साक्षात्कार के प्रमुख अंश पर एक नजर डालते हैं।
सवाल: डीयू में चार साल के अंडरग्रेजुएट पाठ्यक्रम की शुरुआत इस साल की जा रही, आपकी क्या तैयारी है?
जवाब: दिल्ली विश्वविद्यालय में पहली बार चार साल का अंडरग्रेजुएट प्रोग्राम शुरू किया जा रहा है, जैसा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) में अनुशंसित है। इसके लिए हमारी तैयारियां पिछले तीन वर्षों से चल रही हैं, यह कोई अचानक लिया गया निर्णय नहीं है। हमने छात्रों को उनके रुचि और क्षमता के अनुसार ट्रैक चुनने की सुविधा दी है, जिसमें वे प्रोजेक्ट्स, नवाचार और रचनात्मकता पर काम कर सकते हैं, जो एनईपी के मूल उद्देश्यों में शामिल हैं।
रिसर्च और नवाचार को बढ़ावा देने के लिए एक मजबूत इकोसिस्टम बनाना हमारी प्राथमिकता है। डीयू के कॉलेज देश के शीर्ष 20 में से 10-12 की रैंकिंग में शामिल हैं। हमारे पास उत्कृष्ट रिसर्चर शिक्षक और रिसर्च लैबोरेट्रीज उपलब्ध हैं, जो इस प्रक्रिया को गति देने में मदद करेंगे। नई लैबोरेट्रीज की स्थापना के लिए विश्वविद्यालय हरसंभव सहायता प्रदान करेगा।
सवाल: डीयू का इंफ्रास्ट्रक्चर अब तक कितना मजबूत हो पाया है, आगे की क्या योजनाएं हैं?
जवाब: दिल्ली विश्वविद्यालय के बुनियादी ढांचे पर व्यापक स्तर पर काम चल रहा है। मैं भारत सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हार्दिक धन्यवाद देना चाहता हूं। आपको यह जानकर खुशी होगी कि डीयू में लगभग 2 हजार करोड़ रुपए के प्रोजेक्ट्स चल रहे हैं, जो विश्वविद्यालय को भविष्य में और मजबूत करेंगे।
सवाल: वीर सावरकर कॉलेज कब तक तैयार हो जाएगा?
जवाब: वीर सावरकर कॉलेज का निर्माण कार्य शुरू हो चुका है। मुझे विश्वास है कि अगले साल यह कॉलेज 100 फीसदी शुरू हो जाएगा। हो सकता है कि दो-तीन महीनों में भी यह शुरू हो जाए, लेकिन अगले साल यह निश्चित रूप से पूरी तरह कार्यरत होगा।
सवाल: लोकसभा में नेता विपक्ष और कांग्रेस सांसद राहुल गांधी डीयू कैंपस में बिना परमिशन आए थे। क्या आपने उस पर कोई एक्शन लिया?
जवाब: एक्शन की कोई बात नहीं है, लेकिन यह परंपरा पूरी तरह गलत है। वह विपक्ष के नेता और देश के एक प्रमुख दल के नेता हैं, इसलिए बेहतर होता कि वह विश्वविद्यालय प्रशासन को पहले सूचित करते। इससे हम भी अपनी तैयारियां कर सकते हैं। उन्होंने पहले भी एक बार ऐसा किया था, जब वह अचानक आए थे। मेरा मानना है कि ऐसी चीजों से बचना ही बेहतर है।
सवाल: आपने जिक्र किया कि राहुल गांधी पहले भी आ चुके हैं। आने वाले समय में कोई नेता बिना बताए आए, तो क्या आप एक्शन लेंगे?
जवाब: मैं आपके माध्यम से कहना चाहता हूं कि विश्वविद्यालय परिसर में जो भी हाई-प्रोफाइल लोग आते हैं, उन्हें प्रशासन से बात करके और अनुमति लेकर आना चाहिए। यह एक निर्धारित प्रक्रिया है, जिसका पालन करना उचित है। ऐसा न करने से गलत संदेश जाता है।
सवाल: लक्ष्मीबाई कॉलेज की प्रिंसिपल ने गर्मी से राहत मिलने के लिए क्लासरूम में गोबर पोता, इसके बाद डीयूएसयू प्रेसिडेंट रौनक खत्री ने प्रिंसिपल ऑफिस में ही गोबर पोत दिया, क्या यह सही है?
जवाब: यह मामला ऐसा है कि एक कॉलेज की प्रिंसिपल के कमरे में गोबर लगाया गया, जो डूसू प्रेसिडेंट जैसे पद पर बैठे व्यक्ति को बिल्कुल भी शोभा नहीं देता। उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था। विरोध जताने के और भी सभ्य तरीके मौजूद हैं। हमें यह सोचना चाहिए कि हम 21वीं सदी के भारत में हैं, जहां हम विकास की बात करते हैं।
सवाल: क्या आप इस पर कोई एक्शन लेंगे?
जवाब: मेरा मानना है कि हमें बड़ा सोचना चाहिए। डूसू प्रेसिडेंट को इस पूरी घटना से बचना चाहिए था। आप डूसू के प्रेसिडेंट हैं, अच्छा कार्य करें, भगवान भी आपकी मदद करेंगे।
सवाल: क्या ऑपरेशन सिंदूर को आप पाठ्यक्रम में शामिल करेंगे?
जवाब: ऑपरेशन सिंदूर पर अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी। लेकिन, यह देश के स्वाभिमान, देश के प्रति प्रेम, हमारी सेनाओं के शौर्य, नेतृत्व की समझ और संकट के समय में भारत सरकार और हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री द्वारा स्थिति को संभालने की क्षमता का प्रतीक है। ऐसी घटनाओं को पाठ्यक्रम में शामिल करना चाहिए और इसे शामिल भी किया जाएगा।
सवाल: ऑपरेशन सिंदूर और सेना के शौर्य को कॉलेज के बच्चों तक पहुंचाने के लिए क्या कर रहे हैं?
जवाब: ऑपरेशन सिंदूर को लेकर कॉलेजों में डिबेट और समारोह आयोजित हो रहे हैं। हर कॉलेज अपने तरीके से कुछ न कुछ कर रहा है ताकि छात्रों को यह समझ आए कि कोई भी कदम उठाना कितना जटिल होता है। इसमें गहन समझ, विस्तृत योजना और जबरदस्त पराक्रम व शौर्य की आवश्यकता होती है। जो सैनिक सेवा में हैं, वह हमारे विश्वविद्यालयों से निकले हुए हमारे ही बच्चे हैं। वे देश के लिए, हमारे लिए और हमारे ऊपर होने वाले अत्याचारों के खिलाफ लड़ने गए हैं।
सवाल: दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता दिल्ली यूनिवर्सिटी से पढ़ाई कर चुकी हैं, यह कितने गर्व का पल है?
जवाब: यह निश्चित रूप से गर्व का पल है। दिल्ली विश्वविद्यालय 103 वर्ष का हो चुका है और इसने अनगिनत विद्यार्थियों के जीवन में मूल्यवृद्धि की है। हमारे लिए यह बहुत खुशी की बात है कि दिल्ली की मुख्यमंत्री डीयू से पढ़ी हुई हैं। साथ ही, हमें इस बात पर भी गर्व है कि भारत के प्रधानमंत्री भी हमारे छात्र रहे हैं। यह हमारे लिए दोहरी खुशी का अवसर है।
सवाल: क्या आप डीयू में कोई नया कोर्स लेकर आए हैं, जो बच्चों के जीवन को और बेहतर बनाए?
जवाब: देश की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए डीयू नए कोर्स शुरू कर रहा है। हम इस समय योजना बना रहे हैं कि बीएससी कंप्यूटर साइंस को कॉलेजों में शुरू किया जाए। आज के समय में देश को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, डेटा साइंस और आईओटी जैसे विषयों में शिक्षा की आवश्यकता है। इस दिशा में डीयू ने कई प्रोग्राम शुरू किए हैं। हमने हिंदी और अंग्रेजी विभागों को निर्देश दिया है कि वे पत्रकारिता में एमए कोर्स शुरू करें।
सवाल: अगले 10 साल में आप डीयू को कहां देखते हैं?
जवाब: शिक्षा और इसके प्रदर्शन को मापने के लिए कई पैरामीटर हैं। इनमें से एक है क्यूएस वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग। तीन-चार साल पहले हमारी रैंकिंग लगभग 500 के आसपास थी। लेकिन, आज हम विश्व में 328वें स्थान पर हैं। हमारे तीन-चार विभाग ऐसे हैं जो शीर्ष 100 में शामिल हैं। हमारा लक्ष्य है कि हम और बेहतर करें, पहले शीर्ष 200 में आएं और फिर शीर्ष 100 में अपनी जगह बनाएं।
सवाल: डीयू में आरएसएस की विचारधारा हावी है, संघ के लोगों की भर्ती हो रही है, इस आरोप पर क्या कहेंगे?
जवाब: मैं यह नहीं समझता कि ‘राइट विंग’ से आपका क्या मतलब है। हमारे लिए राष्ट्रीय प्रेम और देश की चिंता करने वाले युवा तैयार करना सबसे बड़ा लक्ष्य है। प्रत्येक विश्वविद्यालय को यह करना चाहिए। जब-जब देश पर संकट आता है, तब नागरिकों को अपना योगदान देना पड़ता है। देश से प्रेम करना और उसकी चिंता करना हमारी प्राथमिकता है। इसकी परिभाषा आप चाहे जो समझें, मैं इस पर कुछ नहीं कहना चाहता, लेकिन इतना जरूर है कि हम इस दिशा में काम कर रहे हैं। हम चाहते हैं कि विश्वविद्यालय से पढ़कर निकलने वाला प्रत्येक छात्र देश की चिंता करे, क्योंकि यह देश हमारा है, किसी और का नहीं और इसकी जिम्मेदारी भी हमें ही निभानी है।
सवाल: डीयू में आरएसएस के लोगों की भर्ती होने के आरोपों पर क्या कहेंगे?
जवाब: मैं इस बात से सहमत नहीं हूं। भर्ती के लिए एक निर्धारित प्रक्रिया है, जिसमें तीन चरण हैं। पहले चरण में स्क्रीनिंग होती है, दूसरे में लिखित परीक्षा और तीसरे में साक्षात्कार। इस दौरान उम्मीदवारों की संचार कौशल, लेखन कौशल, और अन्य सॉफ्ट स्किल्स का मूल्यांकन किया जाता है। यह एक पारदर्शी प्रक्रिया है, जिसमें देश भर से विशेषज्ञ शामिल होते हैं। जो लोग इस तरह की बातें करते हैं, मुझे लगता है कि उनके पास पर्याप्त जानकारी या डेटा नहीं है। उन्हें समझदारी के साथ ही जवाब देना चाहिए।
सवाल: क्या डीयू को जेएनयू बनाने की साजिश है?
जवाब: जेएनयू एक अलग विश्वविद्यालय है, उसकी अपनी विशिष्ट पहचान है, और हमारी अपनी अलग है। हम जेएनयू नहीं बन सकते, न ही हमें बनना चाहिए। जेएनयू देश का गौरव है और इसमें कोई ऐसी बात नहीं है।
सवाल: ऑपरेशन सिंदूर को लेकर डीयू ने एक सोशल मीडिया हैंडल तैयार किया, उसके बारे में बताएं।
जवाब: ऑपरेशन सिंदूर के बाद देश में जो माहौल बना, उससे मुझे लगा कि विश्वविद्यालय को अपनी भूमिका निभानी चाहिए। इसलिए, हमने एक सोशल मीडिया हैंडल बनाया, जिसका नाम है ‘ये देश है मेरा’। इसका उद्देश्य सही खबरें और विचार साझा करना है ताकि देश की जनता को सही परिप्रेक्ष्य में जानकारी मिले।
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