुविधाओं का ध्यान नहीं रखा गया जिसके चलते मकर संक्रांति का स्नान भी दुर्व्यवस्थाओं से भरा रहा।
इस मेले का मुख्य स्नान मौनी अमावस्या का देवताओं की नाराजगी को प्रकट करते हुए स्वीकार नहीं किया है। मेले में भीड़ यह दुर्व्यवस्था का कारण नहीं है, क्योंकि उत्तर प्रदेश सरकार ने पूरे विश्व में निमंत्रण दिया 144 साल के बाद कुंभ आ रहा है। महाकुंभ का इतिहास क्या केवल 144 वर्ष का है।
पूरे मेले में केवल चार पांच राजनीतिक व आर्थिक प्रभावशाली संतों के अलावा मेला प्रशासन ने किसी को भी महत्व नहीं दिया। कुंभ मेले का दुखद पहलू यह है की साधु संत अपने परंपरागत स्नान को नहीं कर सके तथा अखाड़े के देवता भी स्नान से वंचित रहे। शायद मेला प्रशासन के व्यवहार से देवता संतुष्ट नहीं थे, इसलिए देवताओं ने स्नान नहीं किया।
अब देखना है मेले की दुर्व्यवस्था आज की घटना की नैतिक जिम्मेदारी कौन लेता है। उत्तर प्रदेश सरकार कुंभ में पधारे साधु संत तपस्वी और कल्पवासियों तथा श्रद्धालु भक्तजनों की भावनाओं और पीड़ा को कितना समझ पाती है और ऐसे संवेदनहीन मेला प्रशासनिक अधिकारियों के ऊपर क्या कार्रवाई करती है।
हम अखाड़ा परिषद के सभी पदाधिकारी को साधुवाद धन्यवाद देते हैं कि उन्होंने अमृत स्नान स्थगित करने का निर्णय किया, क्योंकि अगर अमृत स्नान स्थगित ना होता तो आज प्रयाग में अकल्पनीय दुखद घटना निश्चित रूप से होती, क्योंकि मेला प्रशासन के पास अमृत स्नान कराने की ना कोई योजना थी ना तैयार थी और ना ही उनकी आंतरिक भावना थी। किंतु एक आश्चर्य है आखिर क्या बात है अखाड़ा परिषद, अखाड़ों के प्रमुख संत तथाकथित कुछ बड़े नाम वाले राजनीतिक संत और मीडिया इस दृष्टि से मौन और नेत्रहीन क्यों है।
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