मुस्लिम तलाक को लेकर मद्रास हाई कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है। मद्रास उच्च न्यायालय की मदुरै बेंच ने कहा है कि, अगर पत्नी पति द्वारा दिए गए तलाक को खारिज कर देती है तो तलाक सिर्फ कोर्ट के जरिए ही लिया जा सकता है। इस टिप्पणी के साथ, उच्च न्यायालय ने माना कि तमिलनाडु की शरीयत परिषद द्वारा जारी किया गया तलाक प्रमाण पत्र अवैध था। पीठ ने कहा, ”ऐसे मामलों का फैसला केवल अदालत ही कर सकती है, शरीयत परिषद नहीं, जो एक निजी संस्था है।”
हाईकोर्ट के जस्टिस जीआर स्वामीनाथन ने फैसला सुनाते हुए कहा कि अगर पति दूसरी शादी करता है तो पहली पत्नी को उसके साथ रहने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। मुस्लिम पर्सनल लॉ पुरुषों को एक से अधिक विवाह करने की इजाजत देता है, हालांकि इससे पहली पत्नी को मनोवैज्ञानिक परेशानी होती है। ऐसे में इसे ‘घरेलू हिंसा अधिनियम’ की धारा-3 के तहत क्रूरता के रूप में देखा जा सकता है।
कोर्ट ने कहा कि अगर पहली पत्नी पति की दूसरी शादी के लिए सहमति नहीं देती है तो उसे अनुच्छेद-12 के तहत अलग रहने और पति से गुजारा भत्ता पाने का अधिकार है। अदालत ने मुस्लिम व्यक्ति द्वारा दायर पुन परीक्षण याचिका को भी खारिज कर क्रूरता के आरोप में पत्नी को 5 लाख रुपये का मुआवजा और 25,000 रुपये का मासिक गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया।
याचिकाकर्ता ने दावा किया है कि उसने 2017 में अपनी पत्नी को तीन तलाक का नोटिस जारी किया और फिर दूसरी महिला से शादी कर ली। लेकिन पत्नी ने दावे से इनकार किया और कहा कि तीसरा नोटिस नहीं मिला, इसलिए हमारी शादी अभी भी कायम है। कोर्ट ने कहा कि अगर पत्नी पति द्वारा दिए गए तलाक से इनकार करती है तो तलाक सिर्फ कोर्ट के जरिए ही लिया जा सकता है। जब तक अदालत कोई आधिकारिक निर्णय जारी नहीं करती, तब तक विवाह कायम माना जाता है।
याचिकाकर्ता ने तमिलनाडु की शरीयत परिषद, तौहीद जमात से प्राप्त तलाक प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया।हालाँकि, न्यायाधीश ने भी प्रमाण पत्र स्वीकार करने से इनकार कर दिया। “केवल राज्य द्वारा स्थापित अदालतें ही निर्णय दे सकती हैं। शरीयत परिषद एक निजी संस्था है, अदालत नहीं।”
यदि कोई हिंदू, ईसाई, पारसी या यहूदी पुरुष पहली शादी के दौरान दूसरी शादी करता है, तो यह घृणा के साथ-साथ क्रूरता का अपराध भी होगा। कोर्ट ने कहा कि यही प्रस्ताव मुसलमानों पर भी लागू होगा।
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