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Saturday, November 8, 2025
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समुद्र में साइबर अटैक से बचने के लिए नौसेना प्रमुख ने दिए दो अहम सुझाव!

उन्होंने कहा, ''जहां इंटरनेट ऑफ थिंग्स प्रगति का प्रतीक है, वहीं हर वस्तु के हथियारीकरण के जोखिम की परिभाषा भी बन चुकी है।''

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नौसेना प्रमुख एडमिरल दिनेश के. त्रिपाठी ने समुद्री साइबर हमलों के प्रति सचेत करते हुए कहा कि डिजिटल क्रांति जहां एक ओर अभूतपूर्व दक्षता ला रही है, वहीं यह नई कमजोरियां भी उत्पन्न कर रही है। उन्होंने कहा, ”जहां इंटरनेट ऑफ थिंग्स प्रगति का प्रतीक है, वहीं हर वस्तु के हथियारीकरण के जोखिम की परिभाषा भी बन चुकी है।”

उन्होंने कहा कि ये हमले केवल सिस्टम पर नहीं, बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था की धमनियों पर प्रहार हैं। समुद्री क्षेत्र में किसी बड़े पोर्ट या जहाज पर साइबर व्यवधान के प्रभाव सीमाओं से परे जाकर पूरी आपूर्ति शृंखला, वैश्विक बाजारों और राजनयिक समीकरणों को प्रभावित कर सकते हैं।

उन्होंने बताया कि भारत जैसे विशाल समुद्री राष्ट्र, जिसके पास 12 प्रमुख बंदरगाह, 200 से अधिक गैर-प्रमुख पोर्ट्स और 11,000 किमी लंबी तटरेखा है, ऐसे में साइबर खतरों के परिणाम अत्यंत गंभीर हो सकते हैं।

उन्होंने एक वैश्विक उदाहरण देते हुए कहा कि 2021 में स्वेज नहर की छह दिन की बाधा ने हर दिन लगभग 10 अरब डॉलर के व्यापार को रोक दिया था। कल्पना कीजिए यदि ऐसी स्थिति एक अटके जहाज से नहीं, बल्कि एक साइबर कोड से उत्पन्न हो।

उन्होंने बताया कि नवंबर 2023 में ऑस्ट्रेलिया की डीपी वर्ल्ड पर हुए साइबर हमले से देश के लगभग 40 प्रतिशत कंटेनर व्यापार पर असर पड़ा।

इसी प्रकार 2024 की मैरीटाइम साइबर सिक्योरिटी रिपोर्ट के अनुसार विश्वभर में 50 अरब से अधिक फायरवॉल घटनाएं दर्ज की गईं, 1800 जहाज साइबर हमलों का शिकार हुए और 178 रैनसमवेयर घटनाओं में प्रति घटना औसतन आधा मिलियन डॉलर का नुकसान हुआ।

नौसेना प्रमुख ने गुरुवार को नई दिल्ली में ‘समुद्री क्षेत्र पर साइबर हमलों का प्रभाव तथा राष्ट्रीय सुरक्षा और अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर उसके परिणाम’ विषय पर आयोजित सम्मेलन को संबोधित किया। नौसेना प्रमुख ने कहा, ”प्रधानमंत्री के ‘डिजिटल इंडिया’ दृष्टिकोण को आगे बढ़ाते हुए, साइबर सुरक्षा को राष्ट्रीय सुरक्षा का अभिन्न अंग बनाना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए।”

उन्होंने दो प्रमुख सुझाव प्रस्तुत किए। पहला यह कि साइबर सुरक्षा को समुद्री संचालन की मूल संरचना में प्रारंभ से ही सम्मिलित किया जाए, न कि इन्हें बाद में एक सहायक तत्व के रूप में जोड़ा जाए। सभी प्रणालियां, डिजाइन से लेकर संचालन तक, वैकल्पिक व्यवस्था और सुदृढ़ सुरक्षा के सिद्धांतों पर आधारित हों।

दूसरा सुझाव यह था कि स्पीड और पारस्परिक सहयोग को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाए। साइबर खतरों के प्रति त्वरित रेस्पॉन्स, सूचना का वास्तविक समय में आदान-प्रदान और सभी एजेंसियों के बीच अनुभव साझा करने की संस्कृति ही हमारी सामूहिक मजबूती तय करेगी।

एडमिरल त्रिपाठी ने कहा कि भारतीय नौसेना साइबर प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए कई ठोस कदम उठा रही है। यह संगोष्ठी उसी दिशा में एक ईमानदार प्रयास है, जिसमें नीति निर्माता, तकनीकी विशेषज्ञ, उद्योग जगत और कार्यान्वयनकर्ता सभी को एक मंच पर लाया गया है।

उन्होंने डायरेक्टरेट ऑफ इन्फॉर्मेशन वॉरफेयर एवं आयोजक दल की सराहना करते हुए कहा कि यह संगोष्ठी विचार-विमर्श के माध्यम से न केवल समुद्री साइबर सुरक्षा की समझ को गहरा करेगी, बल्कि ठोस कार्रवाइयों को प्रेरित करेगी, जिससे भारत डिजिटल रूप से जुड़े समुद्री क्षेत्र में अवसरों और चुनौतियों का आत्मविश्वास से सामना कर सके।

कार्यक्रम में इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी तथा वाणिज्य एवं उद्योग राज्य मंत्री जितिन प्रसाद भी मौजूद रहे।

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