नई दिल्ली। दो शिक्षाविदों ने 2011 की जनगणना का विश्लेषण किये हैं, जिसमें यह सामने आया है कि भारत का बेंगलुरु वह जिला है जहां सबसे अधिक बोलियां बोली जाती हैं। विश्लेषण में बताया गया है कि बेंगलुरु में कम से कम 107 भाषाएं बोली जाती हैं। इनमें 22 अनुसूचित और 84 गैर अनुसूचित भाषाएं शामिल हैं। विशेषज्ञों इसे अच्छा माना है। विशेषज्ञों का कहना है कि अलग -अलग भाषा बोलने वाले एक ही स्थान पर आ रहे तो यह अर्थव्यवस्था के लिए अच्छी बात है। ऐसे में नौकरी के अवसर बढ़ेंगे।
ब्रुकिंग्स इंस्टीट्यूशन के शमिका रवि और भारतीय सांख्यिकी संस्थान में अर्थशास्त्र एक सहयोगी प्रोफेसर मुदित कपूर द्वारा विश्लेषण से पता चलता है कि अन्य जिले जहां 100 से अधिक भाषाएं बोली जाती हैं, वे हैं नागालैंड के दीमापुर (103) और असम के सोनितपुर (101)। टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, कम से कम विविधता वाले जिलों में यनम (पुदुचेरी), कैमूर (भभुआ, बिहार), कौशाम्बी और कानपुर देहात (उत्तर प्रदेश) और अरियालुर (तमिलनाडु) शामिल हैं।
इन जिलों में 20 से कम भाषाएं बोली जाती हैं। बेंगलुरु में कन्नड़ बोलने वालों का कुल प्रतिशत 44% है। अन्य प्रमुख भाषाओं में तमिल (15%), तेलुगु (14%), उर्दू (12%), हिंदी (6%), मलयालम (3%), मराठी (2%), कोंकणी (0.6%), बंगाली (0.6%) और उड़िया (0.5%) शामिल हैं। पोचुरी, कोंध, संगतम और वांचो जैसी भाषाओं में बोलने वालों की संख्या सबसे कम है।
लेखक बताते हैं कि जनगणना में सभी भाषाओं को शामिल किया गया है, भले ही इसे बोलने वाली आबादी का आकार कुछ भी हो। भाषाई विविधता गतिशीलता और बदले में, आर्थिक परिणामों को संदर्भित करती है। शमिका रवि ने कहा, “गतिशीलता आर्थिक गतिशीलता के लिए एक अच्छा मार्कर है… प्रतिभा के लिए भाषा एक अच्छी प्रॉक्सी है।