पाकिस्तान द्वारा तालिबान-शासित अफ़ग़ानिस्तान से अपनी सीमा बंद करने के फैसले का असर अब उसके ही सिर पर भारी पड़ रहा है। आतंकवाद-रोधी दबाव बनाने के उद्देश्य से पाकिस्तान का उठाया गया यह कदम आर्थिक मोर्चे पर पाकिस्तान को ही बड़े झटके दे रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि गतिरोध जारी रहा, तो इस्लामाबाद को हर साल 1 बिलियन डॉलर से अधिक का नुकसान झेलना पड़ सकता है।
तनाव की शुरुआत तब हुई जब पाकिस्तान के DG ISPR लेफ्टिनेंट जनरल अहमद शरीफ़ चौधरी ने पीएम मोदी के लहज़े में बात करने की कोशीश करते हुए अफ़ग़ानिस्तान को चेतावनी दी थी की,“खून और कारोबार एक साथ नहीं चल सकते।” यह बयान पाकिस्तान द्वारा ही बनाए गए TTP के हमलों के बाद आया। 11 अक्टूबर को पाकिस्तान ने सभी सीमा चौकियां बंद कर दीं और बाद में TTP ठिकानों पर हवाई हमले भी किए।
लेकिन यह कड़ा रुख अब पाकिस्तान के लिए आर्थिक संकट में बदल रहा है। विदेश मंत्रालय ने बीते सप्ताह पुष्टि की कि अफ़ग़ानिस्तान के साथ सारा व्यापार स्थगित कर दिया गया है, क्योंकि तालिबान सरकार TTP को समर्थन दे रही है।
सीमा बंद होने के बाद अफ़ग़ानिस्तान ने तेजी से विकल्पों की तलाश शुरू कर दी। अफ़ग़ान डिप्टी पीएम मुल्ला अब्दुल ग़नी बरादर ने अफ़ग़ान व्यापारियों को पाकिस्तान पर निर्भरता खत्म करने का निर्देश दिया और तीन महीने में मौजूद अनुबंध समाप्त करने का आदेश दिया।
इसका सीधा नुकसान पाकिस्तान को कुछ ऐसे हो रहा है की, पाकिस्तान से अफ़ग़ानिस्तान को होने वाला निर्यात अक्टूबर में 57% गिर छुआ है। 2024 में पाकिस्तान ने अफ़ग़ानिस्तान को 800 मिलियन डॉलर के उत्पाद बेचे थे। हालांकि 270 मिलियन डॉलर का ट्रांजिट व्यापार भी अब ठप है। यानी पाकिस्तान 1 बिलियन डॉलर से अधिक की वार्षिक कमाई खो सकता है। व्यापार बंद होने से पाकिस्तान की औद्योगिक और निर्यात इकाइयों पर गहरा असर पड़ा है।
पाकिस्तान फार्मासूटिकल मैन्युफैक्चरिंग असोसिएशन (PPMA) के अनुसार अरबों रुपये की दवाइयों से भरे कंटेनर सीमा पर अटके हैं। लंबे समय तक रुके रहने से यह माल नष्ट होने का खतरा बना हुआ है।
अफ़ग़ानिस्तान से व्यापर बंद होने से पाकिस्तान का सीमेंट उद्योग सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है। सीमेंट निर्यात पूरी तरह रुका। साथ ही अफ़ग़ानिस्तान से आने वाला कोयला रोके जाने के कारण अफ़ग़ानिस्तान को महंगा कोयला खरीदना पड़ रहा है। पाकिस्तान को अब दक्षिण अफ्रीका, इंडोनेशिया और मोज़ाम्बिक से महंगा कोयला खरीदना पड़ रहा है। स्थानीय कोयले की कीमत PKR 30,000–32,000 से बढ़कर 42,000–45,000 प्रति टन तक पहुँच गई है।
खाद्य निर्यात ठप होने के कारण फल-सब्ज़ियों की खेपें सड़ रहीं है, या वापस लौट रही है। दौरान पाकिस्तान में आयातित फलों की कीमतें दोगुनी होने के साथ ही बाजार में माल की अनुपलब्धता दिख रही है। निर्यातकों ने कई कंटेनर पूरी तरह लिखताबंद कर दिए। कस्टम और ट्रांजिट शुल्क की वसूली धड़ाम से गिरते ही, पाकिस्तानी मुद्रा भंडार पर थोड़ा असर दिख रहा है, जिससे पाकिस्तानी सरकार के राजस्व में भी गिरावट स्पष्ट तौर पर दिख रही है।
हालांकि इसके विपरित अफ़ग़ानिस्तान, जो अपने 41% निर्यात खासकर खाद्य और कोयला पाकिस्तान भेजता था।
उसने तेज़ी से वैकल्पिक मार्ग अपना लिए है। अफ़ग़ानिस्तान ने ईरान के चाबहार बंदरगाह का उपयोग बढ़ाया है। भारत और मध्य एशियाई देशों से व्यापार बढ़ाने की पहल की है। अफ़ग़ानिस्तान के वाणिज्य मंत्री ने 5-दिवसीय भारत यात्रा में व्यापार अटैची नियुक्ति की है। साथ ही सोने के खनन में भारतीय निवेश पर कर-छूट देते हुए एयर कार्गो कॉरिडोर जैसे समझौते किए है। वहीं अमेरिका ने चाबहार के लिए 6-महीने का प्रतिबंध-मुक्ति (waiver) देकर व्यापार को आसान बनाया है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि पाकिस्तान ने जल्दी सीमा नहीं खोली, तो अफ़ग़ानिस्तान स्थायी रूप से ईरान और भारत आधारित व्यापार मॉडल अपना सकता है। पाकिस्तान का परंपरागत अफ़ग़ानिस्तान बाज़ार स्थायी रूप से हाथ से निकल सकता है। घरेलू उद्योगों की लागत और महंगाई और बढ़ सकती है। फिलहाल, दोनों देशों के बीच तनाव ने दक्षिण एशिया में व्यापार और सुरक्षा दोनोंको गंभीर संकट में डाल दिया है।
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