ईरान और इजरायल के बीच बढ़ते तनाव के बीच एक और विवादित बयान ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खलबली मचा दी है। ईरान के वरिष्ठ सैन्य अधिकारी और इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (IRGC) के कमांडर जनरल मोहसिन रेजाई ने दावा किया है कि “अगर इजरायल ने ईरान पर परमाणु हमला किया, तो पाकिस्तान भी इजरायल पर न्यूक्लियर अटैक करेगा।” यह बयान ईरानी सरकारी टेलीविजन पर प्रसारित हुआ।
मगर कुछ ही घंटों बाद पाकिस्तान ने इस दावे को सिरे से खारिज कर दिया। इस्लामाबाद की ओर से कहा गया कि ऐसा कोई वादा ईरान से नहीं किया गया है और यह दावा बेबुनियाद है। हालांकि पाकिस्तान ने यह जरूर दोहराया कि वह मौजूदा ईरान-इजरायल टकराव में ईरान के साथ खड़ा है। 14 जून को पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने नेशनल असेंबली में कहा, “अगर मुस्लिम देश अभी एकजुट नहीं हुए तो सबका हाल ईरान और फिलिस्तीन जैसा होगा। इजरायल ने ईरान, यमन और फिलिस्तीन को निशाना बनाया है।”
ख्वाजा आसिफ ने तुर्किए टुडे को दिए बयान में यह भी कहा कि जो मुस्लिम देश इजरायल के साथ कूटनीतिक संबंध रखते हैं, उन्हें तत्काल ये संबंध तोड़ने चाहिए। उन्होंने इस्लामी सहयोग संगठन (OIC) से भी इमरजेंसी मीटिंग बुलाकर संयुक्त रणनीति बनाने की अपील की।
गौरतलब है कि इजरायल की आधिकारिक नीति ‘परमाणु अस्पष्टता’ (nuclear ambiguity) पर आधारित है — वह न तो यह स्वीकार करता है कि उसके पास न्यूक्लियर हथियार हैं और न ही इसे खारिज करता है। मगर अंतरराष्ट्रीय विश्लेषकों का मानना है कि इजरायल के पास एक पूर्ण परमाणु हथियार भंडार है, जिसे प्रतिरोध और प्रतिशोध की रणनीति के तहत विकसित किया गया है।
ईरान ने हमेशा अपने परमाणु कार्यक्रम को शांतिपूर्ण और ऊर्जा उत्पादन व चिकित्सा अनुसंधान के लिए बताया है। ईरान NPT (परमाणु अप्रसार संधि) का सदस्य भी है। लेकिन पश्चिमी देश और IAEA (अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी) उसकी यूरेनियम संवर्धन गतिविधियों, बैलिस्टिक मिसाइल निर्माण और पारदर्शिता की कमी को लेकर चिंता जता चुके हैं।
इस ताजा बयानबाजी ने मध्य पूर्व में पहले से सुलग रही जंग को और उग्र बना दिया है। हालांकि पाकिस्तान ने खुद को किसी सीधे सैन्य संघर्ष से अलग रखने की कोशिश की है, लेकिन उसका यह दोहरा रुख — एक तरफ समर्थन और दूसरी तरफ इंकार — आने वाले दिनों में और भू-राजनीतिक संकट को जन्म दे सकता है।
विश्लेषकों का मानना है कि अगर परमाणु हथियारों की भाषा और धमकियां जारी रहीं, तो यह सिर्फ एक क्षेत्रीय संघर्ष नहीं रहेगा, बल्कि वैश्विक स्थिरता के लिए भी बड़ा खतरा बन सकता है। अब निगाहें मुस्लिम देशों और OIC की रणनीति पर टिकी हैं — क्या वे इजरायल के खिलाफ मोर्चा बनाएंगे, या यह सिर्फ शब्दों की जंग रह जाएगी?
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